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Mandasa Vasudeva Perumal Temple know history of Vasudeva Perumal Mandir | वासुदेव पेरुमल मंदिर, सदियों पुराने इस मंदिर में स्वयं प्रकट हुई थी भगवान विष्णु की मूर्ति


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Mandasa Vasudeva Perumal Temple: भारत में ऐसे तो कई मंदिर हैं, जो अपने चमत्कार और रहस्यों से भरे हुए हैं. आज हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से वासुदेव पेरुमल मंदिर के बारे में बताएंगे, जहां सबसे पुरानी मूर्ति स्थापित है. मंदिर का निर्माण 1744 ई बताया गया है. आइए जानते हैं वासुदेव पेरुमल मंदिर के बारे में खास बातें…

Mandasa Vasudeva Perumal Temple: दक्षिण भारत की धरती को आध्यात्म और इतिहास दोनों की साक्षी माना गया है क्योंकि पूरे भारत में इतने हिंदू मंदिर नहीं हैं, जितने सिर्फ दक्षिण भारत में हैं. हर मंदिर की अपनी कहानी होती है. इस कड़ी में मंदासा का वासुदेव पेरुमल मंदिर भी है, जो अपने इतिहास और निर्माण को लेकर भक्तों के बीच आस्था का केंद्र बना है. मान्यता है कि इस मंदिर में दर्शन करने मात्र से सभी पाप व कष्ट नष्ट हो जाते हैं और सभी कार्य सिद्ध होते हैं. आइए जानते हैं वासुदेव पेरुमल मंदिर के इतिहास और खास बातें…

सबसे पुरानी है यहां की मूर्ति – आंध्र प्रदेश और ओडिशा की सीमा के पास श्रीकाकुलम जिले में बसे मंदासा गांव में वासुदेव पेरुमल मंदिर है. इस मंदिर के गौरव और इतिहास को बचाने के लिए मंदिर का कई बार पुनर्निर्माण कराया गया. यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है, जहां भक्त दूर-दूर से अपनी मनोकामना लेकर आते हैं. माना जाता है कि इस मंदिर में विराजमान भगवान विष्णु की मूर्ति सबसे पुरानी है और स्वयं प्रकट हुई थी. ऐसे में भक्तों की आस्था इस मंदिर पर बाकी मंदिरों से ज्यादा है. मंदिर में भगवान नारायण अपनी पत्नी के साथ विराजमान हैं.

1744 ई में हुआ था मंदिर का निर्माण – माना जाता है कि नारायण का ये रूप दोषों से रहित और करुणा के सागर का प्रतीक है. मंदिर का निर्माण का समय 1744 ई बताया जाता है और निर्माण श्री हरि हर राजमणि ने अपने राज में कराया था. पहले ये मंदिर राजाओं और मंदासा के शासकों के लिए पूजनीय हुआ करता था, लेकिन समय के साथ और संसाधनों की कमी की वजह से मंदिर में पूजा-अर्चना भी कठिन होने लगी.

मंदिर का पुनर्निर्माण – साल 1988 में मंदिर और भक्तों की आस्था बचाने के लिए धार्मिक धर्मगुरु श्री चिन्ना श्रीमन्नारायण रामानुज जीयर स्वामी जी आए और मंदिर की अवस्था को देखकर चिंतित हो गए. हिंदू धर्म को बचाने और भगवान नारायण की पूजा दोबारा शुरू कराने के लिए मंदिर का पुनर्निर्माण शुरू किया. मंदिर के निर्माण के लिए कमेठी भी गठित की गई और मंदिर में गर्भगृह, ध्वज स्तंभम और मुख्य हॉल बनाए गए.

मंदिर को किया गया पुनर्जीवित – साल 2005 में मंदिर को पुनर्जीवित किया गया और मंदिर में विधि-विधान के साथ पूजा शुरू हुई. ये मंदिर धार्मिक धर्मगुरु श्री चिन्ना श्रीमन्नारायण रामानुज जीयर स्वामी जी के लिए इसलिए भी खास था क्योंकि इसी मंदिर से उनके गुरु पेद्दा जीयर स्वामी जी ने अपनी शिक्षा पूरी की थी. उन्होंने मंदिर का निर्माण पूरा होने पर अपने गुरु के सम्मान में समारोह भी आयोजित किया था.

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यहां है सबसे पुरानी मूर्ति, मनोकामना पूर्ति के लिए दूर दूर से आते है भक्त


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