Bhagwat Gita : बचपन हर व्यक्ति के जीवन में महत्वपूर्ण समय होता है. यह वह अवधि है, जब हमारे अनुभव, हमारी भावनाएं और हमारी समझ जीवन की नींव तैयार करते हैं. पर कभी-कभी, बचपन में होने वाले अनुभव इतने कठिन और दर्दनाक होते हैं कि उनका असर वयस्क जीवन पर भी गहराई से पड़ता है. अनजान आघात, चाहे वह भावनात्मक असुरक्षा हो, अस्वीकार का अनुभव हो, या किसी प्रकार का डर, व्यक्ति की सोच, व्यक्तित्व और रिश्तों पर स्थायी प्रभाव डाल सकते हैं. ऐसे आघात अक्सर हमारी आत्मविश्वास की नींव को हिला देते हैं और जीवन में सफलता की राह में अनजाने अवरोध खड़े कर देते हैं. आज के समय में, मानसिक स्वास्थ्य की समस्याएं तेजी से बढ़ रही हैं. चिंता, अवसाद और आत्म-संदेह जैसी स्थितियां न केवल व्यक्तियों के जीवन को प्रभावित करती हैं, बल्कि उनके सामाजिक और व्यावसायिक जीवन पर भी गहरा असर डालती हैं. यही वह स्थान है, जहां भगवद् गीता की शिक्षाएं अत्यंत उपयोगी सिद्ध होती हैं. गीता केवल धर्मग्रंथ नहीं, बल्कि यह जीवन के हर पहलू में आंतरिक शक्ति और मानसिक स्पष्टता प्रदान करने वाला मार्गदर्शक है.
1. भगवद् गीता हमें यह सिखाती है कि अतीत में हुए अनुभव, चाहे कितने भी दर्दनाक क्यों न हों, हमें परिभाषित नहीं करते. यह हमें वर्तमान में जीने, आत्मा की शक्ति को पहचानने और अपने भीतर की स्थिरता प्राप्त करने का मार्ग दिखाती है. गीता के अनुसार, आंतरिक उपचार का पहला कदम यह समझना है कि आप अपनी पीड़ा नहीं हैं. आपकी आत्मा शाश्वत और अछूती है, और बचपन के घावों को वह प्रभावित नहीं कर सकते. जब हम अपने भीतर की असली पहचान को समझते हैं, तभी पुराने दर्द और आघात हमें हावी नहीं कर पाते.
2. गीता में वैराग्य का सिद्धांत भी इस उपचार में सहायक है. वैराग्य का अर्थ है अनुभवों और अतीत की स्मृतियों से प्रभावित हुए बिना जीवन को स्वीकार करना. यह दमन नहीं है, बल्कि पुरानी यादों और दुखों को नियंत्रित करना है. जब हम वैराग्य का अभ्यास करते हैं, तो हम भावनात्मक रूप से स्वतंत्र हो जाते हैं और अपने दर्द को अपने जीवन को नियंत्रित नहीं करने देते.

3. कर्म योग भी गीता की वह शिक्षा है, जो बचपन के आघातों से उबरने में मदद करती है. इसका मूल भाव यह है कि हम अपने कर्मों को निष्काम भाव से करें, बिना किसी अपेक्षा या अहंकार के. कर्म योग का अभ्यास करने से हम अतीत के दुखों पर प्रतिक्रिया करना बंद कर देते हैं और वर्तमान में सचेत रूप से निर्णय लेना सीखते हैं. इससे पुराने आघातों से उत्पन्न होने वाले भय और क्रोध के पैटर्न टूट जाते हैं और जीवन में सफलता की राह सहज होती है.
4. ध्यान योग गीता का एक और महत्वपूर्ण साधन है. मन अक्सर अशांत और उथल-पुथल में रहता है, और बचपन के अनुभव इसे और अस्थिर बना सकते हैं. ध्यान का अभ्यास मन और आत्मा को संतुलित करता है, भावनात्मक उथल-पुथल को कम करता है और हमें अपने विचारों से दूरी बनाने की क्षमता देता है. इस प्रक्रिया से हम अतीत की पीड़ा में जीना छोड़ देते हैं और अपने भीतर सुरक्षित और स्थिर महसूस करते हैं.

5. गीता में अर्जुन के उदाहरण के माध्यम से हमें यह भी सिखाया गया है कि अपने भीतर के भय और आघातों का सामना करना आवश्यक है. युद्धभूमि में अर्जुन अपने सगे-संबंधियों की मृत्यु और भय के सामने टूट जाता है, पर कृष्ण उसे बताते हैं कि भागने के बजाय अपने भीतर के राक्षसों का सामना करें. यही जीवन में भी लागू होता है जब हम अपने भीतर के डर और आघातों को स्वीकार करते हैं और उन्हें नियंत्रित करना सीखते हैं, तभी हम मानसिक स्वतंत्रता प्राप्त कर पाते हैं.
अंततः, गीता शरणागति की शिक्षा देती है. इसका अर्थ है पूर्ण समर्पण अपने भय, अपने दर्द और अपने संकुचित विचारों से. जब हम शरणागति अपनाते हैं, तो हम अपनी पीड़ा और दुखदायी यादों को पीछे छोड़ देते हैं और जीवन में एक नई स्वतंत्रता और सफलता की राह खोलते हैं.
(Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं. Hindi news18 इनकी पुष्टि नहीं करता है. इन पर अमल करने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से संपर्क करें.)
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