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Hindu Sutak Period: सोबड़ या सूतक लगना एक धार्मिक परंपरा है, लेकिन इसके पीछे वैज्ञानिक कारण भी हैं. बच्चे के जन्म के बाद मां और नवजात को संक्रमण से बचाने और उन्हें आराम देने के लिए ही यह प्रथा बनाई गई थी. यह परंपरा सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि स्वास्थ्य के लिहाज से बेहद जरूरी है.
Hindu Sutak Period: हमारे समाज में जब किसी घर में नया बच्चा जन्म लेता है तो खुशियों की लहर दौड़ जाती है, लेकिन इसके साथ ही एक परंपरा भी शुरू हो जाती है सोबड़ या सूतक लगना. बहुत से लोग इसे धर्म से जोड़कर देखते हैं, जबकि कुछ इसे पुराने जमाने की मान्यता मानकर नजरअंदाज कर देते हैं, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर बच्चे के जन्म के बाद घर में सोबड़ क्यों लगता है? क्यों मां और नवजात से कुछ दिनों तक दूरी बनाई जाती है? क्या इसके पीछे सिर्फ धार्मिक कारण हैं या कोई वैज्ञानिक वजह भी छिपी है? दरअसल, हिंदू संस्कृति में हर परंपरा के पीछे कुछ न कुछ तर्क जरूर होता है, बच्चे के जन्म के बाद लगने वाला यह सोबड़ भी सिर्फ एक धार्मिक रिवाज नहीं, बल्कि इसके पीछे मां और बच्चे की सेहत को लेकर कई महत्वपूर्ण बातें जुड़ी हैं इस प्रथा में गहराई से समझने वाली बातें हैं. जो आज के समय में भी उतनी ही मायने रखती हैं जितनी पहले रखती थीं. आइए जानते हैं भोपाल निवासी ज्योतिषी एवं वास्तु सलाहकार पंडित हितेंद्र कुमार शर्मा से कि आखिर बच्चे के जन्म के बाद सोबड़ क्यों लगता है और इसका असली मतलब क्या है,
बच्चे के जन्म पर सूतक या सोबड़ क्यों लगता है?
धार्मिक दृष्टि से देखा जाए तो जब घर में बच्चा जन्म लेता है. तो माना जाता है कि उस समय मां और बच्चा दोनों अशुद्ध अवस्था में होते हैं, क्योंकि जन्म के दौरान शरीर से खून और अन्य तत्व बाहर आते हैं. इसी वजह से 10 दिनों तक घर में पूजा-पाठ, धार्मिक कार्य या मंदिर जाने पर रोक होती है. इस अवधि को “सूतक काल” कहा जाता है. यह परंपरा इस बात पर आधारित है कि मां का शरीर उस समय पूरी तरह थक जाता है और उसे आराम और शुद्धि की जरूरत होती है. 10 दिन पूरे होने के बाद विशेष स्नान और हवन करके घर की शुद्धि की जाती है. जिसे “सूतक शुद्धि” कहा जाता है, तभी धार्मिक कार्य दोबारा शुरू होते हैं.
मां और नवजात से दूरी बनाने का कारण
अब सवाल उठता है कि आखिर घर वाले मां और बच्चे से दूरी क्यों बनाते हैं? इसका असल कारण सिर्फ परंपरा नहीं, बल्कि साफ-सुथरे रहने की जरूरत है. बच्चे के जन्म के बाद मां का शरीर बहुत कमजोर हो जाता है और उसका इम्यून सिस्टम पहले जैसा नहीं रहता. वहीं नवजात का शरीर भी बेहद नाजुक होता है और उसे किसी भी तरह का इंफेक्शन जल्दी पकड़ सकता है. इसलिए पुराने समय में कहा गया कि कुछ दिनों तक मां और बच्चे के पास कम लोग जाएं ताकि किसी के कपड़ों, सांस या बाहरी संक्रमण से उन्हें कोई नुकसान न हो. आज के मेडिकल साइंस के हिसाब से भी यह सही माना गया है. अस्पतालों में भी नवजात और मां को कुछ दिन अलग रखा जाता है ताकि उनका स्वास्थ्य पूरी तरह ठीक हो सके.
प्रसव के बाद के नियम
सोबड़ के पीछे का असली सच
हिंदू धर्म की हर परंपरा के पीछे कोई न कोई वैज्ञानिक कारण जरूर छिपा होता है. सोबड़ या सूतक की परंपरा भी उसी सोच का हिस्सा है. असल में बच्चे के जन्म के बाद मां का शरीर बहुत थक जाता है. उसे कुछ दिन पूरे आराम की जरूरत होती है ताकि शरीर दोबारा सामान्य हो सके. पुराने समय में महिलाएं अस्पताल नहीं जाती थीं. इसलिए घर पर ही देखभाल के लिए ये नियम बनाए गए. सोबड़ का मकसद यह नहीं था कि मां और बच्चे को “अशुद्ध” माना जाए. बल्कि यह एक तरह की सेहत से जुड़ी सावधानी थी. इस अवधि में मां को पौष्टिक खाना दिया जाता था. ज्यादा काम करने से रोका जाता था और बच्चे को सिर्फ मां के संपर्क में रखा जाता था ताकि उसे पर्याप्त दूध और प्यार मिल सके. इसके अलावा, मां के आसपास शांत माहौल रखा जाता था ताकि उसका मानसिक संतुलन ठीक रहे और वह जल्दी रिकवर कर सके.
आज के समय में इसका महत्व
भले ही आज विज्ञान बहुत आगे बढ़ चुका है, लेकिन मां और बच्चे की देखभाल के मामले में यह परंपरा आज भी सही साबित होती है, डॉक्टर भी सलाह देते हैं कि बच्चे के जन्म के बाद पहले 10 से 15 दिन तक मां को पूरी तरह आराम देना चाहिए और ज्यादा लोगों का संपर्क नहीं होना चाहिए. इससे संक्रमण का खतरा कम होता है और बच्चा भी सुरक्षित रहता है, इसलिए सोबड़ की परंपरा को अंधविश्वास न समझें, बल्कि इसे स्वास्थ्य सुरक्षा के तौर पर देखें. यही वजह है कि आज भी कई घरों में बच्चे के जन्म के बाद ये नियम माने जाते हैं.
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https://hindi.news18.com/news/dharm/hindu-sutak-period-after-child-birth-reason-mother-baby-distance-ws-ekl-9828052.html
