Gay Yog In Kundali: प्रकृति ने औरत-आदमी को एक-दूसरे का पूरक बनाया है. सनातन धर्म में इसे प्रकृति-पौरुष का मेल कहा गया है. इसी तरह दूसरे धर्मो में इन्हे आदम-हव्वा या एडम-ईव के नाम से संबोधित किया जाता है. दोनों स्वतंत्र पहचान के मालिक तो हैं ही, लेकिन ये दोनों कुछ इस तरह से साथ जुड़े हुए हैं कि इन्हें संपूर्णता एक-दूसरे के साथ ही मिलती है. औरत-आदमी का संबंध सामाजिक व पारिवारिक पहलू से भी बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण है क्योंकि ये परिवार को आगे बढ़ाने के लिए जरूरी है. किसी भी व्यक्ति की यौन पसंद अर्थात एक दूसरे के प्रति काम इच्छा स्वाभाविक है परंतु जब कभी औरत की काम इच्छा दूसरी औरत के प्रति हो और आदमी की काम इच्छा दूसरे आदमी के प्रति हो तो यह स्थिति असमंजसकारी हो जाती है. ऐसे में अगर रिश्ते बन जाएं तो इसे समलैंगिकता कहा जाता है. पुरुष समलिंगी को “गे” व महिला समलिंगी को “लैस्बियन” कहते हैं.
कुंडली में ग्रहों की इन स्थितियों से लोग होते हैं होमोसेक्सुअल
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार होमोसेक्सुअलिटी का कारण कुंडली में शुक्र का नकारात्मक प्रभाव, सप्तम, अष्टम, द्वादश और पंचम भाव के स्वामी तथा सूर्य के अलावा बुध, शनि और केतु की स्थिति भी है. कुंडली का पंचवा भाव आदत, प्रकृति व रिश्तों का प्रतीक है, अतः समलैंगिकता की शुरुआत इसी भाव से होती है.
अष्टम और द्वादश भाव यह बताता है कि जातक की यौन आदतें कैसी होंगी. वैदिक ज्योतिष में सभी नौ ग्रहों को प्रवृति के हिसाब से तीन लिंगों में बांटकर देखा जाता है. इनमें सूर्य, बृहस्पति व मंगल को पुरुष माना जाता है. चंद्र, शुक्र व राहु को स्त्री ग्रह माना जाता है. बुध, शनि और केतु को तीसरा लिंग यानी नपुंसक माना जाता है.
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इसके पीछे तर्क यह है कि बुध को बाल ग्रह कहा जाता है, जिससे वह यौन कार्यों के योग्य नहीं होते, इस तरह शनि प्रौढ़ होने के नाते प्रजनन के विपरीत माना जाता है. केतु को संन्यासी ग्रह का दर्जा दिया जाता है, अतः वह भोग से दूर मोक्ष प्रदान करता है. इन ग्रहों के बलवान और विपरीत प्रभाव कुंडली में इस तरह देखे गए हैं.
वैदिक ज्योतिष अनुसार समलैंगिक लोगों की कुंडली में बुध ग्रह की बड़ी भूमिका देखी जाती है. साथ ही उन पर शनि और केतु का भी प्रभाव होता है, इसलिए यह देखा जाता है कि जो लोग विभिन्न कलाओं में निपुण होते हैं, उनमें ऐसी प्रवृति पाई जाती है. इसके अलावा अकेले शनि से प्रभावित लोग दरिद्र अवस्था में रहते हैं और उनकी नपुंसकता के चलते समाज में दुत्कारे जाते हैं.
केतु यौन जीवन से कर देता है अलग
अगर केतु अधिक प्रभावशाली होता है तो जातक को मानसिक रूप से सामान्य यौन जीवन से अलग कर देता है. अत्याधिक बुरे प्रभाव में जातक को पागल माना जाता है. नहीं तो वह साधु या साध्वी बनकर जीवन गुजारता है.
वैदिक ज्योतिष के अनुसार जब व्यक्ति की कुंडली में शुक्र ग्रह कन्या राशि का हो तथा शनि और मंगल सातवें घर में हों तो जातक में समलैंगिकता का रुझान देखने को मिल जाता है. इसके अलवा 27 नक्षत्रों में मृगशिरा, मूल व शतभिषा को समलैंगिकता से जोड़ कर देखा जाता है.
FIRST PUBLISHED : September 27, 2024, 08:11 IST
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