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Folk Culture: बघेलखंडी लोकनृत्य ‘दुलदुल घोड़ी’ से उत्साह और शौर्य का संचार, सामाजिक समस्या का होता था प्रचार, झेल रहा समय की मार


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Folk Culture: मध्यप्रदेश में बघेलखांड का इलाका न सिर्फ प्राकृतिक सौंदर्य के लिए बल्कि स्थानीय प्राचीन परंपराओं और ऐतिहासिक विरासत के लिए भी जाना जाता है. यहां के स्थानीय लोक नृत्य लोकगीत आज भी प्रचलन में है. शा…और पढ़ें

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बघेलखंड

बघेलखंड का लोकनृत्य है दुलदुल घोड़ी, उत्साह और शौर्य का है प्रतीक, जानिए खासियत.

हाइलाइट्स

  • उत्साह और शौर्य का प्रतीक है बघेलखंडी लोकनृत्य ‘दुलदुल घोड़ी’
  • कला को जीवित रखे हुए हैं रीवा के कलाकार राजमणि तिवारी भोला
  • मध्यप्रदेश सरकार के कार्यक्रमों में होता है दुलदुल घोड़ी का आयोजन

बघेलखंड. मध्यप्रदेश में बघेलखंड का इलाका न सिर्फ प्राकृतिक सौंदर्य के लिए बल्कि स्थानीय प्राचीन परंपराओं और ऐतिहासिक विरासत के लिए भी जाना जाता है. यहां के स्थानीय लोकनृत्य और लोकगीत आज भी प्रचलन में है. शादियों में या उत्सव के किसी भी कार्यक्रम में पहले बघेलखंड का मशहूर लोक नृत्य दुलदूल घोड़ी हर घर में हुआ करता था. रीवा के कलाकार रंगकर्मी राजमणि तिवारी भोला के द्वारा आज भी इस कला को जीवित रखा गया है. राजमणि तिवारी भोला आज भी दुलदुल घोड़ी का प्रदर्शन देश के कई राज्यों के बड़े मंचो पर कर रहे हैं.

डाॅ. मुकेश ऐंगल ने विस्तार से बताया 
बघेलखंड में पहले बहुत सी कलाए थी जो काफी समृद्ध थी. दुलदुल घोड़ी भी उनमें से एक लोकनृत्य था. इस लोकनृत्य को लिल्ली घोड़ी लोकनृत्य भी कहा जाता है. लेकिन बदलते दौर के साथ पश्चात संस्कृति ने इन कलाओं को काफी नुकसान पहुंचाया है. आज के दौर में डीजे की धुन में थिरकना लोग पसंद करते है लेकिन अपने कलाओं को जीवित रखने की रुचि अब लोगों में नहीं है. यह नृत्य उत्साह और उत्सव का प्रतीक है. बघेलखंड में जब पहले शादी ब्याह हुआ करते था उसमे व्यक्ति विदूषक के रूप में काठ यानी लकड़ी की घोड़ी पहन कर बारात के आगे आगे बड़ा उत्साह से चला करता था. उसको लोग बड़े ही प्यार से बुलाते थे. वो सभी का मनोरंजन किया करता था. उस समय मेले में त्योहारों दुलदुल घोड़ी का नृत्य करने वाले आसानी से मिल जाते थे.

नृत्य के जरिए समसामयिक समस्याओं पर होती थी बात 
समाजशास्त्रीय डाॅ.ऐंगल ने बताया कि पहले कलाकार अपने नृत्य के जरिए लोकगीत के माध्यम से समसामयिक समस्याजों पर बात किया करते थे और समाज की बुराइयों को लेकर जागरूक भी किया करते थे. इसी लोक नृत्य के माध्यम से पहले लोगों का मनोरंजन किया जाता था. उसी से उन कलाकारों को कुछ पैसे भी मिल जाते थे.धीरे धीरे समय बदलता गया चीजें बदलती गई है. बैंडवाजा और डीजे संस्कृति के कारण ऐसे बहुत से कलाकार का जीवनयापन ही संकट में पड़ गया.

सरकारी कार्यक्रम में दुलदुल घोड़ी नृत्य का आयोजन
अब पुराने कलाकारों ने इस कला को छोड़ दिया. लोग अब लोक कला करने के बजाय मजदूरी करना बेहतर समझने लगे हैं. अभी भी रीवा के कुछ रंगमंचकर्मी इस कला का प्रदर्शन कर रहे हैं और इस कला को अच्छा से अच्छा मंच देने का प्रयास कर रहे हैं. मध्यप्रदेश सरकार के कई कार्यक्रमों में बघेलखंड के इस दुलदुल घोड़ी के नृत्य का आयोजन होता है.

अब शौर्य गाथा का होता है प्रदर्शन 

पहले समस्यों पर चर्चा होती थी तो कुछ उत्सव में हास्य परिहास का भी मंचन होता था. लेकिन अब विंध्य क्षेत्र के स्वतन्त्रता सेनानियों की शौर्य गाथा का प्रदर्शन रंगमंच कर्मियों द्वारा किया जाता है.

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बघेलखंड का लोकनृत्य दुलदुल घोड़ी है उत्साह और शौर्य का प्रतीक, जानिए खासियत


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https://hindi.news18.com/news/lifestyle/culture-duldul-ghori-is-the-folk-dance-of-baghelkhand-a-symbol-of-enthusiasm-and-bravery-know-its-speciality-local18-9150664.html

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