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Skanda Sashti 2025: कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को स्कंद षष्ठी का पर्व मनाया जाता है. स्कंद षष्ठी, जिसे सुरसंहारा षष्ठी या सोरा षष्ठी भी कहा जाता है, भगवान कार्तिकेय (स्कंद, मुरुगन, सुब्रमण्य) की आराधना का अत्यंत पवित्र दिन है. स्कंद पुराण में कहा गया है कि इस दिन किया गया व्रत सर्वपापविनाशक होता है और स्कंद षष्ठी मंगल ग्रह से संबंधित मानी जाती है. आइए जानते हैं स्कंद षष्ठी पूजा मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व…
Skanda Sashti 2025 Auspicious yoga: कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि इस बार दिन सोमवार 27 अक्टूबर को है. दिवाली के बाद आने वाला यह पर्व भगवान कार्तिकेय को समर्पित है. मान्यता है कि इस दिन विधि-विधान से पूजा और व्रत करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है. यह पर्व हर माह शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को आती है लेकिन कार्तिक मास की षष्ठी को विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना गया है क्योंकि इसी दिन भगवान स्कंद ने असुर सुरपद्मन का वध कर धर्म की पुनः स्थापना की थी. माना जाता है कि इस दिन व्रत करने से व्यक्ति को शत्रु-विनाश, भय-नाश, रोग-निवारण तथा साहस की प्राप्ति होती है. आइए जानते हैं स्कंद षष्ठी तिथि का महत्व…
द्रिक पंचांग के अनुसार, सोमवार के दिन सूर्य तुला राशि में और चंद्रमा धनु राशि में रहेंगे. अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजकर 42 मिनट से शुरू होकर दोपहर 12 बजकर 27 मिनट तक रहेगा और राहुकाल का समय सुबह 7 बजकर 53 मिनट से शुरू होकर 9 बजकर 17 मिनट तक रहेगा. साथ ही इस दिन रवि योग, रूचक राजयोग और भास्कर योग भी बन रहा है.
ब्रह्म मुहूर्त – 04:47 ए एम से 05:38 ए एम
अभिजित मुहूर्त – 11:42 ए एम से 12:27 पी एम
विजय मुहूर्त – 01:56 पी एम से 02:41 पी एम
गोधूलि मुहूर्त – 05:40 पी एम से 06:06 पी एम
रवि योग – 01:27 पी एम से 06:30 ए एम, 28 अक्टूबर
स्कंद षष्ठी का महत्व
स्कंद षष्ठी का उल्लेख स्कंद पुराण में मिलता है, जिसमें बताया गया है कि भगवान कार्तिकेय ने इस दिन तारकासुर नामक राक्षस का वध किया था. देवताओं ने इस दिन जीत की खुशी में स्कंद षष्ठी का उत्सव मनाया था. यह पर्व विशेष रूप से दक्षिण भारत में मनाया जाता है. मान्यता है कि जो महिलाएं संतान सुख से वंचित हैं, उन्हें स्कंद षष्ठी का व्रत अवश्य करना चाहिए. इस दिन भगवान कार्तिकेय की पूजा करने से संतान की प्राप्ति होती है.
स्कंद षष्ठी पूजा विधि
स्कंद षष्ठी तिथि के दिन विधि-विधान से पूजा करने के लिए जातक ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें, फिर मंदिर या पूजा स्थल को साफ करें और आसन बिछाएं, फिर एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं और उसके ऊपर भगवान कार्तिकेय की प्रतिमा को स्थापित करें. इसके बाद सबसे पहले भगवान गणेश और नवग्रहों की पूजा करें और व्रत संकल्प लें. इसके बाद कार्तिकेय भगवान को वस्त्र, इत्र, चंपा के फूल, आभूषण, दीप-धूप और नैवेद्य अर्पित करें. भगवान कार्तिकेय का प्रिय पुष्प चंपा है. इस वजह से इस दिन को स्कंद षष्ठी, कांडा षष्ठी के साथ चंपा षष्ठी भी कहते हैं. भगवान कार्तिकेय की आरती और तीन बार परिक्रमा करने के बाद “ऊं स्कंद शिवाय नमः” मंत्र का जाप करने से विशेष लाभ मिलता है. इसके बाद आरती का आचमन कर आसन को प्रणाम करें और प्रसाद ग्रहण करें.
मैं धार्मिक विषय, ग्रह-नक्षत्र, ज्योतिष उपाय पर 8 साल से भी अधिक समय से काम कर रहा हूं। वेद पुराण, वैदिक ज्योतिष, मेदनी ज्योतिष, राशिफल, टैरो और आर्थिक करियर राशिफल पर गहराई से अध्ययन किया है और अपने ज्ञान से प…और पढ़ें
मैं धार्मिक विषय, ग्रह-नक्षत्र, ज्योतिष उपाय पर 8 साल से भी अधिक समय से काम कर रहा हूं। वेद पुराण, वैदिक ज्योतिष, मेदनी ज्योतिष, राशिफल, टैरो और आर्थिक करियर राशिफल पर गहराई से अध्ययन किया है और अपने ज्ञान से प… और पढ़ें
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