Kailash Mansarovar Yatra: भगवान शिव के भक्तों के लिए खुशी की खुशखबरी है. कैलाश मानसरोवर यात्रा जो साल 2020 के बाद से बंद थी, उसे 2025 में फिर से शुरू करने पर भारत और चीन के बीच सहमति लगभग बन गई है. हालांकि यात्रा कैसे शुरू होगी, किस तरीके से होगी. इस पर अभी बातचीत चल रही है. अगर आप भी कैलाश मानसरोवर यात्रा पर जाना चाहते हैं तो हम आपके लिए कुछ जानकारी लेकर आए हैं, जो आपको जरूर जाननी चाहिए.
कैलाश मानसरोवर का धार्मिक महत्व
कैलाश पर्वत को भगवान शिव का दिव्य निवास माना जाता है. इसकी सुंदरता और शांत वातावरण के लिए यह बहुत प्रसिद्ध है. यह पर्वत समुद्र तल से करीब 6,657 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और इसके दोनों ओर दो ऊंचाई वाले पवित्र झीलें हैं. कैलाश पर्वत को भगवान शिव और माता पार्वती का दिव्य निवास स्थान माना जाता है. कैलाश पर्वत करीब 3 करोड़ साल पहले बना था और यह पूरे कैलाश पर्वतमाला की सबसे ऊंची चोटी है. इसकी महत्ता का उल्लेख हिंदू पुराणों में भी है. ऐसा कहा जाता है कि यह पर्वत उत्तर कुरु नामक एक रहस्यमय और दिव्य स्थान में स्थित है, जहां देवों के देव महादेव निवास करते हैं.
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कैलाश परिक्रमा
कैलाश की परिक्रमा लगभग 53 किलोमीटर की होती है, जिसे पूरा करने में तीन दिन लगते हैं. ऐसा माना जाता है कि इस यात्रा से पापों से मुक्ति मिलती है. यह परिक्रमा महादेव के घर की तरह मानी जाती है. यह यात्रा कठिन होती है क्योंकि वहां की जलवायु बहुत कठोर होती है और ऑक्सीजन भी कम मिलती है. मान्यता है कि तीन दिन की यह कठिन परिक्रमा करने से मनुष्य के सारे पाप कट जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है.
मानसरोवर का अर्थ और इसका इतिहास
मानसरोवर को बहुत ही पवित्र माना जाता है. मान्यता है कि यह झील ब्रह्म मुहूर्त में देवताओं के स्नान का स्थान है. कहा जाता है कि इस झील की रचना सबसे पहले भगवान ब्रह्मा ने अपने मन में की थी इसलिए इसका नाम पड़ा “मानसरोवर”- “मानस” यानी मन और “सरोवर” यानी झील.
यह माना जाता है कि भगवान कैलाश-मानसरोवर क्षेत्र में निवास और तपस्या करते हैं. इस जगह की विशेषता ही इसे बाकी जगहों से अलग बनाती है. शांत पानी और मजबूत पहाड़ों की तरह यह झील देवताओं के मन की तरह शांति और स्थिरता का प्रतीक है.
यात्रा से जुड़ी जरूरी जानकारियां
पूरी यात्रा में लगभग 22 दिन लगते हैं, जिसमें से 14 दिन भारत में और 8 दिन चीन (तिब्बत) के क्षेत्र में बिताए जाते हैं. यह यात्रा धार्मिक आस्था के साथ-साथ सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी बहुत महत्वपूर्ण है.
यात्रा की कठिनाइयां और ज़रूरी बातें
- यह यात्रा बहुत ऊंचाई और ठंडी जलवायु में होती है, जिसमें कड़ी मेहनत और साहस की ज़रूरत होती है.
- यात्रा में 19,500 फीट तक की ऊंचाई पर ट्रेकिंग करनी होती है.
- केवल शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति ही इस यात्रा के लिए पात्र होते हैं
- डायबिटीज़, हाई ब्लड प्रेशर, अस्थमा, दिल की बीमारी, मिर्गी जैसे रोगों से पीड़ित लोग इस यात्रा के लिए अयोग्य माने जाते हैं.
- MEA एक कंप्यूटराइज्ड लॉटरी सिस्टम के जरिए यात्रियों का चयन करता है.
- चयनित यात्रियों को उनकी यात्रा की तारीख से 3-4 हफ्ते पहले सूचना दी जाती है.
- सभी चयनित यात्रियों को एक इंडेम्निटी बॉन्ड साइन करना होता है जिसमें लिखा होता है कि वे यह यात्रा अपने स्वयं के जोखिम पर कर रहे हैं.
- किसी आपात स्थिति में हेलिकॉप्टर से रेस्क्यू की शर्त पर भी सहमति देनी होती है.
- यात्रा से पहले पासपोर्ट वैध होना जरूरी है.
सरकार की भूमिका
भारत सरकार यह यात्रा चीन सरकार के सहयोग से करवाती है. इसके लिए कुछ खास रूट और व्यवस्था बनाई जाती है. कोरोना महामारी और भारत-चीन के बीच तनाव के चलते ये यात्रा पिछले कुछ सालों से बंद है. यह यात्रा फिर से शुरू हो सकती है.
कैसे जाते हैं कैलाश मानसरोवर?
कैलाश मानसरोवर की यात्रा उत्तराखंड, दिल्ली और सिक्किम की राज्य सरकारों के सहयोग से आयोजित की जाती है. भारत में ITBP सुरक्षा देती है और चीन में सुरक्षा व लॉजिस्टिक्स का जिम्मा चीनी प्रशासन का होता है. यात्रा पर जाने से पहले चेकअप करवाना होता है. हेल्थ फिटनेस के आधार पर यात्रा की परमिशन दी जाती है. बता दें कि लिपुलेख दर्रा (उत्तराखंड) और नाथू ला दर्रा (सिक्किम) के जरिए कैलाश मानसरोवर जाते हैं.
मानसरोवर के पास घूमने लायक जगहें
गौरीकुंड: यह झील माता पार्वती का स्नान स्थल मानी जाती है. यहीं पर उन्होंने भगवान गणेश की रचना की थी. इसे करुणा की झील भी कहा जाता है.
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राक्षस ताल: इसे रावण की झील भी कहा जाता है. यह खारा पानी (नमकीन) वाली झील है और इसके पानी को जहरीला माना जाता है, इसलिए स्थानीय लोग इसमें स्नान नहीं करते.
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