Diwali 2025 Puja: दीवाली यानी रोशनी, खुशहाली और नई शुरुआत का त्योहार. इस दिन हर घर में दीपक जलते हैं, मिठाइयां बनती हैं और लोग मां लक्ष्मी की पूजा करते हैं ताकि घर में धन, सुख और समृद्धि बनी रहे. लेकिन आपने ध्यान दिया होगा कि दीवाली की पूजा में हमेशा मां लक्ष्मी के साथ भगवान गणेश जी की भी आराधना की जाती है. यह परंपरा सिर्फ एक धार्मिक रिवाज नहीं, बल्कि इसके पीछे गहरा आध्यात्मिक और जीवन से जुड़ा संदेश छिपा है. लक्ष्मी जी को धन और संपन्नता की देवी माना गया है, जबकि गणेश जी को बुद्धि, विवेक और सफलता के देवता. आइए जानते हैं कि दीवाली पर मां लक्ष्मी के साथ गणेश जी की पूजा क्यों जरूरी मानी जाती है और यह संयोजन हमारे जीवन में क्या संदेश देता है. इस बारे में बता रहे हैं ज्योतिषाचार्य अंशुल त्रिपाठी.
हिंदू मान्यताओं के अनुसार, भगवान विष्णु की पत्नी मां लक्ष्मी और भगवान शिव के पुत्र गणेश जी का एक खास संबंध है. कहा जाता है कि लक्ष्मी जी को गणेश जी बहुत प्रिय हैं, क्योंकि वे सिद्धि और बुद्धि के स्वामी हैं. धन तभी स्थायी रहता है जब उसके साथ बुद्धि और विवेक भी जुड़ा हो. इसलिए जहां मां लक्ष्मी को धन का प्रतीक माना जाता है, वहीं गणेश जी उस धन के सही उपयोग और प्रबंधन के प्रतीक हैं. यही वजह है कि हर शुभ कार्य की शुरुआत गणेश जी के नाम से होती है और दीवाली पर लक्ष्मी पूजन में उनकी उपस्थिति को बहुत शुभ माना जाता है.

क्यों मां लक्ष्मी अकेले की पूजा नहीं की जाती
पुराणों में कहा गया है कि अगर लक्ष्मी जी की पूजा अकेले की जाए तो धन तो आता है, लेकिन वह टिकता नहीं. क्योंकि धन के साथ विवेक न हो तो वह अहंकार और लोभ का कारण बन सकता है. गणेश जी की पूजा लक्ष्मी जी के साथ करने से बुद्धि, संयम और स्थिरता आती है. यानी अगर लक्ष्मी धन देती हैं तो गणेश जी उस धन को स्थायी और उपयोगी बनाते हैं. इसलिए दीवाली के दिन जब लोग धन की देवी को अपने घर आमंत्रित करते हैं, तो वे गणेश जी से यह प्रार्थना भी करते हैं कि वे इस धन का सदुपयोग करने की बुद्धि और समझ दें.

पुराणों में गणेश-लक्ष्मी पूजन की कथा
एक कथा के अनुसार, एक बार लक्ष्मी जी ने भगवान विष्णु से कहा कि वे भी किसी पुत्र की मां बनना चाहती हैं. विष्णु जी ने कहा कि वे सदैव जगत की माता हैं, इसलिए उन्हें पुत्र का अनुभव नहीं होगा. तब लक्ष्मी जी ने पार्वती जी से निवेदन किया कि वे अपने पुत्र गणेश को कुछ समय के लिए उन्हें दे दें. गणेश जी कुछ समय तक लक्ष्मी जी के साथ रहे और उन्होंने लक्ष्मी जी को प्रसन्न किया. उस दिन से लक्ष्मी जी ने वरदान दिया कि जहां मेरी पूजा होगी, वहां गणेश जी की भी पूजा जरूर होगी. तभी से दीवाली पर गणेश-लक्ष्मी पूजन का यह पवित्र संयोग चला आ रहा है.
गणेश जी सफलता और शुभता के प्रतीक
गणेश जी को विघ्नहर्ता यानी बाधाओं को दूर करने वाला देवता कहा गया है. वे बुद्धि, ज्ञान और नई शुरुआत के प्रतीक हैं. दीवाली नई उम्मीदों और नई शुरुआत का त्योहार है, इसलिए गणेश जी की पूजा से घर और जीवन में आने वाली रुकावटें दूर होती हैं. माना जाता है कि मां लक्ष्मी तो उस घर में प्रवेश करती हैं, जहां पहले गणेश जी का आशीर्वाद होता है.

पूजा का अर्थ और जीवन से जुड़ा संदेश
दीवाली पर लक्ष्मी-गणेश की पूजा केवल धार्मिक कर्मकांड नहीं, बल्कि यह हमें जीवन के दो सबसे जरूरी पहलुओं की याद दिलाती है धन और बुद्धि. धन से जीवन चलता है, लेकिन बुद्धि से जीवन बनता है. इसलिए दोनों का संतुलन ही सच्ची समृद्धि है. जब घर में लक्ष्मी आती हैं तो वे धन का आशीर्वाद देती हैं, और गणेश जी उस धन के सदुपयोग की दिशा दिखाते हैं.
यह परंपरा हमें सिखाती है कि सिर्फ पैसा ही खुशी नहीं देता, बल्कि सही सोच और विवेक के साथ उसका उपयोग ही जीवन में स्थायी सुख और सफलता लाता है.
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https://hindi.news18.com/news/dharm/diwali-2025-why-ganesh-ji-worshipped-along-with-maa-laxmi-legend-story-and-spiritual-significance-ws-kl-9751323.html