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Importance of Lolark Kund: बाबा विश्वनाथ की नगरी चमत्कारों से भरी पड़ी है और यहां का हर मंदिर, कुंड आदि सभी का अपना ऐतिहासिक महत्व है. आज हम काशी नगरी के एक ऐसे कुंड के बारे में बताने जा रहे हैं, यहां ना केवल न…और पढ़ें

बाबा विश्वनाथ की नगरी में चमत्कारिक कुंड
हाइलाइट्स
- लोलार्क कुंड में स्नान से संतान प्राप्ति होती है.
- कुंड का जल चर्म रोग से मुक्ति दिलाता है.
- सूर्य की पहली किरण लोलार्क कुंड पर पड़ती है.
“काश्यां हि काशते काशी सर्वप्रकाशिका…” शिवनगरी कहें या धर्म नगरी, काशी अपनी अल्हड़ता और खूबसूरती से लोगों को मोहित करती आई है. ऐसा ही हैरत में डालने वाला और मोहित करने वाला एक चमत्कारी कुंड है… लोलार्क कुंड. इस कुंड की महिमा अपरंपार है, जहां संतान के लिए तरस रही सूनी गोद तो भरती ही है, साथ ही चर्म रोग से मुक्ति भी मिलती है. इस कुंड का संबंध ग्रहों के राजा और ऊर्जा का मुख्य स्त्रोत सूर्य से है.
लोलार्क कुंड का है पौराणिक महत्व
घाटों के शहर काशी के भदैनी क्षेत्र स्थित लोलार्क कुंड देखने में जितना खूबसूरत है, उतना ही इसका पौराणिक महत्व भी है. बाबा झोली भरिहें… इसी विश्वास के साथ हर साल इस कुंड में स्नान करने के लिए लाखों की संख्या में भीड़ जुटती है. संतान की प्राप्ति के लिए लोग लोलार्क छठ मेले में जुटते हैं. जिससे यहां गजब का दृश्य बनता है, जहां लोग केवल ‘जय लोलार्क बाबा, जय लोलार्क बाबा’ का नारा लगाते हैं और रात भर कतार में लगे रहते हैं.
कुंड पर पड़ती है सूर्य की पहली किरण
मान्यता है कि सूर्य की पहली किरण सबसे पहले कुंड पर ही पड़ती है. कुंड के दक्षिण भाग में लोलार्केश्वर महादेव का मंदिर है. इस बारे में काशी के ज्योतिषाचार्य, यज्ञाचार्य एवं वैदिक कर्मकांडी पं. रत्नेश त्रिपाठी ने बताया कि मंदिर के बारे में कई किंवदंतियां प्रचलित हैं. यहां गढ़वाल नरेश ने अपनी सातों रानियों के साथ स्नान किया, जिसके बाद उन्हें संतान की प्राप्ति हुई थी. उन्होंने कुंड का निर्माण 9वीं शताब्दी में करवाया था. वहीं, अहिल्याबाई होलकर ने कुंड का पुनरुद्धार कराया था.
यहां गिरा था कर्ण का कुंडल
काशी के निवासी प्रभुनाथ त्रिपाठी ने बताया कि चमत्कारी मंदिर और कुंड में लोगों की विशेष आस्था है. यहां पर साल भर लोग दर्शन-पूजन और अपनी मनोकामना लेकर आते हैं. हालांकि, भाद्रपद शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को देश भर के कोने-कोने से लोग स्नान के लिए आते हैं. लोलार्क कुंड में तीज से ही नहान शुरू हो जाता है और षष्ठी तक चलता है. कुंड के बारे में कहा जाता है कि यहां पर महाभारत युद्ध के दौरान कर्ण का कुंडल गिरा था, जिस वजह से यहां पर गड्ढा हो गया. यहां के जल को अमृत माना जाता है.
स्नान से दूर होता है चर्म रोग
एक किंवदंती यह भी है कि एक राजा जिन्हें चर्म रोग था और वैद्य से इलाज करवाने के बावजूद उनका रोग ठीक नहीं हो रहा था, इस रास्ते से गुजरने के दौरान उन्हें प्यास लगी और उन्होंने भिश्ती (पानी ढोने वाले) से पानी लाने को कहा. भिश्ती को आस-पास कोई जगह नहीं दिखी सो गड्ढे से पानी भर लाया और राजा को पिला दिया. पानी पीने के बाद राजा का चर्म रोग ठीक हो गया.
इस तरह होता है कुंड में स्नान
मान्यता है कि संतान प्राप्ति की कामना के साथ सच्चे मन और श्रद्धा के साथ कुंड में दंपति स्नान करते हैं और कुंड में संकल्प के साथ सीताफल और अन्य सामान छोड़ते हैं. जब उनकी कामना पूरी हो जाती है तो वे अपने बच्चे का यहां पर मुंडन संस्कार करवाते हैं और हलवा-पूरी बाबा को प्रसाद स्वरूप चढ़ाते हैं. कुंड में उतरने के लिए उत्तर, दक्षिण और पश्चिम तीनों दिशाओं में लंबी-लंबी सीढ़ियां हैं और पूर्व दिशा की ओर दीवार है.
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