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ललिता देवी ने बताया कि इस साथर परंपरा की पूजा में अंकुरित चने का विशेष महत्व होता है. क्योंकि ऐसा माना जाता है कि जिस तरह अंकुरित चने से अंकुर निकलकर नये बीज का जन्म होता है उसी तरह साथर परंपरा में भी इंसान से …और पढ़ें

गर्भधारण के सातवें माह में पूजा पाठ करती महिलाएं ( सांकेतिक तस्वीर )
हाइलाइट्स
- साथर परंपरा में गर्भधारण के सातवें महीने में पूजा होती है
- पूजा में अंकुरित चने का विशेष महत्व होता है
- परिवार की सिर्फ महिलाएं ही इस पूजा में शामिल होती हैं
सुल्तानपुर: हमारे देश में जन्म से पहले और बाद में कई परंपराएं निभाई जाती हैं, जिनका जिक्र मनुस्मृति के 16 संस्कारों में भी मिलता है. इन्हीं में से एक है गर्भाधान संस्कार. उत्तर भारत के कई इलाकों में गर्भधारण से जुड़े विशेष आयोजन किए जाते हैं. अवध और सुल्तानपुर में ऐसी ही एक अनोखी परंपरा है, जिसे ‘साथर’ परंपरा कहा जाता है.
इस परंपरा के तहत गर्भवती महिला के सातवें महीने में एक विशेष पूजा की जाती है. यह पूजा परिवार की महिलाएं मिलकर संपन्न कराती हैं, और इसके बाद सामूहिक भोज कराया जाता है. ऐसा माना जाता है कि इस अनुष्ठान से होने वाला शिशु स्वस्थ रहता है और किसी भी प्रकार की बीमारी से बचा रहता है.
सिर्फ यही लोग होते हैं शामिल
स्थानीय महिला ललिता देवी ने बताया कि यह परंपरा पीढ़ियों से निभाई जा रही है. इसमें केवल परिवार की महिलाएं ही हिस्सा लेती हैं, और वे ही पूरी पूजा संपन्न कराती हैं. पुरुषों की इसमें कोई भूमिका नहीं होती.
अंकुरित चने का विशेष महत्व
इस पूजा में अंकुरित चने का खास महत्व है. मान्यता के अनुसार, जिस तरह अंकुरित चने से नया पौधा जन्म लेता है, उसी तरह यह परंपरा नए जीवन के आगमन का प्रतीक मानी जाती है.
साथर पूजा न करने से हो सकता है नुकसान?
लोक मान्यता के अनुसार, जिन परिवारों में यह परंपरा निभाई जाती है, अगर किसी पीढ़ी ने इसे छोड़ दिया, तो उनके होने वाले बच्चे के अस्वस्थ होने का खतरा बढ़ सकता है. यही वजह है कि लोग गर्भधारण के सातवें महीने में साथर देवी की पूजा करना जरूरी मानते हैं.
Sultanpur,Uttar Pradesh
March 06, 2025, 15:42 IST
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https://hindi.news18.com/news/lifestyle/culture-know-what-is-the-saathar-tradition-in-awadh-in-which-food-is-served-on-the-seventh-month-of-pregnancy-local18-9072109.html