मधुबनी:- मैथिल ब्राह्मणों में कहावत बड़ा प्रसिद्ध है- ‘विवाह से विधि भारी’, जिसका मतलब होता है कि शादी से ज्यादा उसमें विधि और रीति-रिवाज होता है. ऐसी ही एक रीति सदियों से मैथिल ब्रह्माण में चली आ रही है, जब किसी लड़की की शादी में बारात दरवाजे पर आ जाता है, तब आखिरी बार दुल्हन कुमारी गौरी की पूजा करती है. उसके बाद से फिर शादी के बाद गौरी पूजा होती है.
हाथी चढ़कर गौरी पूजा
कुमारी गौरी पूजा का बड़ा महत्व है. माना जाता है कि जब दरवाजे पर बारात आ जाता है, उसके बाद लड़की हाथी पर ( जो मिट्टी का बनाया जाता है, सजाकर कलर किया होता है) चढ़कर गौरी पूजा करती है, राम जैसे पति की कामना करती है. नियम यह है कि एक सुपारी को गौरी प्रतिष्ठित किया जाता है और दुल्हन उसको सिंदूर से पूजा करती है. जिसके घर मे लड़की की शादी होती है, वहां की दादी-नानी मिट्टी की हाथी बनाने में कुछ दिन पहले ही जुट जाती हैं. उसको रंग भरा जाता है, अच्छा आकार दिया जाता है.
साथ ही सर्वा (मिट्टी का कटोरा) में सुपारी को लाल रंग से रंगकर पूजा जाता है. दुल्हन शादी के दिन सज-धजकर आंचल से ढककर हाथी चढ़कर गौरी पूजा करती है. माना जाता है कि यह रश्म माता सीता ने पहली बार किया था, तो प्रभु राम उन्हें मिले थे और तब से हर मैथिल ब्रह्माण की लड़की इस परंपरा को निभाती आ रही है. Bharat.one को अंजू देवी बताती हैं कि कुंवारी लड़की शादी के दिन हाथी चढ़कर गौरी पूजा करने से सौभाग्यशाली होती है और पति अच्छा मिले, इसकी कामना करती है.
गौरी मंत्र का जाप
पूजा करते समय एक मंत्र भी उच्चारण करती हैं, जो घर के बड़े दादी/ नानी दुल्हन को सिखाती हैं. यह मंत्र कुंवारी गौरी पूजा के दिन से जब तक पति जिंदा रहते हैं, तब तक पढ़ती हैं. मंत्र मैथिली में इस प्रकार है- ‘हे गौरी महामाया, चंदन डाली तोरईत ऐली, फुलक माला गथैत ऐली, सुहाग भाग्य बाटेईत ऐली, चंदन डाला फुलक माल अपने लेली, सुहाग भाग्य हमरा देली स्वामी पुत्र गौरीये नमः’.
FIRST PUBLISHED : December 12, 2024, 10:42 IST
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