आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को पापांकुशा एकादशी कहा जाता है और यह शुभ तिथि आज है. इस दिन उपवास कर श्रीविष्णु और माता लक्ष्मी का पूजन करने से समस्त पाप नष्ट होते हैं. व्यक्ति जन्म-मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है. पद्मपुराण में कहा गया है कि पापांकुशा एकादशी के व्रत से मनुष्य को अनगिनत पापों से मुक्ति मिलती है और वह विष्णुधाम को प्राप्त करता है. विजय दशमी के बाद इसी एकादशी को भगवान राम और भाई भरत का मिलन हुआ था. आइए जानते हैं पापांकुशा एकादशी का महत्व, पूजा विधि, मुहूर्त, शुभ योग और पारण का समय…
पापांकुशा एकादशी को भगवान विष्णु के पद्मनाभ स्वरूप की पूजा करने का विधान है. इस व्रत का पालन करने से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का आशीर्वाद मिलता है. गरुड़ पुराण और पद्म पुराण में कहा गया है कि जो व्यक्ति श्रद्धा से यह व्रत करता है, उसे मृत्यु के बाद विष्णु लोक की प्राप्ति होती है. साथ ही इस व्रत के शुभ प्रभाव से परिवार में सुख-समृद्धि आती है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है. इस दिन उपवास करने वाले को हजारों वर्ष तपस्या, तीर्थयात्रा और दान के बराबर पुण्य मिलता है. पापांकुशा एकादशी का व्रत करने से पूर्वजों को भी शांति और तृप्ति मिलती है.

पापांकुशा एकादशी 2025 आज
एकादशी तिथि का प्रारंभ – 2 अक्टूबर, शाम 7 बजकर 11 मिनट से
एकादशी तिथि का समापन – 3 अक्टूबर, शाम 6 बजकर 33 मिनट तक
उदिया तिथि को मानते हुए पापांकुशा एकादशी का व्रत आज किया जाएगा.
पापांकुशा एकादशी 2025 पूजन मुहूर्त
ब्रह्म मुहूर्त: 04:39 ए एम से 05:27 ए एम
अभिजित मुहूर्त: 11:47 ए एम से 12:34 पी एम
विजय मुहूर्त: 02:09 पी एम से 02:56 पी एम
सर्वार्थ सिद्धि योग और रवि योग : 06:16 ए एम से 09:34 ए एम
पापांकुशा एकादशी पर कई शुभ योग बन रहे हैं, जिससे आज के दिन का महत्व बढ़ गया है. पापांकुशा एकादशी पर सभी कार्यों को सिद्ध करने वाला सर्वार्थ सिद्धि योग, सभी दोष दूर करने वाला रवि योग, चंद्रमा के दूसरे भाव में बुध और द्वादश भाव में शुक्र ग्रह होने से उभयचरी योग का निर्माण हो रहा है. साथ ही आज ही ग्रहों के राजकुमार बुध तुला राशि में गोचर करने वाले हैं और शनि 27 साल बाद पूर्वाभाद्रपदा नक्षत्र में गोचर करने वाले हैं. आज के दिन श्रवण नक्षत्र के साथ धनिष्ठा नक्षत्र का भी शुभ संयोग बन रहा है.

पापांकुशा एकादशी 2025 पूजा विधि
आज ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान व ध्यान से निवृत्त होकर हाथ में गंगाजल और अक्षत लेकर व्रत का संकल्प लें. इसके बाद घर या पूजा स्थान को स्वच्छ करके गंगाजल छिड़कें. पीले वस्त्र धारण कर श्रीविष्णु और माता लक्ष्मी का पूजन करें. भगवान विष्णु की मूर्ति अथवा चित्र को धोकर पीत वस्त्र और पुष्प अर्पित करें और माता लक्ष्मी की भी पूजा अर्चना करें. धूप, दीप, नैवेद्य, फल और पंचामृत से पूजन करें. एकादशी की पूजा में तुलसी पत्र अवश्य अर्पित करें, क्योंकि भगवान विष्णु की पूजा तुलसी के बिना अधूरी मानी जाती है. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जप करें या विष्णु सहस्रनाम/गीता का पाठ करें. दिनभर उपवास करके रात में जागरण और भजन-कीर्तन करें और अगले दिन द्वादशी तिथि में दान-पुण्य और ब्राह्मण भोजन कराकर व्रत का पारण करें.
पापांकुशा एकादशी पारण का समय
व्रती को द्वादशी तिथि में प्रातःकाल स्नान के बाद भगवान विष्णु की पूजा कर अन्न ग्रहण करके पारण करना चाहिए. पारण सूर्योदय के बाद और मध्याह्न से पहले करना सबसे उत्तम माना जाता है. अगर द्वादशी तिथि दोपहर से पहले समाप्त हो जाए तो पारण अवश्य उसी अवधि में कर लेना चाहिए. पापांकुशा एकादशी 2025 पारण का समय सुबह 6 बजकर 33 मिनट से 8 बजकर 44 मिनट तक.

भगवान विष्णु के प्रमुख मंत्र
मूल मंत्र
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
विष्णु गायत्री मंत्र
ॐ नारायणाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि ।
तन्नो विष्णुः प्रचोदयात् ॥
विष्णु बीज मंत्र
ॐ विष्णवे नमः ॥
विष्णु जी की आरती
ओम जय जगदीश हरे , स्वामी जय जगदीश हरे।
भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे।
ओम जय जगदीश हरे।
जो ध्यावे फल पावे, दुःख विनसे मन का।
स्वामी दुःख विनसे मन का।सुख सम्पत्ति घर आवे, कष्ट मिटे तन का॥
ओम जय जगदीश हरे।
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं मैं किसकी,
स्वामी शरण गहूं मैं किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आस करूं जिसकी,
ओम जय जगदीश हरे।
तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी,
स्वामी तुम अन्तर्यामी।
पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी,
ओम जय जगदीश हरे।
तुम करुणा के सागर, तुम पालन-कर्ता,
स्वामी तुम पालन-कर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता।
ओम जय जगदीश हरे।
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति,
स्वामी सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूं दयामय, तुमको मैं कुमति।
ओम जय जगदीश हरे।
दीनबन्धु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे,
स्वामी तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे।
ओम जय जगदीश हरे।
विषय-विकार मिटाओ, पाप हरो देवा,
स्वमी पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा।
ओम जय जगदीश हरे।
श्री जगदीशजी की आरती, जो कोई नर गावे,
स्वामी जो कोई नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी, सुख संपत्ति पावे।
ओम जय जगदीश हरे।
भगवान विष्णु की जय, माता लक्ष्मी की जय…
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