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भगवान विष्णु का दूसरा अवतार कौन सा है? समुद्र मंथन और इंद्र के श्राप मुक्ति से जुड़ी है घटना, पढ़ें कथा


भगवान विष्णु के कुल 24 अवतारों में से एक है द्वितीय अवतार कूर्म यानी कछुआ का अवतार है. कूर्म अवतार कौन से नंबर का अवतार है, इस बारे में पुराणों में अलग-अलग बातें बताई गई हैं. नरसिंह पुराण के अनुसार, कूर्म अवतार भगवान विष्णु का द्वितीय अवतार है. समुद्र मंथन के समय भगवान विष्णु को कच्छप अवतार लेना पड़ा था.

वैशाख महीने की पूर्णिमा को कच्‍छप यानी कूर्म जयंती मनाई जाती है, इस दिन से घर, फैक्ट्री, दुकान आदि किसी भी भवन आदि का निर्माण संबंधी कार्य शुरू करना बहुत शुभ होता है. कूर्म जयंती पर वास्तु पूजन कर वास्तु दोष दूर किया जा सकता है. वास्तु शास्त्र में वर्णित कूर्म अवतरण के दिन घर में चांदी का कछुआ लाना बहुत शुभ होता है. जिस घर में धातु से बना कछुआ रहता है, वहां लक्ष्मी जी स्थायी निवास करती हैं, वहां कभी भी धन की कमी नहीं रहती. कूर्म अवतार में भगवान श्री विष्णु ने समुद्र मंथन के दौरान पूरी पृथ्वी का भार अपने ऊपर लिया था, तब से आज भी मकान बनाते समय वास्तु पूजन के दौरान चांदी का कछुआ नींव में दबाया जाता है.

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क्यों लिया भगवान विष्णु ने कूर्म अवतार
पद्म पुराण के अनुसार देवताओं व राक्षसों ने जब मंदराचल पर्वत को समुद्र में डालकर मंथन करना शुरू किया तो आधार नहीं होने की वजह से पर्वत समुद्र में डूबने लगा. यह देख भगवान विष्णु ने कूर्म यानी कछुए का विशालकाय रूप धारण किया और समुद्र में मंदराचल पर्वत को अपनी पीठ पर रख लिया, उसके बाद ही समुद्र मंथन पूरा हुआ था.

कच्छप अवतार की पौराणिक कथा
दुर्वासा ऋषि ने अपना अपमान होने के कारण देवराज इन्द्र को लक्ष्मीहीन हो जाने का शाप दे दिया था. भगवान विष्णु ने इंद्र को शाप मुक्ति के लिए असुरों के साथ ‘समुद्र मंथन’ के लिए कहा. तब देवों ने असुरों को अमृत का लालच देकर उनके साथ मिलकर समुद्र मंथन किया.

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भगवान ने रखा मोहिनी रूप
देवताओं की ओर से इंद्र और असुरों की ओर से विरोचन प्रमुख थे. समुद्र मंथन के लिए सभी ने मिलकर मदरांचल पर्वत को मथनी एवं नागराज वासुकि को रस्सी बनाया परंतु नीचे कोई आधार नहीं था तो मंदराचल पर्वत समुद्र में डूबने लगा यह देखकर भगवान विष्णु ने विशालकाय कछुए का स्वरूप धारण किया.

उन्होंने अपनी पीठ पर मंदराचल पर्वत को रख लिया, इसके बाद समुद्र मंथन करने से एक-एक करके कुल 14 रत्न निकले. 14वां रत्न अमृत से भरा सोने का घड़ा था, जिसके लिए देवता और असुरों में युद्ध प्रारंभ हो गया. तब इन्हीं भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण करके देवता और असुरों को अमृत बांटने का कार्य किया था.


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https://hindi.news18.com/news/dharm/who-is-lord-vishnu-second-avatar-kurma-incident-related-on-samudra-manthan-and-indra-liberation-know-kurma-katha-in-hindi-8656451.html

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