Teen Jain Monk : सूरत शहर को दुनिया हीरों की राजधानी कहती है. यहां हर गली में चमकते हीरे और उनसे बनी चीजें दिखती हैं. इसी चमक-दमक के बीच रहने वाला एक अठारह साल का लड़का जश मेहता इन सबको हमेशा के लिए छोड़ने जा रहा है. वह 23 नवंबर को जैन धर्म की दीक्षा लेंगे और साधु बन जाएगा. जश सूरत के बड़े हीरा व्यापारी का बेटा है. उसके पास सब कुछ था – महंगी कारें, कीमती घड़ियां, असली हीरों के गहने, विदेशी छुट्टियां, नामी स्कूल – फिर भी उसने सब त्यागने का फैसला कर लिया. यह खबर सुनकर हर कोई हैरान है कि इतनी उम्र में कोई इतना बड़ा कदम कैसे उठा सकता है? जश का यह फैसला सिर्फ उसकी जिंदगी नहीं बदल रहा, बल्कि बहुतों को सोचने पर मजबूर कर रहा है कि असली खुशी पैसे और चीजों में है या कहीं और. आइए जानते हैं जश की पूरी कहानी – कैसे एक आमिरजादे ने विलासिता को अलविदा कहा और सादगी का रास्ता चुना.
70 फीसदी अंक आए
जश मेहता अभी सिर्फ 18 साल के हैं. उसने दसवीं की परीक्षा में 70 फीसदी अंक लिए थे. उसका बचपन और किशोरावस्था ऐशो-आराम में बीता. उसे क्रिकेट खेलना बहुत पसंद है. इसके अलावा घड़ियों का ऐसा शौक था कि उसके पास दुनिया की सबसे महंगी और दुर्लभ ब्रांड की घड़ियां थीं. चश्मे भी उसके जुनून की चीज थे – हर मौके के लिए अलग-अलग डिजाइनर चश्मे. हीरों के गहने तो जैसे उसकी पहचान ही बन गए थे. कारों की बात करें तो उम्र से ज्यादा उसकी गैराज में गाड़ियां थीं. विदेश घूमना, पांच सितारा होटलों में रहना, दोस्तों के साथ पार्टी करना – यह सब उसकी रोज की जिंदगी का हिस्सा था.
बदलने का बनाया मन
लेकिन अब सब बदलने वाला है. दीक्षा के दिन वह इन सारी चीजों को हमेशा के लिए छोड़ देगा. न घड़ियां पहनेगा, न गहने, न कार में घूमेगा, न अच्छे कपड़े. सिर्फ सफेद धोती और एक कटोरी लेकर निकल पड़ेगा. जश की मां कहती हैं, “हमें बहुत गर्व है. जो भी रास्ता उसने चुना, हम उसके साथ हैं. उसे खाना-पीना, घूमना, घड़ियां, चश्मे, गहने – सब बहुत पसंद थे, फिर भी उसने सब छोड़ने का मन बना लिया.”
कैसे चुना ये रास्ता?
जश को यह रास्ता कैसे मिला? इसका जवाब पांच साल पहले का है. उनके चाचा पहले बिल्कुल आम जिंदगी जीते थे – व्यापार, परिवार, मौज-मस्ती. धार्मिक प्रवृत्ति बिल्कुल नहीं थी. एक दिन उन्होंने एक छोटी-सी किताब पढ़ी. बस उसी किताब ने उन्हें पूरी तरह बदल दिया. कुछ ही समय में उन्होंने सांसारिक जीवन छोड़कर जैन मुनि की दीक्षा ले ली. उस वक्त जश सिर्फ 13 साल के थे. चाचा का यह परिवर्तन देखकर वह अंदर तक हिल गए.
प्रवचनों ने उसे समझाया
धीरे-धीरे जश अपने गुरु यशोविजय सुरेश्वरजी महाराज के संपर्क में आए. गुरुजी के प्रवचनों ने उन्हें समझाया कि जो चीजें हम यहां जोड़ते हैं – पैसा, गाड़ी, बंगला – ये मरने के बाद कुछ काम नहीं आतीं. सच्ची शांति और खुशी तो आत्मा की खोज में है. जश ने रोज थोड़ा-थोड़ा बदलना शुरू किया. पहले पार्टी करना कम किया, फिर महंगी चीजें खरीदना बंद किया, फिर सादा खाना शुरू किया. आखिर में उन्होंने फैसला कर लिया कि अब बस बहुत हुआ, अब त्याग का रास्ता अपनाना है.
सूरत में भव्य शोभायात्रा निकलेगी
23 नवंबर का दिन करीब आ रहा है. उस दिन सूरत में भव्य शोभायात्रा निकलेगी. हजारों लोग जश को आखिरी बार सांसारिक रूप में देखना चाहते हैं. फिर वह केश लोच (बाल खींचने की रस्म) करेंगे और सफेद वस्त्र धारण कर लेंगे. उसके बाद जश मेहता नाम भी बदल जाएगा. वह एक जैन मुनि बन जाएंगे – बिना नाम, बिना संपत्ति, बिना इच्छा के.
जश की यह कहानी सिर्फ एक परिवार की नहीं है. यह आज की युवा पीढ़ी को आईना दिखाती है. जब हर कोई ज्यादा से ज्यादा कमाने, ज्यादा से ज्यादा चीजें जोड़ने की दौड़ में लगा है, तब एक 18 साल का लड़का सब छोड़कर चला जा रहा है. उसकी मां का गर्व, चाचा का परिवर्तन और गुरु का मार्गदर्शन – ये सब मिलकर बता रहे हैं कि जिंदगी में पैसा और चमक सब कुछ नहीं होती. कभी-कभी सच्ची राह कुछ और ही होती है.
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