First Meeting Of Vishwanath and Adi Shankra: देशभर में काशी के ज्ञानवापी मामले से कोई भी अछूता नहीं है. कुछ लोगों का मानना है कि ज्ञानवापी मंदिर है तो किसी का कहना है कि यह मस्जिद है. हालांकि इतिहास के पन्नों में इस बात का जिक्र मिलता है कि काशी विश्वनाथ मंदिर 9 से 10 वीं शताब्दी के बीच का प्रमाणित होता है और 14वीं से लेकर 16 वीं शताब्दी के बीच इसे दोबारा बनवाया गया. आज जब गोरखपुर में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पहुंचे तो उन्होंने कहा कि ज्ञानवापी को दूसरे शब्दों में मस्जिद कहना हमारा दुर्भाग्य है. इस कार्यक्रम में सीएम योगी ने उस वाक्या को भी साझा किया जिसमें भगवान विश्वनाथ से आदि शंकर की मुलाकात हुई थी. क्या थी वो मुलाकात आइए जानते हैं भोपाल निवासी ज्योतिषी एवं वास्तु सलाहकार पंडित हितेंद्र कुमार शर्मा से.
क्यों कहा जाता है ज्ञानवापी?
इस जगह को ज्ञानवापी कहते हैं क्योंकि यहां पर एक कुआं है जिसका नाम ज्ञानवापी है. अहिल्याबाई ने साल 1780 में मंदिर का स्वरूप लौटाने का काम किया था. ज्ञानवापी वाली दीवार 1833 में बनाई गई और राजा रणजीत सिंह ने 1835 में एक किलो सोना मंदिर को दान में दिया था.
भगवान विश्वनाथ और आदि शंकर की एक मुलाकात
आदि शंकर का जन्म केरल में हुआ था. उन्होंने देश के चारों कोनों में धर्म-अध्यात्म के लिए महत्वपूर्ण पीठों की स्थापना की. जब आदि शंकर अद्वैत ज्ञान से परिपूर्ण होकर काशी आए तो भगवान विश्वनाथ ने उनकी परीक्षा ली. एक दिन आदि शंकर ब्रह्म मुहूर्त में जब गंगा स्नान के लिए निकले तो भगवान विश्वनाथ ने एक अछूत का वेश धारण कर उनके सामने खड़े हो गए.
उन्हें देख आदि शंकर ने मार्ग से हटने के लिए कहा तब उसी रूप में भगवान विश्वनाथ ने उनसे पूछा कि आप यदि अद्वैत ज्ञान से परिपूर्ण हैं, तो आपको किसी केवल भौतिक काया नहीं देखनी चाहिए. अगर ब्रह्म सत्य है तो मुझमें भी वही ब्रह्म है जो आप में है. आश्चर्यचकित आदि शंकर ने जब अछूत बने भगवान का परिचय जाना, तो भगवान ने बताया कि मैं वही हूं, जिस ज्ञानवापी की साधना के लिए आप काशी आए हैं.
FIRST PUBLISHED : September 15, 2024, 19:52 IST