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सीता बनकर जंगल में प्रकट हुईं ये देवी, प्रभु श्रीराम की ली परीक्षा, लेकिन क्यों करना पड़ा आत्मदाह?


वनवास के समय प्रभु श्रीराम और उनके छोटे भाई लक्ष्मण सीता जी की खोज में जंगल-जंगल भटक रहे थे. उसी बीच एक देवी जंगल में प्रकट होती हैं और वह सीता का स्वरूप धारण कर लेती है. वह भगवान राम की परीक्षा लेती हैं, लेकिन श्रीराम उनका भेद जान जाते हैं. उसके बाद कुछ ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न होती हैं कि उस देवी को बहुत ही संताप होता है, उसके परिणाम स्वरूप उनको आत्मदाह करना पड़ता है. तुलसीदास रचित रामचरितमानस में इस घटना का वर्णन विस्तार से किया गया है.

शिवजी ने किया राजपुत्र को प्रणाम तो उपजा संदेह
रामचरितमानस के अनुसार, सीता हरण के बाद राम और लक्ष्मण जी उनकी तलाश कर रहे थे. भगवान विष्णु के रामावतार की इस लीला को देखकर भगवान शिव ने उनको प्रणाम करते हुए कहा कि जगत को पवित्र करने वाले सच्चिदानंद की जय हो. सती ने शिव जी को देखा और सोचा कि पूरा संसार जिनकी पूजा करता है, वे एक राजपुत्र को सच्चिदानंद परमधाम कहकर प्रणाम क्यों कर रहे हैं. उनकी शोभा देखकर वे प्रेममग्न क्यों हैं? जो सर्वज्ञ, सर्वव्यापक ब्रह्म है, वह देह धारण करके मनुष्य हो सकता है? मनुष्य शरीर धारण करने वाले भगवान विष्णु क्या अज्ञानी की तरह स्त्री को खोजेंगे? फिर शिव जी के वचन भी झूठे नहीं हो सकते. इस वजह से सती के मन में संदेह ने जन्म ले लिया.

सती ने धारण किया सीता स्वरूप, पहुंची श्रीराम के पास
सती के मन के संदेह को भगवान शिव जान चुके थे. उन्होंने कहा कि ऐसा संदेह अपने मन में नहीं रखना चाहिए. जिनकी भक्ति मैंने की है, ये वही मेरे इष्टदेव श्रीरघुवीर जी हैं. इन्होंने ही रघुकुल में मनुष्य रूप धारण किया है. शिवजी के समझाने के बाद भी सती नहीं मानीं. शिव जी बड़ के पेड़ की छांव में बैठ गए और उनके कहने पर सती श्रीराम जी की परीक्षा लेने चली गईं.

यह भी पढ़ें: कलियुग में ‘राम नाम’ से कैसे पूरी कर सकते हैं मनोकामनाएं? रामचरितमानस में तुलसीदास जी ने बताए हैं राम कथा सुनने के फायदे

सती ने माता सीता का रूप धारण किया और प्रभु राम के मार्ग में आ गईं. प्रभु राम जिधर जाते, उनके आगे सीता स्वरूप में सती आ जातीं. सती के स्वरूप को देखकर लक्ष्मण जी आश्चर्य में पड़ गए. वे भ्रमित हो गए. उनके बार बार ऐसा करने पर प्रभु राम रूक गए और हाथ जोड़कर उनको प्रणाम किया और अपना परिचय दिया. फिर सती से पूछा कि वृषकेतु शिवजी कहां हैं? आप यहां वन में अकेली किसलिए घूम रही हैं? इतना सुनकर सती जी संकोच में पड़ गईं और शिव जी के पास आ गईं.

सती को हुआ अपार दुख
इस घटना के बाद सती के मन में बड़ा ही दुख हुआ. अब शिवजी को वह क्या उत्तर दें. उधर प्रभु राम समझ गए कि सती दुखी हैं. प्रभु राम की माया से सती को अपने आगे राम, सीता, लक्ष्मण जी साथ में जाते हुए दिखाई दिए. उनको हर जगह श्रीराम और सीता जी की सुंदर छवि दिखाई देने लगी. उन्होंने देखा कि सभी देवी, देवता, ऋषि, मनुष्य, सब राम और सीता जी की पूजा कर रहे हैं. यह सब देखकर सती डर गईं और वहीं पर आंखें बंदकर बैठ गईं. कुछ देर बाद शिवजी ने उनसे पूछा कि आपने प्रभु राम की परीक्षा कैसे ली? सती ने कुछ नहीं बताया, लेकिन शिव जी ने सब जान लिया था.

शिव जी ने किया सती से न मिलने का संकल्प
सती ने सीता जी का वेष धारण करके उनके आराध्य प्रभु राम की परीक्षा ली, इसे बार से शिव जी के मन में बड़ा दुख हुआ. उन्होंने सोचा कि अब सती से प्रेम करेंगे तो ​उनकी भक्ति लुप्त होगी, सती परम पवित्र हैं तो उनको छोड़ भी नहीं सकते. तब महादेव ने श्रीराम को प्रणाम किया और सती से यानी पति और पत्नी के रूप में न मिलने का संकल्प किया. उसके बाद वे कैलाश चले गए. तभी रास्ते में भविष्यवाणी हुई कि हे महादेव! आपकी भक्ति की जय हो.

सती जान गईं, शिव ने कर दिया है उनका त्याग
सती ने उस भविष्यवाणी के बारे में पूछा, लेकिन शिव जी ने नहीं बताया. सती समझ गईं कि उन​के शिव ने सबकुछ जान लिया. इससे सती को लगा कि उन्होंने शिवजी से छल किया है. वे सोचने लगीं कि सब जानते हुए भी शिव जी ने उनके अपराध को नहीं कहा. इससे सती के मन में बड़ी पीड़ा हुई. सती यह भी जान गईं कि शिव ने उनका त्याग कर दिया है. कैलाश पर पहुंचकर शिव जी अखंड समाधि यानी 87 हजार साल तक समाधि में लीन रहे.

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सती ने शरीर त्याग के लिए प्रभु राम से की विनती
शिव जी समाधि में थे और सती काफी दुखी थीं. सती ने प्रभु श्रीराम का स्मरण किया और विनती की कि यह शरीर जल्द ही छूट जाए. उन्होंने कहा कि शिव से उनका प्रेम सत्य है तो आप कुछ ऐसा उपाय करें कि उनका यह जीवन खत्म हो जाए और शिव से विरह की पीड़ा समाप्त हो. इसके बाद शिव जी समाधि से बाहर आए.

प्रजापति दक्ष के यज्ञ कुंड में सती ने किया आत्मदाह
इसके बाद ही प्रजापति दक्ष ने अपने घर पर यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें सभी को आमंत्रित किया, लेकिन शिव और सती को नहीं बुलाया. सती ​पिता दक्ष के यज्ञ में शिव आज्ञा के बिना गईं. वहां पर दक्ष ने उनका और शिव का अपमान किया, जिससे सती अत्यंत क्रोधित हो उठीं. सती ने उस यज्ञ की अग्नि में अपने शरीर का दाह कर दिया और इस प्रकार से उनको इस शरीर से मुक्ति मिल गई.

यह कथा रामचरितमानस में इस प्रकार से बताई गई है. हालां​कि शिव पुराण में आपको इसकी कथा में कुछ भिन्नता मिल सकती है.


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https://hindi.news18.com/news/dharm/sati-ke-atamdah-ki-katha-goddess-appeared-as-sita-and-tested-load-rama-shiv-shankar-become-sad-know-ramayana-pauranik-kahani-8833543.html

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