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भोले बाबा की इन 8 बस्तियों में बरसती है कृपा, नहीं होती है किसी भी चीज की कमी, आईआईटी ने भी लगाई मुहर


भारत प्राचीन काल से ही कृषि प्रधान देश रहा है, जिसकी जड़ें लगभग 8000 ईसा पूर्व तक जाती हैं. यहां की उपजाऊ भूमि पर कृषि आज से लगभग 10000 वर्ष पूर्व से की जा रही है. हैरानी तो ये है कि, शिवजी के 8 प्रसिद्ध मंदिर भी पूजा-पाठ के अलावा ये क्षेत्र की उत्पादकता की वजह से भी खास हैं. जी हां, IIT-रुड़की, अमृता विश्वविद्यालय (कोयंबटूर) और स्वीडन के उप्साला विश्वविद्यालय के शोध में दावा किया गया है, कि 1350 ईस्वी से पहले बने आठ प्रमुख शिव मंदिर ऐसे इलाकों में हैं, जहां जल, ऊर्जा और खेती की बेहतरीन संभावनाएं थीं. ये मंदिर हैं- केदारनाथ (उत्तराखंड), कलेश्वरम (तेलंगाना), श्रीशैलम (आंध्र प्रदेश), कलवियूर, रामेश्वरम, चिदंबरम, कांचीपुरम और तिरुवन्नामलई (तमिलनाडु).

IIT रुड़की की इस रिसर्च में दावा किया गया है कि इन मंदिरों को खासतौर पर उन्हीं इलाकों में बनाया गया है जहां पानी, ऊर्जा और खाद्य उत्पादकता के लिहाज से आसपास के इलाके से सबसे उन्नत थे. यानी अगर कहा जाए कि इन मंदिरों को उन ही इलाकों में बनाया गया जहां दूसरे क्षेत्रों की तुलना में ज्यादा उत्पादक थे तो इसमें कुछ भी गलत नहीं होगा.

सालाना 44 मिलियन टन चावल का उत्पादन संभव

रिसर्च के मुताबिक, इन 8 प्राचीन शिव मंदिर जल, ऊर्जा और खाद्य उत्पादकता की प्रबल संभावनाओं वाले क्षेत्रों में स्थित थे. शिव शक्ति अक्ष रेखा (SSAR) क्षेत्र के 18.5% भू-भाग – जहां ये मंदिर स्थित हैं. इन मंदिर के पास अगर खेती की जाए तो सालाना 44 मिलियन टन तक चावल का उत्पादन किया जा सकता है. इससे भारत के विकास को और तेजी से बढ़ाने में मदद मिल सकती है.

कभी घना वन क्षेत्र हुआ करता था

शोध से पता चला है कि उस काल में वन क्षेत्र (फॉरेस्ट एरिया) आज की तुलना में लगभग 2.4 गुना अधिक सघन था, जिसके परिणामस्वरूप मृदा धारण क्षमता बेहतर हुई और पारिस्थितिक स्थिरता भी बेहतर हुई. हालांकि बारिश की मात्रा वर्तमान स्तर से भिन्न थी, फिर भी उनका भौगोलिक वितरण काफी हद तक स्थिर रहा, जिससे सदियों तक विश्वसनीय कृषि परिस्थितियां सुनिश्चित रहीं. मंदिरों के स्थान सीधे उन क्षेत्रों से संबंधित थे जहां सालभर जल स्रोतों, उपजाऊ भूमि और जलविद्युत या सौर ऊर्जा उत्पादन की क्षमता थी.

नई तकनीक की मदद से रिसर्च संभव

इस रिसर्च में GIS और रिमोट सेंसिंग तकनीक का उपयोग किया गया था. उन्होंने मंदिरों के आस-पास भूमि का स्वरूप, वर्षा, जंगल, मिट्टी और कृषि डेटा का विश्लेषण किया. शोध में पाया गया कि पहले इन क्षेत्रों में जंगल आज से 2.4 गुना ज्यादा घने थे. इससे मिट्टी अच्छी रहती थी और पर्यावरण संतुलित रहता था. बारिश का पैटर्न समय के साथ थोड़ा बदल गया, लेकिन जगह-जगह कृषि के लिए भरोसेमंद रही.

रिसर्च के जरिए भारत को संदेश

स्टडी से पता चला कि मंदिरों की जगह सिर्फ पवित्र नहीं, बल्कि रणनीतिक और पर्यावरण के अनुकूल थी. आईआईटी-रुड़की के निदेशक प्रो. कमल किशोर पंत ने कहना है कि यह दिखाता है कि प्राचीन ज्ञान और आधुनिक विज्ञान एक-दूसरे के पूरक हो सकते हैं.


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https://hindi.news18.com/news/dharm/ancient-lord-shiva-temples-reveal-secrets-for-sustainable-water-energy-and-food-rich-zones-in-india-iit-study-ws-kl-9661801.html

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