देहरादून : देहरादून के जौनसार बावर क्षेत्र में स्थित कालसी गांव धार्मिक एवं सांस्कृतिक रूप से अतीत के पन्नों में खास महत्व रखता है. चकराता मार्ग पर अमलावा नदी के तट पर मौजूद मां काली का प्राचीन मंदिर उन्हीं में से एक है. पौराणिक मान्यता के अनुसार यह मंदिर महाभारत काल से विद्यमान है. कहा जाता है कि एक साल के अज्ञातवास के दौरान मां काली ने इस स्थान पर पांडवों को साक्षात् दर्शन दिए थे.
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब पांडव एक साल के अज्ञातवास के लिए इस क्षेत्र में पहुंचे थे, उस दौरान यहां एक गुफा में पांचों पांडवों ने विश्राम किया था. यह मंदिर द्वापरकालीन माना जाता है. गुफा में विश्राम के बाद जब पांचों भाई लाखामंडल की ओर प्रस्थान करने लगे उस दौरान मां काली उनके सामने प्रकट हो गई और पांडवों ने मां काली की आराधना की थी.
मां काली ने दिया था यहां पांडवों को ये वरदान
पांडवों की भक्ति को देख मां काली ने उन्हें अभय वरदान दिया था. किवदंती है कि जब पांडव स्वर्गारोहण के लिए निकले थे तो वे यमुनोत्री मंदिर में दर्शन से पूर्व कालसी के काली मंदिर दोबारा गए और वहां पूजा-अर्चना की. यह मां काली का स्वयंभू सिद्ध पीठ है. मंदिर में मौजूद मुख्य पुजारी भारत भूषण शर्मा ने लोकल18 को बताया कि वर्तमान समय में जिस गुफा में पांडव रहे थे वो बंद हो चुकी है, लेकिन इसका साक्ष्य पुराणों में मिलता है कि यहां भी एक गुफा थी. हालांकि आज भी मुख्य द्वार मौजूद है.
मनोकामना पूरी करता है वृक्ष
मुख्य पुजारी भारत भूषण शर्मा ने लोकल18 को बताया कि यहां आज भी मंदिर परिसर में एक वृक्ष मौजूद है, जो भक्तों की मनोकामना पूरी करता है. कई भक्त अपनी कामना मन में रखकर वृक्ष पर धागा या चुनरी बांधते हैं और मनोकामना पूरी होने पर मां काली को प्रसाद चढ़ाते हैं.
इस कारण क्षेत्र का नाम पड़ा कालसी
सिखों के दसवें गुरु गुरु गोविंद सिंह जी के समकालीन हुए ऋषि कालपी की कालसी तपोभूमि है. जहां उन्होंने वर्षों तपस्या की थी. मां काली के मंदिर और कालपी ऋषि की तपोभूमि होने के कारण क्षेत्र का नाम कालसी पड़ा. जब गुरु गोविंद सिंह हिमाचल प्रदेश के सिरमौर रियासत के राजा के बुलावे पर उनकी रक्षा के लिए यमुना के तट पर पांवटा साहिब आए थे तब उन्होंने यहां पर साधना की और यमुना के उग्र रूप को शांत किया था.
FIRST PUBLISHED : August 27, 2024, 14:21 IST
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