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राजस्थान में ताबीज राजस्थानी पुरुषों का पारंपरिक आभूषण है, जो आस्था, सुरक्षा और परंपरा का प्रतीक है. इसे नजर दोष, बुरी शक्तियों और बीमारी से बचाव के लिए पहना जाता है. चांदी, तांबे या पीतल से बने ताबीज पर धार्मिक मंत्र, जड़ी-बूटियां और नक्काशी होती है. यह आभूषण लोकविश्वास और सांस्कृतिक पहचान का सुंदर समन्वय दर्शाता है.

राजस्थान की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत केवल रंगीन वस्त्रों और पगड़ियों तक सीमित नहीं है, बल्कि यहां के पारंपरिक आभूषण भी अपनी अलग पहचान रखते हैं. इन्हीं आभूषणों में से एक है ताबीज, जिसे राजस्थानी पुरुष आस्था, सुरक्षा और परंपरा के प्रतीक के रूप में धारण करते हैं. ताबीज न केवल एक आभूषण है, बल्कि यह लोकविश्वास और आध्यात्मिकता से भी गहराई से जुड़ा हुआ है.

राजस्थानी समाज में ताबीज को अक्सर गले में माला या धागे के साथ पहना जाता है. यह आभूषण पीढ़ियों से चला आ रहा है और आज भी गांवों व आदिवासी क्षेत्रों में इसकी विशेष मान्यता बनी हुई है. ताबीज आमतौर पर चांदी, तांबे या पीतल से बनाया जाता है. इसके अंदर धार्मिक मंत्र, तंत्र-यंत्र, जड़ी-बूटियां या कागज़ पर लिखे गए मंत्र रखे जाते हैं. स्थानीय कारीगर बताते हैं कि कई ताबीज बेलनाकार होते हैं तो कुछ चौकोर या गोल आकार में भी मिलते हैं. इन पर सुंदर नक्काशी या धार्मिक प्रतीक भी उकेरे जाते है.

राजस्थानी पुरुष ताबीज को नजर दोष, बीमारी, बुरी शक्तियों और अनहोनी से बचाव के लिए पहनते हैं. लोक मान्यता है कि ताबीज पहनने से व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है और संकटों से रक्षा होती है. यही कारण है कि इसे बच्चों से लेकर बुज़ुर्गों तक पहनाया जाता है.
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ताबीज केवल व्यक्तिगत आस्था तक सीमित नहीं है, बल्कि यह समाज की सामूहिक सोच और परंपरा को भी दर्शाता है. मेलों, त्योहारों और पारंपरिक अवसरों पर पुरुष इसे गर्व के साथ धारण करते हैं. यह आभूषण राजस्थान की लोकसंस्कृति में विश्वास और सुरक्षा की भावना को मजबूत करता है.

राजस्थानी पुरुषों का ताबीज एक ऐसा पारंपरिक आभूषण है, जिसमें आस्था, संस्कृति और सुरक्षा का सुंदर समन्वय देखने को मिलता है. यह आभूषण न सिर्फ शरीर की शोभा बढ़ाता है, बल्कि मन को भी विश्वास और संबल प्रदान करता है. आज के आधुनिक दौर में भी ताबीज अपनी सांस्कृतिक पहचान को जीवित रखे हुए है और राजस्थान की परंपराओं का सशक्त प्रतीक बना हुआ है.







