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Folk Tradition: भरतपुर की हेला-ख्याल दंगल लोकगीत परंपरा में वीरता, प्रेम, भक्ति और सामाजिक जीवन के गीत गाए जाते हैं. यह गायन शैली बिना वाद्ययंत्र के होती है और संस्कृति, परंपरा व भाईचारे की झलक दिखाती है.

हेला ख्याल दंगल
हाइलाइट्स
- लोकगीत की अनूठी परंपरा भरतपुर की हेला-ख्याल दंगल
- बिना वाद्ययंत्र के होती है यह गायन शैली
- हेला-ख्याल दंगल में गाए जाते हैं वीरता, प्रेम, भक्ति के गीत
भरतपुर. भरतपुर का नाम सुनते ही इसके समृद्ध इतिहास, शानदार किले और प्रसिद्ध पक्षी अभयारण्य की छवि उभरती है. लेकिन यहां की लोकसंस्कृति भी कम अनूठी नहीं है. भरतपुर और इसके आसपास के ग्रामीण इलाकों में हेला-ख्याल दंगल लोकगीतों की एक विशिष्ट परंपरा है, जो वर्षों से चली आ रही है. यह न केवल मनोरंजन का माध्यम है, बल्कि इसमें लोकजीवन, समाज और संस्कृति का गहरा प्रतिबिंब देखने को मिलता है.
हेला-ख्याल दंगल की सामूहिक गायन प्रतियोगिता
जिसमें दो या अधिक टीमें भाग लेती हैं. यह एक प्रकार की गीतों की जुगलबंदी होती है, जहां एक टीम गीत की पंक्तियां गाकर चुनौती देती है और दूसरी टीम उसका उत्तर अपने गीत से देती है. इस पूरे आयोजन में गीतों का आदान-प्रदान इतना दिलचस्प होता है कि श्रोता मंत्रमुग्ध हो जाते हैं. इस गायन शैली की सबसे खास बात यह है कि इसमें किसी भी वाद्ययंत्र का प्रयोग नहीं किया जाता, केवल गायक अपनी तान, स्वर और लय के माध्यम से पूरे माहौल को संगीतमय बना देते हैं.
इन गीतों की है परंपरा
हेला-ख्याल के गीतों में विभिन्न प्रकार के गीत गाए जाते हैं, जैसे वीरता – महाराजा सूरजमल, वीर दुर्गादास राठौर, पृथ्वीराज चौहान जैसे ऐतिहासिक नायकों की गाथाएं; प्रेम और श्रृंगार – राधा-कृष्ण की लीलाओं और लोककथाओं पर आधारित गीत; भक्ति – भगवान राम, कृष्ण और अन्य देवी-देवताओं की स्तुतियां; सामाजिक जीवन – समाज में होने वाली घटनाएं, किसानों और श्रमिकों की कठिनाइयां; हास्य-व्यंग्य और समसामयिक विषयों के आधार पर गीत गाए जाते हैं.
देखने को मिलती है संस्कृति, परंपराऔर आपसी भाईचारे की झलक
हेला-ख्याल दंगल विशेष अवसरों, मेलों और तीज-त्योहारों पर आयोजित किए जाते हैं. शादी-विवाह या अन्य सामाजिक समारोहों में भी गांवों में इसे बड़े चाव से गाया जाता है. यह न केवल मनोरंजन का साधन है, बल्कि इसमें गांवों की संस्कृति, परंपराएं और आपसी भाईचारे की झलक भी देखने को मिलती है. भरतपुर की इस अनमोल लोकगायन परंपरा को संजोने और आगे बढ़ाने की जरूरत है. आज भी कई बुजुर्ग और युवा इसे गाने में रुचि रखते हैं, जिससे यह परंपरा जीवंत बनी हुई है.
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https://hindi.news18.com/news/lifestyle/culture-hela-khayal-dangal-is-a-priceless-heritage-of-music-of-bharatpur-where-the-glimpse-of-culture-resides-in-the-tunes-tradition-has-been-going-on-for-many-years-local18-ws-b-9118005.html