छतरपुर: आधुनिक दौर में जहां बच्चे ज्यादातर समय मोबाइल से जुड़े रहते हैं, वहीं बुंदेलखंड के छतरपुर में एक ऐसा पारंपरिक उत्सव मनाया जाता है जिसे लेकर बच्चों में विशेष उत्साह होता है. इस उत्सव का नाम है महामुलिया, जो बुंदेलखंड की प्राचीन लोकपरंपराओं में से एक है.हालांकि यह उत्सव धीरे-धीरे कम होता जा रहा है, लेकिन छतरपुर के ग्रामीण इलाकों में आज भी बच्चों के बीच इस उत्सव का आयोजन देखने को मिलता है.
कैसे मनाया जाता है महामुलिया उत्सव?
महामुलिया उत्सव में लकड़ी के कांटेदार सूखे झाड़ पर फूल सजाए जाते हैं, जिसे महामुलिया कहा जाता है.एक लड़का इस महामुलिया को हाथ में लेकर तालाब तक ले जाता है, जिसे परंपरा के अनुसार बौरा कहा जाता है.इस दौरान बौरा लड़का महामुलिया विसर्जन तक एक शब्द भी नहीं बोलता है.छोटी और बड़ी लड़कियां फूलों से सजाए गए झकरा को लेकर तालाब की ओर जाती हैं, और इस यात्रा के दौरान महामुलिया के गीत गाए जाते हैं.तालाब पर पहुंचने के बाद, गोबर से चौक पूरकर महामुलिया की परिक्रमा की जाती है.अंत में, झकरा में सजे फूलों को जल में विसर्जित किया जाता है.विसर्जन के बाद सभी मिलकर प्रसाद खाते हैं और एक दूसरे के साथ खुशियाँ बांटते हैं.
15 दिन का उत्सव
यह उत्सव पूरे 15 दिन तक चलता है.पितृपक्ष की शुरुआत से लेकर उसके अंतिम दिन तक, यह परंपरा जारी रहती है.लोकमान्यता के अनुसार, यह उत्सव सदियों पुरानी परंपरा है, जो आज भी छतरपुर के कुछ क्षेत्रों में जीवित है.
महामुलिया उत्सव की शुरुआत कैसे हुई?
मान्यता के अनुसार, पितृपक्ष के दौरान कोई बड़ा उत्सव या खुशी का आयोजन नहीं किया जाता है, क्योंकि यह समय शोक का माना जाता है.इस अवधि में, परिवार के लोग अपने पितरों की याद में विशेष पूजा और अनुष्ठान करते हैं.लेकिन, कई सौ साल पहले, बच्चों की खुशी और मनोरंजन के लिए महामुलिया उत्सव की शुरुआत की गई थी, ताकि वे भी इस समय में आनंद का अनुभव कर सकें.यह उत्सव बच्चों के लिए खासतौर पर डिजाइन किया गया है ताकि पितृपक्ष की गंभीरता के बीच वे कुछ खुशियाँ मना सकें।
निष्कर्ष
छतरपुर का महामुलिया उत्सव न केवल बुंदेलखंड की प्राचीन लोकपरंपराओं को दर्शाता है, बल्कि यह बच्चों के लिए खुशी और आनंद का स्रोत भी है.यह अनोखा उत्सव बच्चों को परंपरा और संस्कृति से जोड़ने का एक माध्यम है, जिसे सदियों से निभाया जा रहा है.इस उत्सव में न केवल धार्मिक महत्व है, बल्कि यह बच्चों के मनोरंजन और उनके खुशी का भी प्रतीक है।
FIRST PUBLISHED : October 7, 2024, 18:08 IST
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