इस वर्ष बथुकम्मा उत्सव 21 सितंबर, 2025 से 29 सितंबर 2025 को सद्दुला बथुकम्मा के साथ समाप्त होगा यह नौ दिवसीय महोत्सव देवी गौरी (मां पार्वती) को समर्पित है और स्त्री ऊर्जा व प्रकृति की पूजा का प्रतीक माना जाता है. आइए जानते हैं इस पर्व के नौ दिनों के नाम, उनके विशेष महत्व और मनाने की परंपरा.
गाचीबोवली हनुमान मंदिर के पंडित जी के अनुसार इस उत्सव के हर दिन की एक अलग पहचान और महत्व है जो एक विशेष प्रसाद या सजावट से जुड़ा है.
एंगिली पुला बथुकम्मा (दिन-1):उत्सव की शुरुआत गाय के गोबर से बने शुभ आधार से होती है.
मुद्दप्पु बथुकम्मा (दिन-3): तीसरे दिन दाल और चावल से तैयार प्रसाद चढ़ाया जाता है.
अतला बथुकम्मा (दिन-5): इस दिन अतला (एक प्रकार का पैनकेक) बनाकर चढ़ाया जाता है.
वेपकायला बथुकम्मा (दिन-7): सातवें दिन बथुकम्मा को स्वास्थ्य का प्रतीक नीम के पत्तों से सजाया जाता है.
सद्दुला बथुकम्मा (दिन-9): नौवें और अंतिम दिन दूध से बने व्यंजन जैसे खीर का भोग लगाया जाता है और भव्य विसर्जन होता है.
हर शाम, महिलाएं अपने-अपने घरों से सजे-धजे बथुकम्मा लेकर एक स्थान पर एकत्रित होती हैं. यह बथुकम्मा रंग-बिरंगे फूलों को स्तूप के आकार में सजाकर बनाया जाता है. महिलाएं इसके चारों ओर घेरा बनाकर पारंपरिक लोक गीत गाते हुए नृत्य करती हैं, जिसे ‘बथुकम्मा पाडुता’ कहा जाता है. पूजा-अनुष्ठान के बाद, इन बथुकम्माओं को नदी या तालाब में विसर्जित कर दिया जाता है. नवें दिन का विसर्जन दशहरे के उत्सव के साथ मिलकर और भी भव्य रूप ले लेता है.
क्या है इस पुष्प उत्सव का महत्व?
यह पर्व महिलाओं को एक साथ लाता है और सामाजिक बंधनों को मजबूत करता है. प्रकृति का सम्मान जैसे फूलों, मिट्टी और जल के प्रति यह आभार प्रकृति के साथ सामंजस्य का संदेश देता है. बथुकम्मा तेलंगाना की गौरवशाली सांस्कृतिक विरासत की जीती-जागती मिसाल है यह देवी गौरी से कुटुंब के सुख, समृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य की कामना का पर्व है.
बथुकम्मा के विशेष पकवान
इस त्योहार पर बनने वाले पारंपरिक व्यंजनों में ऐप्प चूरमा, सज्जा, और साकिनालु (नमकीन) विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं। यह सभी व्यंजन सामूहिक भोज का हिस्सा बनते हैं.
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