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Kinner Kailash Yatra: क्या है किन्नर कैलाश यात्रा? भगवान शिव और पार्वती से जुड़ा है महत्व, ब्रह्म कमल भी खास


हाइलाइट्स

किन्नर कैलाश हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले में तिब्बत सीमा के पास स्थापित है. यह समुद्र तल से 6050 मीटर की ऊंचाई पर है.

Kinner Kailash Yatra: हिन्दू धर्म में तीर्थ दर्शन या धार्मिक यात्रा करना बेहद लाभप्रद माना गया है. ऐसा कहा जाता है कि व्यक्ति तीर्थ दर्शन या यात्रा करता है तो मृत्यु के बाद उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है. हालांकि पहले जहां बुजुर्गों की संख्या यात्रा में अधिक दिखाई देती थी, वहीं अब इसमें युवा भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं. यात्राएं तो कई सारी हैं, लेकिन क्या आपने कभी किन्नर कैलाश की यात्रा के बारे में सुना है? यदि नहीं तो इस आर्टिकल में हमे बता रहे हैं भोपाल निवासी ज्योतिषी एवं वास्तु सलाहकार पंडित हितेंद्र कुमार शर्मा कि इस यात्रा का क्या महत्व है?

कहां है किन्नर कैलाश?
किन्नर कैलाश हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले में तिब्बत सीमा के पास स्थापित है. यह समुद्र तल से 6050 मीटर की ऊंचाई पर है. दरअसल यह एक हिम खंड है और यह प्राकृतिक है, जिसे किसी ने बनाया नहीं है. यह स्वयं प्रकट हुआ है. वास्तव में इसका नाम किन्नौर कैलाश है, लेकिन अब इसे किन्नर कैलाश के नाम से जाना जाता है.

क्या है किन्नर कैलाश का महत्व
किन्नर कैलाश को प्राकृतिक शिवलिंग के रूप में माना जाता है. इस यात्रा को पूरा करने के ​बाद श्रद्धालु यहां शिवलिंग की पूजा करते हैं और किन्नर कैलाश की परिक्रमा करते हैं. यह यात्रा हर साल सावन में शुरू होती है और एक महीने तक चलती है. इस यात्रा को पूरा करने में करीब 2 से 3 दिन लगते हैं और यह यात्रा मानसरोवर और अमरनाथ की यात्रा से भी कठिन मानी जाती है.

पौराणिक कथा
एक पौराणिक कथा के अनुसार, इस स्थान को भगवान शिव और माता पार्वती के पहले मिलन के तौर पर देखा जाता है. उल्लेख है कि यहीं शिवशक्ति ने पहली बार मिलन किया था और तब ब्रह्म कमल का पुष्प इस स्थान पर खिलने से उसका तेज से पूरे संसार में फैल गया था.

वर्तमान में भी यहां यात्रा के दौरान अक्सर ब्रह्म कमल के फूल दिख जाते हैं. हालांकि यह फूल हर किसी को नजर नहीं आते. कहा जाता है कि पूर्ण मन और श्रद्धाभाव के साथ इस यात्रा को करने वालों को ही ये फूल दिखाई देते हैं.

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