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Sheetala Mata Ki Aarti: शीतला अष्टमी के दिन शीतला माता की पूजा करते हैं और उनको बासी भोग अर्पित करते हैं. पूजा के समय श्री शीतला चालीसा का पाठ करें, शीतला अष्टमी की व्रत कथा सुनें और अंत में शीतला माता की आरती …और पढ़ें

शीतला माता की आरती.
हाइलाइट्स
- शीतला अष्टमी पर शीतला माता की पूजा करें.
- शीतला माता को ठंडा भोजन प्रिय है.
- शीतला माता की आरती और चालीसा का पाठ करें.
शीतला अष्टमी का पावन पर्व 22 मार्च दिन शनिवार को है. शीतला अष्टमी के दिन शीतला माता की पूजा करते हैं और उनको बासी भोग अर्पित करते हैं. कहा जाता है कि शीतला माता को ठंडा भोजन प्रिय है, इस वजह से शीतला अष्टमी को चूल्हा नहीं जलाते हैं. शीतला अष्टमी पर लगाने वाले भोग सप्तमी को ही बनाकर तैयार कर लेते हैं. शीतला अष्टमी के दिन स्नान आदि से निवृत होकर माता शीतला की पूजा करते हैं. उनको अक्षत्, फल, फूल, माला, धूप, दीप आदि अर्पित करते हैं. फिर भोग लगाते हैं. पूजा के समय श्री शीतला चालीसा का पाठ करें, शीतला अष्टमी की व्रत कथा सुनें और अंत में शीतला माता की आरती करें. शीतला माता के आशीर्वाद से आपके रोग मिटेंगे, आप निरोगी होंगे और जीवन में सुख और समृद्धि बढ़ेगी. शीतला अष्टमी पर जानते हैं शीतला माता की आरती और चालीसा.
शीतला माता की आरती
जय शीतला माता, मैया जय शीतला माता।
आदि ज्योति महारानी, सब फल की दाता॥ ओम जय शीतला माता…
रतन सिंहासन शोभित, श्वेत छत्र भाता।
ऋद्धि-सिद्धि चँवर ढुलावें, जगमग छवि छाता॥ ओम जय शीतला माता…
विष्णु सेवत ठाढ़े, सेवें शिव धाता।
वेद पुराण वरणत, पार नहीं पाता॥ ओम जय शीतला माता…
इन्द्र मृदङ्ग बजावत, चन्द्र वीणा हाथा।
सूरज ताल बजावै, नारद मुनि गाता॥ ओम जय शीतला माता…
घण्टा शङ्ख शहनाई, बाजै मन भाता।
करै भक्तजन आरती, लखि लखि हर्षाता॥ ओम जय शीतला माता…
ब्रह्म रूप वरदानी, तुही तीन काल ज्ञाता।
भक्तन को सुख देती, मातु पिता भ्राता॥ ओम जय शीतला माता…
जो जन ध्यान लगावे, प्रेम शक्ति पाता।
सकल मनोरथ पावे, भवनिधि तर जाता॥ ओम जय शीतला माता…
रोगों से जो पीड़ित कोई, शरण तेरी आता।
कोढ़ी पावे निर्मल काया, अन्ध नेत्र पाता॥ ओम जय शीतला माता…
बांझ पुत्र को पावे, दारिद्र कट जाता।
ताको भजै जो नाहीं, सिर धुनि पछताता॥ ओम जय शीतला माता…
शीतल करती जननी, तू ही है जग त्राता।
उत्पत्ति व्याधि बिनाशन, तू सब की घाता॥ ओम जय शीतला माता…
दास विचित्र कर जोड़े, सुन मेरी माता।
भक्ति आपनी दीजै, और न कुछ भाता॥ ओम जय शीतला माता…
आदि ज्योति महारानी, सब फल की दाता॥
ओम जय शीतला माता, मैया जय शीतला माता॥
श्री शीतला चालीसा
दोहा
जय-जय माता शीतला, तुमहिं धरै जो ध्यान।
होय विमल शीतल हृदय, विकसै बुद्धि बलज्ञान॥
चौपाई
जय-जय-जय शीतला भवानी। जय जग जननि सकल गुणखानी॥
गृह-गृह शक्ति तुम्हारी राजित। पूरण शरदचन्द्र समसाजित॥
विस्फोटक से जलत शरीरा। शीतल करत हरत सब पीरा॥
मातु शीतला तव शुभनामा। सबके गाढ़े आवहिं कामा॥
शोकहरी शंकरी भवानी। बाल-प्राणरक्षी सुख दानी॥
शुचि मार्जनी कलश करराजै। मस्तक तेज सूर्य समराजै॥
चौसठ योगिन संग में गावैं। वीणा ताल मृदंग बजावै॥
नृत्य नाथ भैरो दिखरावैं। सहज शेष शिव पार ना पावैं॥
धन्य-धन्य धात्री महारानी। सुरनर मुनि तब सुयश बखानी॥
ज्वाला रूप महा बलकारी। दैत्य एक विस्फोटक भारी॥
घर-घर प्रविशत कोई न रक्षत। रोग रूप धरि बालक भक्षत॥
हाहाकार मच्यो जगभारी। सक्यो न जब संकट टारी॥
तब मैया धरि अद्भुत रूपा। करमें लिये मार्जनी सूपा॥
विस्फोटकहिं पकड़ि कर लीन्ह्यो। मुसल प्रहार बहुविधि कीन्ह्यो॥
बहुत प्रकार वह विनती कीन्हा। मैया नहीं भल मैं कछु चीन्हा॥
अबनहिं मातु, काहुगृह जइहौं। जहँ अपवित्र सकल दुःख हरिहौं॥
भभकत तन, शीतल ह्वै जइहैं। विस्फोटक भयघोर नसइहैं॥
श्री शीतलहिं भजे कल्याना। वचन सत्य भाषे भगवाना॥
विस्फोटक भय जिहि गृह भाई। भजै देवि कहँ यही उपाई॥
कलश शीतला का सजवावै। द्विज से विधिवत पाठ करावै॥
तुम्हीं शीतला, जग की माता। तुम्हीं पिता जग की सुखदाता॥
तुम्हीं जगद्धात्री सुखसेवी। नमो नमामि शीतले देवी॥
नमो सुक्खकरणी दुःखहरणी। नमो-नमो जगतारणि तरणी॥
नमो-नमो त्रैलोक्य वन्दिनी। दुखदारिद्रादिक कन्दिनी॥
श्री शीतला, शेढ़ला, महला। रुणलीह्युणनी मातु मंदला॥
हो तुम दिगम्बर तनुधारी। शोभित पंचनाम असवारी॥
रासभ, खर बैशाख सुनन्दन। गर्दभ दुर्वाकंद निकन्दन॥
सुमिरत संग शीतला माई। जाहि सकल दुख दूर पराई॥
गलका, गलगन्डादि जुहोई। ताकर मंत्र न औषधि कोई॥
एक मातु जी का आराधन। और नहिं कोई है साधन॥
निश्चय मातु शरण जो आवै। निर्भय मन इच्छित फल पावै॥
कोढ़ी, निर्मल काया धारै। अन्धा, दृग-निज दृष्टि निहारै॥
वन्ध्या नारि पुत्र को पावै। जन्म दरिद्र धनी होई जावै॥
मातु शीतला के गुण गावत। लखा मूक को छन्द बनावत॥
यामे कोई करै जनि शंका। जग मे मैया का ही डंका॥
भनत रामसुन्दर प्रभुदासा। तट प्रयाग से पूरब पासा॥
पुरी तिवारी मोर निवासा। ककरा गंगा तट दुर्वासा॥
अब विलम्ब मैं तोहि पुकारत। मातु कृपा कौ बाट निहारत॥
पड़ा क्षर तव आस लगाई। रक्षा करहु शीतला माई॥
दोहा
घट-घट वासी शीतला, शीतल प्रभा तुम्हार।
शीतल छइयां में झुलई, मइया पलना डार॥
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