Delhi AQI and PM2.5 update today: भारी प्रदूषण के चलते राजधानी दिल्ली में हाहाकार मचा हुआ है. कबाड़ का घर बनी दिल्ली में न तो लोग सांस ले पा रहे हैं और न ही घरों से बाहर निकल पा रहे हैं.ऐसे में अब दिल्लीवासी इस आपदा से बचाने की गुहार लगा रहे हैं. दिल्ली में रहने वाले लोग लगातार दम घुटने और सांस न ले पाने की समस्या से जूझ रहे हैं और अस्पतालों की ओर राहत के लिए भाग रहे हैं. ऐसा होना लाजिमी भी है क्योंकि दिल्ली का रियल टाइम एक्यूआई अब खतरनाक स्तर को पार कर गया है. सुबह हो या शाम, दिन हो या रात पीएम 2.5 सबसे बड़ा दुश्मन बनकर सामने आ रहा है.
सफदरजंग अस्पताल में रेस्पिरेटरी विभाग में प्रोफेसर और पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. नीरज बताते हैं कि पीएम 10 तो लोगों के अपर रेस्पिरेटरी ट्रैक्ट जैसे नाक, मुंह और साइनस तक ही पहुंचता है लेकिन वाहनों के धुएं, कंस्ट्रक्शन साइटों की धूल और कारखानों से निकलने वाली गैसों से बने पीएम 2.5 पार्टिकल्स लोअर रेस्पिरेटरी ट्रैक्ट जैसे ब्रॉन्काइ और लंग्स आदि तक पहुंच जाते हैं और इन्फ्लेमेशन पैदा करते हैं.
एक्यूआई डॉट इन का डाटा बताता है कि मंगलवार सुबह पीएम 2.5 की मात्रा 261 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर दर्ज की गई है जो खतरनाक स्तर को बताती है. वहीं साइज में पीएम 2.5 से बड़े पार्टिकुलेट मेटर पीएम 10 की रियल टाइम मात्रा 362 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर दर्ज की गई है. चूंकि पार्टिकुलेट मेटर 2.5 शरीर के लोअर रेस्पिरेटरी ट्रैक्ट में पहुंच जाते हैं और हेल्थ को ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं इसलिए इनकी बढ़ती मात्रा बहुत ज्यादा खतरनाक है.
किससे निकलता है पीएम 2.5
पार्टिकुलेट मेटर 2.5 हवा में मौजूद बेहद महीन कण होते हैं, जो मुख्य रूप से जलने की प्रक्रिया के बाद धुएं में पैदा होते हैं और सीधे सांसों और फेफड़ों पर अटैक करते हैं. यह खासतौर पर डीजल-पेट्रोल की गाड़ियों में ईंधन के जलने के बाद निकलने वाले धुएं, बिजली संयंत्रों कोयला, इंडस्ट्रीज और फैक्ट्रीज से निकलने वाले धुएं, लकड़ी या बायोमास जलाने, कचरा जलाने, जंगलों में आग लगाने या धूल के बेहद महीने कणों से पैदा होते हैं.
पीएम 2.5 से हो सकता है अस्थमा और सीओपीडी
डॉ. नीरज बताते हैं कि जब तक आप पीएम 2.5 को सांस के माध्यम से अंदर ले रहे हैं तो आपको अस्थमा और सीओपीडी भी हो सकता है. इतना ही नहीं पीएम 2.5 को इन्हेल करने से सर्दी, जुकाम और खांसी की समस्या भी हो रही है. बार-बार इन्फ्लेमेशन होने और शरीर को ठीक होने का समय न मिलने से इस बीमारी के 4-6 दिनों में ठीक होना मुश्किल हो रहा है. इसलिए संभव है कि यह परेशानी लौट-लौट कर आए और आपको ये महसूस हो कि ये ठीक ही नहीं हो रही.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
https://hindi.news18.com/news/delhi/delhi-has-been-turned-into-junkyard-people-neither-breath-nor-live-in-hazardous-aqi-biggest-update-on-particulate-matter-risks-and-side-effects-on-health-ws-kln-9966939.html







