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शिव की नगरी में मां कालरात्रि के मंदिर की अद्भुत कथा, सैकड़ों वर्षों तक मां ने इसलिए यहां की थी तपस्या


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मां कालरात्रि की पूजा से तांत्रिक बाधा, भूत-प्रेत या अकाल मृत्यु का भय समाप्त होता है और भक्त को अविचलित साहस, ज्ञान और आत्मबल की प्राप्ति होती है. शारदीय नवरात्रि की सप्तमी तिथि पर मां दुर्गा के सप्तम स्वरूप मां कालरात्रि की पूजा होती है. शिव की नगरी काशी में मां कालरात्रि का मंदिर है, जहां भगवान शंकर से रुष्ट होकर माता पार्वती ने सैकड़ों वर्षों तक कठोर तपस्या की थी.

शिव की नगरी में मां कालरात्रि के मंदिर की अद्भुत कथा, शिव से रुष्ट होकर....

नवरात्रि के सातवें दिन रविवार को उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के चौक क्षेत्र में स्थित माता कालरात्रि मंदिर में सुबह से ही भक्तों की भीड़ उमड़ने लगी. श्रद्धालु मां के दर्शन-पूजन कर अकाल मृत्यु के भय से मुक्ति की कामना करते दिखे. माता कालरात्रि की उपासना नवरात्रि के सातवें दिन विशेष मानी जाती है. नवरात्रि में सबसे विशेष दिन सप्तमी का होता है. मां कालरात्रि काजल के स्वरूप वाली हैं. उनके इस स्वरूप को बेहद ही दयालु कहा जाता है. मां नाना प्रकार के आयुध से विराजमान रहती हैं.

माता पार्वती ने की थी कठोर तपस्या
कालरात्रि मंदिर के महंत राजीव ने बताया कि मान्यता है कि मां कालरात्रि के पूजन से अकाल मृत्यु का संकट दूर हो जाता है. शिव की नगरी काशी का यह अद्भुत और इकलौता मंदिर है, जहां भगवान शंकर से रुष्ट होकर माता पार्वती ने सैकड़ों वर्षों तक कठोर तपस्या की थी. उन्होंने कहा कि यह सिद्ध मंदिर अपनी दिव्यता और आध्यात्मिक ऊर्जा के लिए प्रसिद्ध है. विधि-विधान से पूजा करने से मां का आशीर्वाद मिलता है. मां को बेहद ही दयालु माना जाता है. यहां तो पूरे साल भीड़ देखने को मिलती है, लेकिन नवरात्रि की सप्तमी तिथि को भीड़ ज्यादा हो जाती है.

मां कालरात्रि का विकराल स्वरूप
श्रद्धालुओं ने बताया कि सुबह से ही मंदिर में भीड़ लगी हुई है. जो भी भक्त एक बार मंदिर परिसर में पहुंचता है, उसका मन मां के ध्यान में स्वतः ही लीन हो जाता है. मां कालरात्रि का स्वरूप जितना विकराल प्रतीत होता है, उतना ही सौम्य और करुणामयी भी है. श्रद्धालुओं ने कहा कि परंपरा के अनुसार, मां के चरणों में गुड़हल के पुष्प, लाल चुनरी, नारियल, फल, मिष्ठान, सिंदूर, रोली, इत्र और द्रव्य अर्पित करना विशेष रूप से फलदायी माना गया है. भक्त विश्वास रखते हैं कि माता अपने दरबार में आने वाले प्रत्येक साधक की मनोकामना पूरी करती हैं. मंदिर में सुरक्षा के विशेष प्रबंध किए गए हैं. मंदिर के आसपास पुलिस बल भी तैनात किए गए हैं.

मां कालरात्रि पूजा का महत्व
शारदीय नवरात्रि की महासप्तमी पर मां कालरात्रि पूजा करने से भक्त को भयमुक्त जीवन और दिव्य आशीर्वाद प्राप्त होता है. माता के आशीर्वाद से तांत्रिक बाधा, जादू-टोना, भूत-प्रेत या अकाल मृत्यु का भय समाप्त होता है. मां कालरात्रि को ही काली, शुभंकरी और भयहरणी भी कहा जाता है. मां कालरात्रि कृष्णवर्णा (गहरे श्याम रंग) हैं. माता की चार भुजाएं हैं, मां के एक हाथ में खड्ग (तलवार), दूसरे में वज्र या आयुध और दो हाथ अभय और वरद मुद्रा में हैं. माता का वाहन गर्दभ (गधा) है और बाल बिखरे हुए, गले में विद्युत् जैसी ज्योति, शरीर पर तेल का लेप, और गले में माला है.

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