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Nettle Herb Health Benefits: बागेश्वर और कुमाऊं के पहाड़ों में पाई जाने वाली बिच्छू घास (नेटल) सदियों से आयुर्वेदिक औषधि और सब्जी के रूप में उपयोग की जा रही है. यह एनीमिया यानी खून की कमी में बेहद फायदेमंद मानी जाती है और आयरन, विटामिन और खनिजों से भरपूर होती है. सही तरीके से उबालकर या पकाकर इसका सेवन करने पर कमजोरी, थकान और चक्कर जैसी समस्याओं में राहत मिल सकती है. आयुर्वेदिक विशेषज्ञ से जानिए ये आपकेआई किस तरह फायदेमंद है.

बागेश्वर सहित पूरे कुमाऊं क्षेत्र में पाई जाने वाली बिच्छू घास (नेटल) को पहाड़ों में सदियों से औषधीय पौधे के रूप में उपयोग किया जाता रहा है. यह देखने में कांटेदार जरूर होती है, लेकिन इसके गुण बेहद लाभकारी माने जाते हैं. स्थानीय लोग इसे साग-सब्जी के रूप में खाते हैं और कई रोगों में घरेलू उपचार के तौर पर अपनाते हैं. विशेष रूप से खून की कमी यानी एनीमिया में बिच्छू घास को उपयोगी माना जाता है. आयुर्वेद और लोक चिकित्सा में इसे शरीर को मजबूत करने वाली घास कहा गया है.

आयुर्वेदिक डॉ. ऐजल पटेल ने Bharat.one को बताया कि एनीमिया का मुख्य कारण शरीर में आयरन की कमी होना है. बिच्छू घास में प्राकृतिक रूप से आयरन की अच्छी मात्रा पाई जाती है, जो हीमोग्लोबिन बढ़ाने में सहायक होती है. इसके नियमित सेवन से शरीर में लाल रक्त कणिकाओं के निर्माण में मदद मिल सकती है. यही वजह है कि पहाड़ों में इसे कमजोरी, चक्कर आना और थकान जैसी समस्याओं में उपयोग किया जाता है. हल्के एनीमिया के मामलों में इसका सीमित और नियमित सेवन लाभकारी माना जाता है.

बिच्छू घास केवल आयरन ही नहीं, बल्कि कई जरूरी विटामिन और खनिजों का भी अच्छा स्रोत है. इसमें विटामिन A, C, K, कैल्शियम, मैग्नीशियम और एंटीऑक्सीडेंट पाए जाते हैं. विटामिन C शरीर में आयरन के अवशोषण को बढ़ाने में मदद करता है, जिससे इसका असर और बेहतर हो जाता है. यही कारण है कि बिच्छू घास को संतुलित आहार के साथ लेने पर अधिक लाभ मिल सकता है. यह शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी मजबूत करने में सहायक मानी जाती है.
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बिच्छू घास का सेवन आमतौर पर सब्जी या उबालकर बनाए गए जूस के रूप में किया जाता है. इसे अच्छी तरह उबालने या पकाने से इसके कांटे निष्क्रिय हो जाते हैं, और जलन का खतरा नहीं रहता. पहाड़ों में इसकी साग-सब्जी बनाकर दाल-भात के साथ खाई जाती है. वहीं कुछ लोग इसे उबालकर छान लेते हैं और पानी को जूस की तरह पीते हैं. सप्ताह में 2–3 बार सीमित मात्रा में इसका सेवन करना सुरक्षित माना जाता है.

महिलाओं में एनीमिया की समस्या अधिक देखी जाती है, खासकर मासिक धर्म के दौरान रक्त की कमी के कारण. बिच्छू घास का सेवन महिलाओं के लिए पारंपरिक तौर पर लाभकारी माना गया है. पहाड़ों में प्रसव के बाद भी महिलाओं को यह साग खिलाई जाती है, ताकि शरीर में खून की कमी पूरी हो सके. नियमित सेवन से कमजोरी, थकान और चक्कर जैसी समस्याओं में राहत मिल सकती है. हालांकि गर्भावस्था में इसका सेवन डॉक्टर की सलाह से ही करना चाहिए.

बिच्छू घास को कभी भी कच्चा नहीं खाना चाहिए. इसके पत्तों और डंठलों पर मौजूद कांटे त्वचा में जलन, खुजली और सूजन पैदा कर सकते हैं. कच्चा सेवन करने से मुंह और गले में भी जलन हो सकती है. इसलिए इसे हमेशा उबालकर या अच्छी तरह पकाकर ही खाना सुरक्षित होता है. सही विधि से पकाने पर इसके औषधीय गुण सुरक्षित रहते हैं, और नुकसान की आशंका नहीं रहती.

एनीमिया केवल आयरन की कमी से ही नहीं होता. कई बार विटामिन B12, फोलेट की कमी या अन्य स्वास्थ्य समस्याएं भी इसका कारण हो सकती हैं. ऐसे में केवल घरेलू उपायों पर निर्भर रहना सही नहीं है. अगर लंबे समय तक कमजोरी, सांस फूलना या चक्कर जैसी शिकायतें बनी रहें, तो जांच कराना जरूरी है. बिच्छू घास को सहायक उपाय के रूप में अपनाया जाना चाहिए, न कि इलाज का विकल्प मानकर.

गंभीर एनीमिया की स्थिति में डॉक्टर द्वारा दी गई दवाइयां और सप्लीमेंट लेना बेहद जरूरी है. बिच्छू घास जैसी आयरन युक्त वनस्पतियां इलाज में सहायक भूमिका निभा सकती हैं, लेकिन इन्हें मुख्य उपचार नहीं माना जाना चाहिए. संतुलित आहार, हरी सब्जियां, फल, दालें और विटामिन C युक्त खाद्य पदार्थों के साथ इसका सेवन अधिक लाभकारी हो सकता है. सही जानकारी और सावधानी के साथ इसका उपयोग स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है.
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https://hindi.news18.com/photogallery/lifestyle/health-bichchu-grass-nettle-leaf-iron-rich-herbal-plant-health-benefits-for-anemia-local18-9976101.html







