Surya Grahan 2026: हिंदू धर्म में सूर्य ग्रहण का विशेष महत्व है और नए साल 2026 में दो बार सूर्य ग्रहण लगने जा रहा है. सुबह से दोपहर के बीच आसमान में होने वाली यह खगोलीय घटना वैज्ञानिकों के लिए अध्ययन का मौका होगी, तो वहीं धार्मिक-ज्योतिष के लिहाज से भी इसे खास माना जा रहा है. वैदिक ज्योतिष में सूर्य को देह, आत्मबल, स्वास्थ्य, राजसत्ता, जीवनशक्ति का अधिष्ठाता कहा गया है. ग्रहण में जब सूर्य का तेज बाधित होता है, तो उसकी शुभ ऊर्जा भी बाधित मानी जाती है, इसलिए यह समय प्राकृतिक रूप से अशुभ कहा गया है. कई लोग जानना चाहते हैं कि नए साल का पहला सूर्य ग्रहण कब लगेगा, कहां दिखाई देगा, क्या सूतक लगेगा और इसका आम लोगों पर क्या असर पड़ सकता है. आइए जानते हैं साल 2026 का पहला सूर्य ग्रहण कब लगने जा रहा है…
साल 2026 का पहला सूर्य ग्रहण
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, साल 2026 का पहला सूर्य ग्रहण 17 फरवरी दिन मंगलवार को लगने जा रहा है. यह ग्रहण वलयाकाल ग्रहण होगा, जो भारतीय समय के अनुसार 17 फरवरी को दोपहर 3 बजकर 26 मिनट पर लगेगा. लेकिन यह ग्रहण भारत में नजर नहीं आएगा इसलिए इस ग्रहण का सूतक काल मान्य नहीं होगा.

कुंभ राशि में सूर्य ग्रहण
17 फरवरी को लगने वाला सूर्य ग्रहण शनिदेव की राशि कुंभ और राहु के नक्षत्र शतभिषा नक्षत्र में लगने जा रहा है. हालांकि यह ग्रहण भारत में दिखाई नहीं देगा लेकिन इसका प्रभाव देश-दुनिया, जीव-जंतु, प्रकृति, मानव जीवन समेत मेष से मीन तक सभी 12 राशियों के पर्सनल व प्रफेशनल लाइफ पर रहेगा. भारतीय ज्योतिष में ग्रहण को सामान्य कार्यों के लिए अशुभ माना गया है, लेकिन शास्त्र कहते हैं कि ग्रहणकाल में किया गया जप, ध्यान, दान सामान्य समय की अपेक्षा अनेक गुना फलदायी होता है. इसका कारण यह है कि उस समय प्रकृति की कंपन गति अत्यधिक संवेदनशील हो जाती है.
क्या होता है सूर्य ग्रहण?
जब चांद पृथ्वी और सूरज के बीच आ जाता है और उसकी रोशनी को कुछ समय के लिए ढक देता है, तब सूर्य ग्रहण होता है. यानी आप जिस सूरज को रोज चमकते देखते हैं, वह कुछ मिनटों के लिए चांद की परछाई से ढक जाता है. यह पूरा दृश्य बिल्कुल फिल्मी लगता है जैसे किसी ने सूरज पर परदा डाल दिया हो.

ज्योतिष के लिहाज से क्या माना जाता है?
भारत में सूर्य ग्रहण को धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से भी खास माना जाता है. कई लोग इस दौरान ध्यान, मंत्र जाप या स्नान जैसे धार्मिक कार्य करते हैं. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, राहु की वजह से ग्रहण लगता है. राहु को अशुभ, भ्रम उत्पन्न करने वाला और अस्थिरता देने वाला ग्रह माना गया है. जब वही राहु सूर्य को आच्छादित करता है तो यह प्राकृतिक रूप से अशुभ योग माना जाता है. पुराणों में उल्लेख मिलता है कि ग्रहण का समय तामसिक ऊर्जा को बढ़ाता है और रजो–सत्व का ह्रास करता है. इसलिए ग्रहण काल में भोजन-वर्जन, शयन-वर्जन, शुभ कार्य-वर्जन बताया गया है, ताकि उस तामसिक प्रभाव से बचा जा सके.
इसलिए सूर्य और चंद्रमा को निगल लेते हैं राहु और केतु
पुराणों के अनुसार, देवताओं और असुरों (दानवों) ने मिलकर समुद्र मंथन किया था. उद्देश्य था, अमृत प्राप्त करना. जब अमृत का कलश निकला तो दोनों पक्ष उसे पाने के लिए उतावले हो गए. विवाद बढ़ने लगा, स्थिति बिगड़ने लगी. तभी भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया, एक अत्यंत आकर्षक, तेजस्वी और दिव्य स्वरूप. मोहिनी ने अपनी बुद्धि और मोहक रूप से देवताओं के पक्ष में अमृत बांटना शुरू किया. इसी दौरान एक असुर स्वरभानु चुपके से देवताओं की पंक्ति में बैठ गया. उसका उद्देश्य साफ था कि किसी तरह अमृत का एक घूंट पी लिया जाए ताकि वह भी अमर हो जाए. सब कुछ योजना के मुताबिक चल रहा था, लेकिन जैसे ही मोहिनी ने अमृत की बूंद उसके मुंह में डाली, सूर्य देव और चंद्र देव ने तुरंत पहचान लिया कि यह देवता नहीं है. उन्होंने ऊंची आवाज में कह दिया कि यह असुर है.
स्वरभानु के छल की जानकारी मिलते ही भगवान विष्णु ने अपना सुदर्शन चक्र चलाया और उसी क्षण स्वरभानु का सिर और धड़ अलग हो गए. लेकिन अमृत की बूंद उसके गले से नीचे जाने ही वाली थी इसलिए वह मरा नहीं, बल्कि दो भागों में जीवित रह गया. स्वरभानु का सिर वाला भाग बन गया राहु और धड़ वाला भाग बन गया केतु. दोनों को छाया ग्रह कहा गया, क्योंकि उनका शरीर पूर्ण नहीं था. कथा के अनुसार, राहु और केतु सूर्य और चंद्र देव से बेहद क्रोधित थे, क्योंकि उन्हीं की वजह से उसका छल पकड़ा गया था इसलिए माना जाता है कि जब भी राहु या केतु सूर्य या चंद्र तक पहुंचते हैं, वे उन्हें निगल लेते हैं और उसी क्षण सूर्य या चंद्र ग्रहण होता है.हालांकि कुछ देर बाद सूर्य और चंद्र देव फिर से दिखाई देने लगते हैं, क्योंकि राहु-केतु केवल छाया ग्रह हैं और उन्हें संपूर्ण रूप से निगल नहीं सकते.

कहां कहां देख सकते हैं सूर्य ग्रहण?
17 फरवरी 2026 आसमान में ग्रहण का अद्भुत नजारा दिखाई देगा और यह वलयाकार सूर्य ग्रहण होगा यानी सूर्य के चारों तरफ रिंग हॉफ फायर दिखाई देगा, जिसका मैग्नीट्यूड 0.963 होगा. यह ग्रहण भारत में तो दिखाई नहीं देगा लेकिन यह अंटार्कटिका, दक्षिण-पूर्वी अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका के दक्षिणी सिरे और प्रशांत, हिंद, अटलांटिक और दक्षिणी महासागरों में आंशिक सूर्य ग्रहण दिखाई देगा. इसके साथ ही आप अंटार्कटिका में रिसर्च स्टेशन और आंशिक ग्रहण वाले जोन में अलग-अलग द्वीपों, शहरों और जगहों से देख सकते हैं.
2 मिनट 20 सेकंड तक रिंग ऑफ फायर
यह सूर्य ग्रहण अंटार्कटिका के ऊपर लगभग 4282 किमी. तक फैलेगा और फिर डेविस सागर के पास जाकर खत्म हो जाएगा. वलयाकार सूर्य ग्रहण तब होता है जब चंद्रमा का स्पष्ट व्यास सूर्य के व्यास से छोटा होता है, जो सूर्य के अधिकांश प्रकाश को अवरुद्ध करता है और सूर्य को एक वलय (रिंग) जैसा दिखने का कारण बनता है. यह 2 मिनट 20 सेकंड तक रिंग ऑफ फायर बनाएगा और उस दौरान सूरज का 96% सेंटर चांद से ढक जाएगा.
वैज्ञानिकों के लिए क्यों खास है यह घटना?
17 फरवरी 2026 को लगने वाला सूर्य ग्रहण का रास्ता अंटार्कटिका के एक दूर के इलाके तक ही सीमित रहेगा, इसलिए यह घटना लगभग किसी इंसान को नहीं दिखेगी. अगर आप इस घटना को देख पाते हैं, तो आप अपनी बड़ाई करने के हकदार होंगे. हालांकि, असल में ऐसा करना मुश्किल होगा, जब तक कि आप अंटार्कटिका के कुछ चुनिंदा रिसर्च स्टेशनों पर काम नहीं कर रहे हो. सूर्य ग्रहण वैज्ञानिकों को सूर्य के बाहरी वातावरण–कोरोना–का अध्ययन करने में मदद करता है. यह कुछ मिनटों का समय ऐसा होता है जब सूरज के चारों ओर छिपी हुई परतें साफ दिखती हैं, जिनका रोजमर्रा में निरीक्षण संभव नहीं होता. इसलिए दुनिया भर की ऑब्जर्वेटरी इस दिन खास निगरानी करेंगी.

साल 2026 का दूसरा सूर्य ग्रहण
साल 2026 का दूसरा सूर्य ग्रहण 12 अगस्त को लगेगा. यह ग्रहण भारतीय समय के अनुसार, रात 9 बजकर 4 मिनट से आरंभ होगा और यह पूर्ण सूर्य ग्रहण होने वाला है. हालांकि यह ग्रहण भी भारत में दिखाई नहीं देगा इसलिए इस ग्रहण का सूतक काल मान्य भी नहीं होगा. यह सूर्य ग्रहण स्पेन, आइसलैंड, पुर्तगाल, रूस, ग्रीनलैंड और आर्कटिक के कुछ हिस्सों में दिखाई देगा.
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https://hindi.news18.com/news/dharm/surya-grahan-2026-when-first-solar-eclipse-occur-will-this-be-visible-in-india-know-sutak-kaal-date-time-religious-significance-rare-celestial-event-ws-kl-9932571.html







