Paan, Jalebi during Dussehra: दशहरा का नाम सुनते ही आंखों के सामने रावण दहन का दृश्य, रामलीला के मंच पर जय श्रीराम के नारे और पूरे मोहल्ले में गूंजती शंख-घंटियों की आवाज ताजा हो जाती है. यह त्योहार सिर्फ बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक नहीं है, बल्कि पूरे नवरात्र के उपवास और तपस्या का फल भी है. नौ दिन व्रत रखने के बाद जब विजयदशमी आती है तो लोग इसे पूरे जोश और उत्साह से मनाते हैं. पूजा-पाठ के बाद लोग नए कपड़े पहनते हैं, रिश्तेदारों से मिलते हैं और खास तरह का खाना खाते हैं. इस दिन की एक और खास बात है- पान और जलेबी खाने की परंपरा. यह परंपरा कई जगह सदियों से चली आ रही है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर इस दिन पान और जलेबी क्यों खाई जाती है. आइए जानते हैं इस मीठी परंपरा के पीछे छिपे कारण.
दशहरे के दिन जलेबी खाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. लोक मान्यताओं के अनुसार, भगवान श्रीराम को शशकुली नामक मिठाई बहुत पसंद थी, जिसे आज की भाषा में जलेबी कहा जाता है. कहा जाता है कि रावण पर विजय पाने के बाद भगवान राम ने इसी मिठाई को खाकर जीत का जश्न मनाया था. तभी से यह परंपरा बन गई कि दशहरा के दिन जलेबी खाई जाए ताकि जीत की मिठास बनी रहे. हालांकि शास्त्रों में इसका सीधा उल्लेख नहीं मिलता, लेकिन मान्यता के अनुसार इसे शुभ माना जाता है.

जलेबी – मीठी जीत का स्वाद
जलेबी का सुनहरा रंग और उसमें भरी मीठी चाशनी विजय और खुशहाली का प्रतीक मानी जाती है. यह हमें यह संदेश देती है कि जीवन में कठिनाइयों पर विजय पाने के बाद मिठास और खुशी बांटना जरूरी है. पूजा के बाद जलेबी खाने से शरीर को तुरंत ऊर्जा भी मिलती है. गुजरात और राजस्थान में फाफड़ा-जलेबी का कॉम्बिनेशन बहुत फेमस है. उपवास के बाद नमकीन फाफड़ा और मीठी जलेबी खाना शरीर को एनर्जी देने के साथ-साथ स्वाद का मजा भी दोगुना कर देता है.
पान खाने की वजह
जलेबी के साथ पान खाने की परंपरा भी दशहरे पर खास मानी जाती है. पुराने समय में युद्ध जीतने के बाद राजा अपने सैनिकों को पान खिलाकर विजय का जश्न मनाते थे. आज भी कई जगह दशहरा के दिन लोग रावण दहन के बाद एक-दूसरे को पान खिलाकर गले मिलते हैं. पान को सम्मान, सौभाग्य और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है. माना जाता है कि पान खाने से रिश्तों में मिठास और ताजगी बनी रहती है. इसके अलावा पान में मौजूद कत्था, सुपारी, लौंग जैसी चीजें पाचन शक्ति को बढ़ाने का काम करती हैं, जो व्रत के बाद भारी भोजन खाने में मदद करती हैं.

फाफड़ा और अन्य व्यंजन
कुछ जगह दशहरा पर फाफड़ा खाने की भी परंपरा है. खासकर गुजरात में लोग फाफड़ा-जलेबी का प्रसाद लेकर रावण दहन के बाद इसे खाते हैं. यह स्वाद और परंपरा दोनों का संगम है. इसके अलावा इस दिन दही और चीनी खाने को भी शुभ माना जाता है. उड़ीसा में महिलाएं देवी को दही और पके हुए चावल का भोग लगाती हैं और उसके बाद रावण दहन की रस्म पूरी होती है. कई राज्यों में नरम और स्पंजी रसगुल्ले भी इस दिन प्रसाद के रूप में खाए जाते हैं.
त्योहार का मजा खाने से पूरा
भारतीय त्योहारों में खाना हमेशा से एक अहम हिस्सा रहा है. दशहरा पर पान और जलेबी खाना सिर्फ एक रिवाज नहीं बल्कि पूरे उत्सव का हिस्सा है. यह दिन हमें याद दिलाता है कि हर कठिनाई के बाद जीत मिलती है और उस जीत को मनाना भी जरूरी है. भोजन के जरिए हम उस खुशी को पूरे परिवार और समाज के साथ बांटते हैं.

दशहरा पर पान और जलेबी खाने की परंपरा सिर्फ स्वाद के लिए नहीं बल्कि सांस्कृतिक, धार्मिक और सामाजिक महत्व के लिए भी है. पान विजय और सम्मान का प्रतीक है तो जलेबी जीत की मिठास का. फाफड़ा, दही-चावल और रसगुल्ले जैसे व्यंजन इस त्योहार की खुशियों को और बढ़ा देते हैं. इसलिए इस बार जब आप दशहरा मनाएं तो पान, जलेबी और फाफड़ा जरूर खाएं और अपने प्रियजनों के साथ विजय की खुशी और मिठास साझा करें.
(Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं. Hindi news18 इनकी पुष्टि नहीं करता है. इन पर अमल करने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से संपर्क करें.)
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