उत्तरकाशी. इन दिनों उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्र में राज्य पुष्प ब्रह्मकमल खिल चुके हैं. ब्रह्मकमल का रीति-रिवाजों और पौराणिक परंपराओं से गहरा संबंध है. सावन के महीने में उत्तरकाशी जिले के विभिन्न क्षेत्रों में हारदूधू मेले के बाद अगस्त से सितंबर तक सेलकू त्योहार मनाए जाते हैं. इस त्योहार की शुरुआत में सबसे पहले ब्रह्मकमल को स्थानीय देवी-देवताओं को अर्पित किया जाता है.
उच्च हिमालयी क्षेत्रों में ब्रह्मकमल अपनी सुंदरता बिखेर रहा है. इन दिनों हर्षिल और टकनौर क्षेत्र में भी ब्रह्मकमल खिले हुए हैं. ब्रह्मकमल खिलने के साथ ही स्थानीय ग्रामीण ब्रह्मकमल को तोड़कर उत्तरकाशी की गंगा घाटी में सोमेश्वर भगवान को चढ़ाते हैं. स्थानीय लोग आराध्य देवी की पूजा करने के बाद ही हारदूधू मेले में ब्रह्मकमल को तोड़कर देवता को अर्पित करते हैं.
स्थानीय देवी-देवताओं को चढ़ाया जाता है ब्रह्मकमल
हिमालय में सावन मास के शुरुआत में ब्रह्मकमल खिलना शुरू हो जाते हैं.उत्तराखंड में ब्रह्मकमल का अपना धार्मिक महत्व है. ब्रह्मकमल का धार्मिक और पौराणिक मान्यताओं से विशेष संबंध है. उत्तरकाशी के विभिन्न हिस्सों में हारदूधू मेले के बाद सेलकू त्योहार अगस्त से लेकर सितंबर तक मनाए जाते हैं. इस समय जब ब्रह्मकमल को तोड़कर लाया जाता है, तब सबसे पहले स्थानीय देवी-देवताओं को ब्रह्मकमल चढ़ाया जाता है और उसके बाद स्थानीय लोग अपने घरों में पूजा-अर्चना करते हैं और घर में देवी-देवताओं को ब्रह्मकमल चढ़ाते हैं.
बिना देव अनुमति के नहीं तोड़ा जाता है ब्रह्मकमल
उत्तराखंड में ब्रह्मकमल को तोड़कर देवताओं को चढ़ाने की परंपरा पहले से ही रही है. ब्रह्मकमल उच्च हिमालयी क्षेत्र में पाया जाता है, जिन्हें तोड़कर लाना एक कठिन और साहसिक काम है. इसलिए लोक मान्यताओं के अनुसार, अगस्त में होने वाले हारदूधू मेले से पहले ग्राम देवता की अनुमति ली जाती है.उसके बाद देवडोली कुछ लोगों को चयनित कर उन्हें फूल तोड़ने के लिए भेजती है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार हारदूधू मेले से पहले बिना देव अनुमति के ब्रह्मकमल को नहीं तोड़ा जाता है और जो ऐसा करता है वह देव दोष का भागी होता है, क्योंकि ब्रह्मकमल को देव पुष्प माना जाता है.
FIRST PUBLISHED : August 26, 2024, 16:19 IST
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