Dussehra 2025 Shastra Puja: दशहरा का त्योहार हर साल नवरात्रि के समापन के अगले दिन यानि आश्विन शुक्ल दशमी तिथि को होता है. दशहरा के दिन दुर्गा विसर्जन करते हैं और शाम के समय में रावण दहन होता है. दशहरा के अवसर पर देवी अपराजिता और शस्त्र पूजा का विधान है. इस दिन लोग अपने शस्त्रों की पूजा करते हैं. देवी अपराजिता के आशीर्वाद से व्यक्ति के साहस और पराक्रम में बढ़ोत्तरी होती है, उसे सफलता मिलती है. शत्रुओं के खिलाफ किए गए कार्य सफल होते हैं. आइए जानते हैं दशहरा पर शस्त्र पूजा विधि, मुहूर्त के बारे में.
दशहरा शस्त्र पूजा मुहूर्त
इस साल दशहरा पर शस्त्र पूजा का मुहूर्त दोपहर में 02 बजकर 09 मिनट से दोपहर 02 बजकर 56 मिनट तक है. इस समय में शस्त्र पूजा कर लेनी चाहिए. शस्त्र पूजा के समय अमृत-सर्वोत्तम मुहूर्त बन रहा है. यह मुहूर्त दोपहर 01:28 पी एम से दोपहर 02:51 पी एम तक है.
2 शुभ योग में होगी शस्त्र पूजा
दशहरा की शस्त्र पूजा के समय 2 शुभ योग बनेंगे. शस्त्र पूजा के समय सुकर्मा योग और रवि योग बनेंगे. सुकर्मा योग सुबह से लेकर रात 11 बजकर 29 मिनट तक है. उसके बाद से धृति योग बनेगा. वहीं रवि योग पूरे दिन बना है. दशहरा पर शस्त्र पूजा के वक्त श्रवण नक्षत्र सुबह में 09:13 ए एम से है, जो उसके बाद पूर्ण रात्रि तक है.
दशहरा शस्त्र पूजा विधि
1. दशहरा के दिन सभी शस्त्रों को एक जगह पर एकत्र करके रख लेते हैं. उनकी साफ-सफाई करते हैं.
2. उसके बाद सभी शस्त्रों पर गंगाजल का छिड़काव करते हैं. फिर कुमकुम और हल्दी से उन पर तिलक लगाते हैं.
3. फिर फूल, अक्षत्, शमी के पत्ते आदि अर्पित करके शस्त्रों की पूजा करते हैं. इस दौरान आप “शस्त्र देवता पूजनम्, रक्षा कर्ता पूजनम्” मंत्र का उच्चारण करें.
4. इस दिन शमी वृक्ष के मंत्र को भी पढ़ते हैं. शमी शमी महाशक्ति सर्वदुःख विनाशिनी। अर्जुनस्य प्रियं वृक्षं शमी वृक्षं नमाम्यहम्॥”
5. शस्त्र पूजा के समय देवी अपराजिता के मंत्र ओम अपराजितायै नम: का उच्चारण कर सकते हैं. देवी अपराजिता की कृपा से आप हमेशा विजयी होंगे.
शस्त्र पूजा का महत्व
दशहरा के दिन भारतीय सेना शस्त्र पूजा करती है. शस्त्र पूजा राजाओं के समय में भी होता था. शस्त्र को साहस और पराक्रम का प्रतीक मानते हैं. शस्त्र पूजा के दिन राजा अपने राज्य की सीमा से आगे निकलते थे. इसे प्रगति का प्रतीक मानते थे.
इस दिन की गई पूजा से विजय, साहस, सफलता और समृद्धि प्राप्त होती है. यह अधर्म पर धर्म की जीत का प्रतीक है. शस्त्र पूजा हमें इस बात का स्मरण कराता है कि इसका उपयोग केवल धर्म और न्याय के लिए करें.
(Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य जानकारियों पर आधारित हैं. Hindi news18 इनकी पुष्टि नहीं करता है. इन पर अमल करने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से संपर्क करें.)
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