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Why Hanuman is not called Bhagwan। हनुमान जी को भगवान क्यों नहीं कहते


Why Hanuman Is Not Called Bhagwan : हनुमान जी भारतीय संस्कृति और धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं. उन्हें शक्ति, भक्ति और साहस का प्रतीक माना जाता है. हम उन्हें अलग-अलग नामों से पुकारते हैं हनुमान जी, बजरंगबली, संकटमोचन, पवनपुत्र. परंतु क्या आपने कभी सोचा है कि उनके नाम के आगे आमतौर पर ‘भगवान’ शब्द क्यों नहीं लगाया जाता? जबकि श्री राम, कृष्ण, शिव जैसे देवताओं के नाम के आगे यह शब्द सामान्य रूप से प्रयोग होता है. यह विषय जिज्ञासु मन को आकर्षित करता है. हनुमान जी को भगवान के रूप में पूजने के बावजूद उनके नाम के साथ यह शब्द नहीं जुड़ता. इसके पीछे गहन आध्यात्मिक और सांस्कृतिक कारण हैं, जो उनकी जीवन शैली, उनके भक्ति भाव और उनकी विनम्रता से जुड़े हैं. हनुमान जी का जीवन पूर्णतः सेवा और भक्ति में व्यतीत हुआ. उन्होंने कभी अपने आप को ईश्वर के समकक्ष नहीं माना. उनका दृष्टिकोण हमेशा अपने परम प्रिय श्री राम के प्रति समर्पित रहा. यही कारण है कि उनके नाम के आगे ‘भगवान’ शब्द का प्रयोग नहीं किया जाता.

हनुमान जी का सेवक भाव
हनुमान जी को भगवान न कहे जाने का मुख्य कारण उनका सेवा भाव है. वे स्वयं को श्री राम के दास और भक्त के रूप में देखते थे. उनका जीवन पूरी तरह से श्री राम की सेवा और भक्ति में व्यतीत हुआ. उन्होंने अपनी शक्ति, विद्या और दिव्य गुणों का प्रयोग भी केवल सेवा के लिए किया.

पौराणिक कथाओं में वर्णित है कि हनुमान जी ने कभी अहंकार नहीं किया. वे जानते थे कि उनकी शक्ति और महिमा राम जी की कृपा और आशीर्वाद का फल है. उनकी विनम्रता इतनी गहरी थी कि उन्होंने स्वयं के लिए ‘भगवान’ की उपाधि स्वीकार नहीं की. यह उनकी विशेषता ही है कि भक्त उन्हें दास की भांति पूजते हैं, जिससे उनकी भक्ति और अधिक प्रकट होती है.

हनुमान जी का दिव्य स्वरूप
हनुमान जी को भगवान शिव का रुद्रावतार माना जाता है. इसका अर्थ यह है कि उनके भीतर शिव जी की शक्ति और महिमा विद्यमान है. फिर भी वे अपने आप को शिव या किसी अन्य ईश्वर के समकक्ष नहीं मानते. उनका ध्यान सदैव श्री राम के भक्ति मार्ग पर रहता है.

वे चिरंजीवी हैं और आज भी पृथ्वी पर उपस्थित माने जाते हैं. कलियुग में उनके जागरूक होने के कारण उन्हें दुख हरने वाले देवता के रूप में जाना जाता है. लोग उन्हें शक्ति, बुद्धि और विद्या के देवता के रूप में भी पूजते हैं. भक्त उन्हें अपने निकट पाते हैं और संकट में तुरंत सहायता प्राप्त होती है.

पौराणिक दृष्टांत
कथा अनुसार, हनुमान जी ने जब अपनी तपस्या पूर्ण की, तब शिव जी और ब्रह्मा जी ने उन्हें भगवान की उपाधि देने का प्रस्ताव रखा. परंतु हनुमान जी ने विनम्रतापूर्वक इसे अस्वीकार कर दिया. उन्होंने कहा कि यदि वे ‘भगवान’ शब्द स्वीकार कर लेंगे तो यह श्री राम की महिमा और सम्मान के अपमान के समान होगा. यही कारण है कि उनके नाम के आगे यह शब्द नहीं जोड़ा जाता.

हनुमान जी का नाम उनके चरित्र, उनके जीवन के आदर्श और उनके भक्ति भाव को दर्शाता है. बजरंगबली का अर्थ ही है “विजय और शक्ति के देवता”, संकटमोचन का अर्थ है “संकट दूर करने वाले”, और पवनपुत्र का अर्थ है “पवन देव के पुत्र”. हर नाम उनके अद्भुत गुणों को प्रकट करता है और उनके जीवन के उद्देश्य को दर्शाता है.

हनुमान जी को भगवान कहा न जाना केवल सांस्कृतिक या परंपरागत नियम नहीं है, बल्कि यह उनकी विनम्रता, भक्ति और सेवा भाव का प्रतीक है. उनके नाम के माध्यम से उनकी विशेषता और उनकी भक्ति स्पष्ट होती है. यह हमें यह सिखाता है कि वास्तविक शक्ति अहंकार में नहीं, बल्कि सेवा और समर्पण में निहित होती है. हनुमान जी का जीवन हमें यह संदेश देता है कि दिव्यता केवल अपने लिए नहीं, बल्कि दूसरों की भलाई के लिए प्रयोग में आती है.

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