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Mahabharat Katha Draupadi Cheerharan । महाभारत चौसर के खेल में युधिष्ठिर की हार और द्रौपदी का अपमान


Mahabharat Katha: महाभारत केवल एक युद्ध की कहानी नहीं है, बल्कि यह मानव स्वभाव, भावनाओं और भूलों का आईना है. इसमें कई ऐसे मोड़ हैं जो आज भी समाज को सोचने पर मजबूर कर देते हैं. इन्हीं में से एक घटना है चौसर का खेल, जिसमें युधिष्ठिर ने अपनी पत्नी द्रौपदी तक को दांव पर लगा दिया. यह न सिर्फ परिवार, समाज और नारी सम्मान के लिए दुखद था, बल्कि न्याय और नीति की उस समय की नींव को भी हिला देने वाला था. यह घटना केवल एक व्यक्तिगत हार नहीं थी. इसमें यह भी स्पष्ट हुआ कि कैसे जुआ और अहंकार मिलकर इंसान को अंधा कर सकते हैं. द्रौपदी जैसी बुद्धिमान और साहसी स्त्री को अपमानित करना, उस युग की नारी शक्ति के लिए सबसे बड़ा आघात था. यह वह क्षण था जब धर्म, नीति और मर्यादा सब मौन हो गए. यही वह बिंदु था जिसने भविष्य के विनाश की नींव रखी.

चौसर की चाल
इस खेल की शुरुआत यूं हुई कि दुर्योधन ने युधिष्ठिर को चौसर खेलने के लिए बुलाया. दुर्योधन पांडवों से जलता था और उनके सम्मान को ठेस पहुंचाना चाहता था. शकुनि की मदद से वह ऐसा जाल बुन चुका था जिसमें फंसना तय था. शकुनि अपने चालाक दांवों और जादुई पासों के लिए जाना जाता था. युधिष्ठिर जानते थे कि खेल में ईमानदारी की कोई जगह नहीं है, फिर भी उन्होंने इसे तलवार और खून से बेहतर मानते हुए स्वीकार कर लिया.

धन से लेकर आत्मसम्मान तक की हार
खेल के दौरान युधिष्ठिर अपनी सारी संपत्ति हार गए. राज्य, सेना, महल और अंत में खुद को भी. जब वो अपनी स्वतंत्रता खो बैठे, तब भी उनका लालच रुका नहीं. दुर्योधन ने उन्हें यह कहकर बहकाया कि अगर वे द्रौपदी को दांव पर लगाएंगे और जीत जाएंगे, तो सब कुछ वापस मिल सकता है. युधिष्ठिर ने यह बात मान ली और द्रौपदी को भी हार गए.

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युद्ध की नींव यहीं से रखी गई
यहीं से शुरू हुआ वो अपमान का सिलसिला जो इतिहास में एक शर्मनाक अध्याय बन गया. द्रौपदी को दरबार में बुलाया गया, उनके साथ अभद्रता की गई और वस्त्रहरण का प्रयास किया गया. यह वो क्षण था जिसने पांडवों की आत्मा को झकझोर दिया और एक भयानक युद्ध की नींव रखी. उस समय सभा में मौजूद कोई भी व्यक्ति, यहां तक कि भीष्म और द्रोणाचार्य भी चुप रहे, जिससे यह घटना और भी अधिक पीड़ादायक बन गई.

दुर्योधन का असली मकसद
दुर्योधन के इस अपमानजनक व्यवहार के पीछे एक छिपी भावना थी. कहा जाता है कि दुर्योधन द्रौपदी के प्रति गुप्त रूप से आकर्षित था, लेकिन उसकी गरिमा और दृढ़ता के सामने वह खुद को असहाय महसूस करता था. इसी कारण जब उसे अवसर मिला, तो उसने अपने पुराने अपमान का बदला लेने का प्रयास किया- एक ऐसी घिनौनी तरकीब से जिसे कोई भी सभ्य समाज कभी स्वीकार नहीं करेगा.

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नैतिकता और विवेक की हार
इस घटना ने यह भी दिखा दिया कि जब लालच, गुस्सा और अहंकार किसी के मन में एक साथ बसते हैं, तो वह व्यक्ति चाहे कितना भी धर्मशील क्यों न हो, उससे भी गलती हो सकती है. युधिष्ठिर जैसे व्यक्ति से भी, जो नीति और धर्म की बातें करता था, ऐसी भयानक भूल हो गई. उस दिन उन्होंने अपने विवेक को ताक पर रख दिया और द्रौपदी जैसी स्त्री को एक दांव में रखकर पूरे युग के सामने एक कलंक छोड़ दिया.


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