Pregnancy Rules: सनातन धर्म में भगवान शिव को जीवन और ब्रह्मांड का आधार माना जाता है. शिवलिंग को शिव का निराकार रूप कहा गया है, जहां सृष्टि की उत्पत्ति, संतुलन और अंत की ऊर्जा एक साथ मौजूद मानी जाती है. यही वजह है कि शिवलिंग की पूजा को बहुत प्रभावशाली माना जाता है और इसके साथ कई नियम और मान्यताएं भी जुड़ी हुई हैं. इन्हीं में से एक मान्यता है कि गर्भवती महिलाओं को शिवलिंग को सीधे छूना नहीं चाहिए. अक्सर देखा जाता है कि गर्भावस्था के दौरान महिलाएं पूजा-पाठ को लेकर थोड़ी उलझन में रहती हैं. कोई कहता है कि पूजा करना बहुत शुभ है, तो कोई कुछ चीजों से दूरी रखने की सलाह देता है. खासकर शिवलिंग को छूने को लेकर सवाल सबसे ज्यादा उठता है. कई महिलाएं मन में डर भी पाल लेती हैं कि कहीं गलती से कुछ अनहोनी न हो जाए. धार्मिक सोच, ज्योतिष और पुराने अनुभवों के आधार पर इस नियम को समझाया जाता है. कुछ लोग इसे आस्था से जोड़कर देखते हैं, तो कुछ इसे सावधानी का तरीका मानते हैं. सच यह है कि इस मान्यता के पीछे केवल रोक-टोक नहीं, बल्कि ऊर्जा, सुरक्षा और भावनात्मक संतुलन से जुड़ी बातें भी बताई जाती हैं. आइए जानते हैं भोपाल निवासी ज्योतिषी एवं वास्तु सलाहकार पंडित हितेंद्र कुमार शर्मा से कि आखिर गर्भवती महिलाओं को शिवलिंग छूने से क्यों मना किया जाता है, इसके पीछे धार्मिक सोच क्या कहती है, ज्योतिष इसका क्या मतलब बताता है और क्या आज के समय में इसे डर की बजाय समझदारी से देखना चाहिए.
क्या वाकई गर्भवती महिला को शिवलिंग नहीं छूना चाहिए?
धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक शिवलिंग को ब्रह्मांडीय ऊर्जा का केंद्र माना जाता है. ऐसा माना जाता है कि शिवलिंग से निकलने वाली ऊर्जा बहुत तेज और शक्तिशाली होती है. आम व्यक्ति इस ऊर्जा को सहज रूप से संभाल सकता है, लेकिन गर्भवती महिला के भीतर पल रहा शिशु बहुत नाजुक स्थिति में होता है. कुछ शास्त्र जानकारों का कहना है कि शिवलिंग की यह तीव्र ऊर्जा गर्भस्थ शिशु पर असर डाल सकती है. इसी वजह से कई मंदिरों में परंपरागत रूप से गर्भवती महिलाओं को शिवलिंग को हाथ लगाने से रोका जाता है. हालांकि इसका मतलब यह नहीं है कि वे भगवान शिव से दूर रहें. उन्हें दूर से दर्शन करने और मन से प्रार्थना करने की सलाह दी जाती है.
ज्योतिष के नजरिए से क्या कहते हैं नियम?
-ज्योतिष शास्त्र में भगवान शिव का संबंध चंद्रमा से बताया गया है, जबकि मंगल उनकी शक्ति का प्रतीक माना जाता है. गर्भावस्था के समय महिला के शरीर और मन में बड़े बदलाव होते हैं. इस दौरान चंद्रमा, राहु और केतु जैसे ग्रहों का असर ज्यादा महसूस किया जाता है.
-ज्योतिषियों के अनुसार गर्भवती महिला का ओरा बहुत संवेदनशील होता है. अगर उस समय तीव्र ऊर्जा वाले स्थान पर लंबे समय तक रहना हो या सीधे संपर्क में आना पड़े, तो असंतुलन की स्थिति बन सकती है. शिवलिंग को अग्नि और जल तत्व का मेल माना जाता है, इसलिए कुछ लोग मानते हैं कि सीधे स्पर्श से बचना बेहतर रहता है.
-हालांकि ज्योतिष यह भी कहता है कि मानसिक पूजा, ध्यान और मंत्र जाप गर्भवती महिला के लिए बहुत लाभकारी होते हैं. खासकर महामृत्युंजय मंत्र को मां और बच्चे दोनों की रक्षा से जोड़कर देखा जाता है.

पुराने समय के व्यावहारिक कारण
-इस नियम के पीछे केवल धार्मिक या ज्योतिष कारण ही नहीं, बल्कि व्यावहारिक वजहें भी मानी जाती हैं. पुराने समय में ज्यादातर शिव मंदिरों के गर्भगृह बहुत संकरे होते थे. वहां रोशनी और हवा कम रहती थी और भीड़ भी काफी होती थी.
-गर्भवती महिला के लिए ऐसे स्थान पर लंबे समय तक खड़े रहना या भीड़ में आगे बढ़ना जोखिम भरा हो सकता था. धक्का लगने, चक्कर आने या गिरने का खतरा बना रहता था. इसलिए सुरक्षा के लिहाज से यह परंपरा बनाई गई कि गर्भवती महिलाएं दूर से ही दर्शन करें.
क्या आज के समय में यह नियम जरूरी है?
आज के समय में मंदिरों की व्यवस्था पहले से बेहतर है और चिकित्सा सुविधाएं भी उपलब्ध हैं. ऐसे में कई लोग मानते हैं कि अगर महिला स्वस्थ है और डॉक्टर ने कोई रोक नहीं लगाई है, तो डरने की जरूरत नहीं है.
फिर भी धार्मिक परंपराओं में भावनात्मक पक्ष बहुत अहम होता है, अगर कोई महिला खुद असहज महसूस कर रही है या मन में डर है, तो उसे शिवलिंग छूने की मजबूरी नहीं होनी चाहिए. भक्ति का मतलब केवल छूना नहीं होता, सच्चे मन से किया गया स्मरण भी उतना ही असरदार माना जाता है.

गर्भावस्था में शिव भक्ति कैसे करें?
अगर गर्भवती महिला शिवलिंग को नहीं छूती है, तब भी वह कई तरीकों से शिव भक्ति कर सकती है. घर पर बैठकर शिव मंत्रों का जाप करना, शिव चालीसा पढ़ना या भगवान शिव का ध्यान करना बहुत शुभ माना जाता है. साफ मन और सकारात्मक सोच के साथ की गई पूजा से मां को मानसिक शांति मिलती है, जिसका असर सीधे बच्चे पर पड़ता है. यही कारण है कि कई पंडित गर्भावस्था में शांत और सरल पूजा को सबसे अच्छा मानते हैं.
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