Thursday, December 11, 2025
20 C
Surat

द्रोणाचार्य-अश्वत्थामा की तपोभूमि है ये स्थान, आज भी है साक्ष्य मौजूद! जानें धार्मिक मान्यता


देहरादून: देवी-देवताओं की भूमि उत्तराखंड को यूं ही नहीं कहा जाता है. हर पग-पग पर यहां पौराणिक मंदिर विद्यमान है, जिसकी अपनी-अपनी मान्यताएं हैं. देहरादून भले ही वर्तमान समय में राज्य की राजधानी हो, लेकिन पौराणिक मान्यताओं में यह ऋषि मुनियों की साधना का केंद्र भी हुआ करता था. टपकेश्वर मंदिर का इतिहास भी महाभारत काल से जुड़ा हुआ है. भगवान शिव को समर्पित मंदिर से जुड़ी कई रोचक कथाएं हैं.इस रिपोर्ट में जानते हैं कि पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा का इस जगह से क्या है रिश्ता?

टपकेश्वर महादेव मंदिर देहरादून के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है. पौराणिक मान्यता के अनुसार द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा ने 6 माह तक एक पांव पर खड़े होकर भगवान रुद्र की पूजा की थी. घोर संकल्प और तपस्या से प्रसन्न होकर भोलेनाथ ने उन्हें दर्शन दिया था. मान्यता है कि महाभारत काल से ही मंदिर विद्यमान है. लोकल18 को टपकेश्वर महादेव मंदिर के पुरोहित भरत जोशी ने बताया कि पांडवों और कौरवों को यहां पर शस्त्र विद्या उनके गुरु द्रोणाचार्य ने प्रदान की थी. किवदंतियों के अनुसार अश्वत्थामा का जन्म भी इसी स्थान पर हुआ था.

कैसे पड़ा महादेव का नाम ‘टपकेश्वर’?
पुरोहित भरत जोशी ने बताया कि भोलेनाथ को समर्पित यह गुफा मंदिर है. इसका मुख्य गर्भगृह एक गुफा के अंदर है. वहां स्थित शिवलिंग पर पानी की बूंदे लगातार गिरती रहती हैं. इसी कारण शिवजी के इस मंदिर का नाम ‘टपकेश्वर’ पड़ा. यहां दो शिवलिंग हैं. शिवलिंग को ढ़कने के लिए 5151 रुद्राक्ष का इस्तेमाल किया गया है. मंदिर परिसर के आस-पास कई खूबसूरत झरने हैं. देशभर से बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं.

चट्टान से बहती थी दूध की धारा
पुरोहित भरत जोशी ने बताया कि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा का जन्म यहां हुआ. जिसके बाद अश्वत्थामा की मां उसे दूध नहीं पिला पा रही थी. गुरु द्रोण और उनकी पत्नी ने भगवान शिव से प्रार्थना की. मान्यता है कि भगवान शिव ने गुफा की छत पर गऊ थन बना दिया, जिससे दूध की धारा अचानक बहने लगी. इसी वजह से भगवान भोले का एक ओर अन्य नाम ‘दूधेश्वर’ पड़ गया. लोक मान्यता के अनुसार, गुरु द्रोणाचार्य को भगवान शिव ने इसी जगह पर अस्त्र-शस्त्र और धनुर्विद्या का भी ज्ञान दिया था. इस प्रसंग का महाभारत में भी उल्लेख है.

कैसे पहुंचे टपकेश्वर महादेव?
ऐतिहासिक टपकेश्वर महादेव मंदिर देहरादून शहर से लगभग 6 किलोमीटर दूर गढ़ी कैंट पर स्थित है. सावन के महीने में बड़ा मेला लगता है. दर्शन के लिए लंबी लाइन लगी रहती है. ऐसी मान्यता है कि मंदिर में सावन के महीने में जल चढ़ाने से भक्तों की मनोकामना पूरी हो जाती हैं. मंदिर जाने के लिए सबसे नजदीक देहरादून रेलवे स्टेशन और बस अड्डा है. प्रसिद्ध टपकेश्वर मंदिर का वास्तुकला प्राकृतिक और मानव निर्मित का खूबसूरत संगम है. यह मंदिर दो पहाड़ियों के बीच है.

Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी, राशि-धर्म और शास्त्रों के आधार पर ज्योतिषाचार्य और आचार्यों से बात करके लिखी गई है. किसी भी घटना-दुर्घटना या लाभ-हानि महज संयोग है. ज्योतिषाचार्यों की जानकारी सर्वहित में है. बताई गई किसी भी बात का Bharat.one व्यक्तिगत समर्थन नहीं करता है.

Hot this week

Recipe achari Bharwa baigan| अचारी बैंगन की रेसिपी

भरवा बैंगन अचारी छोटे-छोटे बैंगनों में खट्टे–चटपटे अचारी...

भगवान जब इच्छा पूरी नहीं करते हैं तो भक्ति पर संदेह होने लगता है, क्या करें?

https://www.youtube.com/watch?v=uBhm-OddgE8 Premanand Maharaj Pravachan: इसमें कोई दोराय नहीं है...

Topics

Recipe achari Bharwa baigan| अचारी बैंगन की रेसिपी

भरवा बैंगन अचारी छोटे-छोटे बैंगनों में खट्टे–चटपटे अचारी...

भगवान जब इच्छा पूरी नहीं करते हैं तो भक्ति पर संदेह होने लगता है, क्या करें?

https://www.youtube.com/watch?v=uBhm-OddgE8 Premanand Maharaj Pravachan: इसमें कोई दोराय नहीं है...
spot_img

Related Articles

Popular Categories

spot_imgspot_img