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Bhagwan ke sapne : महादेव और जगतपालक नारायण के सपनों के रहस्य को सुलझाया देवी उमा ने, पढ़ें रोचक कहानी


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Bhagwan ke sapne : भगवान विष्णु ने स्वप्न में भगवान शिव के दर्शन किए और कैलाश पहुंचे. शिव और विष्णु का मिलन हुआ. उमा ने कहा, कैलाश और वैकुण्ठ एक ही हैं. विष्णु बोले, शिव ही मेरे प्रियतम हैं.

भगवान विष्णु और शिव के अद्भुत स्वप्न और मिलन की कहानी

हाइलाइट्स

  • भगवान विष्णु ने स्वप्न में शिव के दर्शन किए.
  • विष्णु और शिव का कैलाश पर मिलन हुआ.
  • उमा ने कहा, कैलाश और वैकुण्ठ एक ही हैं.

Bhagwan ke sapne : इस जगत के पालनहार भगवान विष्णु ने चिरनिद्रा के दौरान एक स्वप्न देखा. उसे स्वप्न को देखकर नारायण अचानक उठकर बैठ गये. स्वप्न बहुत ही सुंदर था जिसमें उन्होंने भगवान भोलेनाथ की दर्शन किये. इस सुंदर स्वप्न से संबंधित कहानी को लिए विस्तार से जानते हैं.

भगवान विष्णु का सपना : एक बार भगवान नारायण वैकुण्ठलोक में सोये हुए थे. उन्होंने स्वप्न में देखा कि करोड़ों चन्द्रमाओं की कांतिवाले, त्रिशूल-डमरू-धारी, स्वर्णाभरण-भूषित, सुरेन्द्र-वन्दित, सिद्धिसेवित त्रिलोचन भगवान शिव प्रेम और आनन्दातिरेक से उन्मत्त होकर उनके सामने नृत्य कर रहे हैं. उन्हें देखकर भगवान विष्णु हर्ष से गद्गद् हो उठे और अचानक उठकर बैठ गये, कुछ देर तक ध्यानस्थ बैठे रहे. उन्हें इस प्रकार बैठे देखकर श्रीलक्ष्मी जी पूछने लगीं, भगवन! आपके इस प्रकार अचानक निद्रा से उठकर बैठने का क्या कारण है? भगवान ने कुछ देर तक उनके इस प्रशन का कोई उत्तर नहीं दिया और आनंद में निमग्न हुए चुपचाप बैठे रहे. कुछ देर बाद हर्षित होते हुए बोले मैंने अभी स्वप्न में भगवान श्रीमहेश्वर का दर्शन किया है. उनकी छवि ऐसी अपूर्व आनंदमय एवं मनोहर थी कि देखते ही बनती थी. मालूम होता है महादेव ने मुझे स्मरण किया है. अहोभाग्य, चलो, कैलाश में चलकर हम लोग महादेव के दर्शन करें.

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महादेव का सपना  : ऐसा विचार कर दोनों कैलाश की ओर चल दिये. भगवान शिव के दर्शन के लिए कैलाश मार्ग पर आधी दूर गये होंगे कि देखते हैं भगवान शंकर स्वयं गिरिजा के साथ उनकी ओर चले आ रहे हैं. अब भगवान के आनंद का तो ठिकाना ही नहीं रहा. मानों घर बैठे निधि मिल गयी. पास आते ही दोनों परस्पर बड़े प्रेम से मिले. ऐसा लगा, मानों प्रेम और आनंद का समुद्र उमड़ पड़ा. एक-दूसरे को देखकर दोनों के नेत्रों से आनन्दाश्रु बहने लगे और शरीर पुलकायमान हो गया. दोनों ही एक-दूसरे से लिपटे हुए कुछ देर मूकवत् खड़े रहे. प्रशनोत्तर होने पर मालूम हुआ कि शंकर जी को भी रात्रि में इसी प्रकार का स्वप्न हुआ कि मानों विष्णु भगवान को वे उसी रूप में देख रहे हैं, जिस रूप में अब उनके सामने खड़े थे.

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नारद मुनि हुए भ्रमित  : दोनों के स्वप्न के वृत्तान्त से अवगत होने के बाद दोनों एक-दूसरे को अपने निवास ले जाने का आग्रह करने लगे. नारायण ने कहा कि वैकुण्ठ चलो और भोलेनाथ कहने लगे कि कैलाश की ओर प्रस्थान किया जाये. दोनों के आग्रह में इतना अलौकिक प्रेम था कि यह निर्णय करना कठिन हो गया कि कहां चला जाय? इतने में ही क्या देखते हैं कि वीणा बजाते, हरिगुण गाते नारद जी कहीं से आ निकले. बस, फिर क्या था? लगे दोनों उनसे निर्णय कराने कि कहां चला जाय? बेचारे नारदजी तो स्वयं परेशान थे, उस अलौकिक-मिलन को देखकर. वे तो स्वयं अपनी सुध-बुध भूल गये और लगे मस्त होकर दोनों का गुणगान करने. अब निर्णय कौन करे? अंत में यह तय हुआ कि भगवती उमा जो कह दें वही ठीक है. भगवती उमा पहले तो कुछ देर चुप रहीं. अंत में वे दोनों की ओर मुख करते हुए बोलीं, “हे नाथ, हे नारायण, आप लोगों के निश्चल, अनन्य एवं अलौकिक प्रेम को देखकर तो यही समझ में आता है कि आपके निवास अलग-अलग नहीं हैं, जो कैलाश है, वही वैकुण्ठ है और जो वैकुण्ठ है, वही कैलाश है, केवल नाम में ही भेद है.

यहीं नहीं मुझे तो ऐसा प्रतीत होता है कि आपकी आत्मा भी एक ही है. केवल शरीर देखने में दो हैं. और तो और मुझे तो स्पष्ट लग रहा है कि आपकी भार्या भी एक ही हैं. जो मैं हूं, वही लक्ष्मी हैं और जो लक्ष्मी हैं, वही मैं. केवल इतना ही नहीं, मेरी तो अब यह दृढ़ धारणा हो गयी है कि आप लोगों में से एक के प्रति जो द्वेष करता है, वह मानों दूसरे के प्रति ही करता है. एक की जो पूजा करता है, वह मानों दूसरे की भी पूजा करता है. मैं तो तय समझती हूं कि आप दोनों में जो भेद मानता है, उसका चिरकाल तक घोर पतन होता है. मैं देखती हूं कि आप मुझे इस प्रसंग में अपना मध्यस्थ बनाकर मानो मेरी प्रवंचना कर रहे हैं, मुझे असमंजस में डाल रहे हैं, मुझे भुला रहे हैं. अब मेरी यह प्रार्थना है कि आप लोग दोनों ही अपने-अपने लोक को पधारिये. श्रीविष्णु यह समझें कि हम शिव रूप में वैकुण्ठ जा रहे हैं और महेश्वर यह मानें कि हम विष्णु रूप में कैलाश-गमन कर रहे हैं.

एक ही हैं महादेव और नारायण : इस उत्तर को सुनकर दोनों परम प्रसन्न हुए और भगवती उमा की प्रशंसा करते हुए, दोनों ने एक-दूसरे को प्रणाम किया और अत्यंत हर्षित होकर अपने-अपने लोक को प्रस्थान किया. लौटकर जब श्रीविष्णु वैकुण्ठ पहुंचे तो श्रीलक्ष्मी जी ने उनसे प्रशन किया, “हे प्रभु, आपको सबसे अधिक प्रिय कौन है?” भगवन बोले, प्रिये, मेरे प्रियतम केवल श्रीशंकर हैं. देहधारियों को अपने देह की भांति वे मुझे अकारण ही प्रिय हैं. एक बार मैं और श्रीशंकर दोनों पृथ्वी पर घूमने निकले. मैं अपने प्रियतम की खोज में इस आशय से निकला कि मेरी ही तरह जो अपने प्रियतम की खोज में देश-देशान्तर में भटक रहा होगा, वही मुझे अकारण प्रिय होगा. थोड़ी देर के बाद मेरी श्री शंकर जी से भेंट हो गयी. वास्तव में मैं ही जनार्दन हूं और मैं ही महादेव हूं. अलग-अलग दो घड़ों में रखे हुए जल की भांति मुझमें और उनमें कोई अंतर नहीं है. शंकरजी के अतिरिक्त शिव की चर्चा करने वाला शिवभक्त भी मुझे अत्यंत प्रिय है. इसके विपरीत जो शिव की पूजा नहीं करते, वे मुझे कदापि प्रिय नहीं हो सकते.”

इस तरह जो शिव की पूजा करता है वह वैकुंठवासी विष्णु को भी स्वीकार है और जो श्री विष्णु की वंदना करता है, वह त्रिपुरारी को भी मना लेता है.

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भगवान विष्णु और शिव के अद्भुत स्वप्न और मिलन की कहानी


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https://hindi.news18.com/news/dharm/vishnu-and-shiva-dream-and-meeting-story-know-this-rochak-kahani-in-hindi-9036599.html

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