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Special Tradition: होली के 13 दिन बाद होता है आयोजन, शाहजहां का पसंदीदा नृत्य नाहर, 1614 ईस्वी से प्रारंभ हुई यह परंपरा 


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Special Tradition: रमेश बलिया ने बताया कि यह परंपरा 1614 ईस्वी से प्रारंभ हुई है उस समय मुगलों की छावनी थी और हमारे यहां से शाहजहां दिल्ली की ओर प्रस्थान कर रहे थे उसे समय कस्बे वासियों ने सोचा कि उन्हें खुश कर…और पढ़ें

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नृत्य

नृत्य करते हुए कलाकार

हाइलाइट्स

  • भीलवाड़ा में 1614 से जारी है नाहर नृत्य की परंपरा
  • शाहजहां को खुश करने के लिए शुरू हुआ था नाहर नृत्य
  • रुई से लिपटे कलाकार शेर का रूप धारण कर करते हैं नृत्य

भीलवाड़ा. भीलवाड़ा में कई पुरानी परंपराएं आज भी जीवित हैं. आज हम आपको भीलवाड़ा की एक ऐसी प्राचीन परंपरा से परिचित करवा रहे हैं, जो शाहजहां के मुगलकालीन समय से चली आ रही है. यह परंपरा न केवल एक परंपरा है बल्कि भीलवाड़ा में इसे एक त्योहार की तरह मनाया जाता है. भीलवाड़ा में नाहर नृत्य की परंपरा बहुत खास और रोचक है. इसमें कलाकार अपने पूरे शरीर पर रुई लपेटकर नाहर यानी शेर का रूप धारण करते हैं और शिकार करने के अंदाज में नृत्य करते हैं.

शाहजहां को खुश करने के लिए हुई थी शुरुआत 
कहा जाता है कि मुगलकालीन समय में यह नृत्य शाहजहां को खुश करने के लिए मांडल के कलाकारों द्वारा किया गया था. इस बार भीलवाड़ा जिले के मांडल स्टेडियम में सामूहिक रूप से 412वीं बार इस परंपरा का आयोजन किया जाएगा. यह नृत्य साल में केवल एक बार राम और राज के सामने ही प्रस्तुत होता है, जिसे देखने के लिए मांडल कस्बे में भारी भीड़ जमा होती है. जिले के मांडल कस्बे में होली के 13 दिन बाद यानी रंग तेरस पर नाहर नृत्य किया जाता है.

1614 ईस्वी से प्रारंभ हुई यह परंपरा
राजस्थान लोक कला केंद्र मांडल के अध्यक्ष रमेश बलिया ने बताया कि यह परंपरा 1614 ईस्वी से प्रारंभ हुई है. उस समय मुगलों की छावनी थी और शाहजहां दिल्ली की ओर प्रस्थान कर रहे थे. तब कस्बे वासियों ने सोचा कि उन्हें खुश करने के लिए एक ऐसा आयोजन किया जाए जिससे शाहजहां खुश हो जाएं. उस समय रुई से व्यक्ति को लपेटकर नाहर का रूप धारण करवा कर नृत्य करवाया गया. इसके पीछे दो तर्क माने जाते हैं – नरसिंह अवतार को भी इसमें माना गया और साथ ही यह परंपरा दिल्ली में भी शुरू की गई, लेकिन शाहजहां के शासन के बाद वह बंद हो गई.

दीवाली से बढ़कर यह परंपरा
राजस्थान लोक कला केंद्र मांडल के अध्यक्ष रमेश बलिया ने बताया कि मांडल में यह परंपरा दिवाली से भी बड़ा त्योहार माना जाता है. इस त्योहार के दिन हमारी बहन-बेटी, दामाद और सभी पारिवारिक लोग मांडल में आते हैं. हर घर में मिठाई और कई तरह के व्यंजन बनते हैं और बहुत धूमधाम से नाहर नृत्य त्योहार को मनाया जाता है.

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शाहजहां का पसंदीदा नृत्य, रुई से लिपटे इंसान शेर के रूप में करते हैं नाहर


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https://hindi.news18.com/news/lifestyle/culture-unique-tradition-that-has-been-going-on-since-the-monarchy-times-people-wrapped-in-cotton-perform-the-nahar-dance-in-the-guise-of-lions-local18-ws-b-9127982.html

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