वाराणसी : धार्मिक मान्यता है कि काशी भगवान शिव के त्रिशूल पर टिकी है. कहते हैं कि काशी में जो आखिरी सांस लेता है, उसे मोक्ष मिलता है. लेकिन मृत्यु के बाद जिन लोगों को मोक्ष नहीं मिलता वें प्रेत योनि में प्रवेश कर जाते हैं. महादेव की काशी में एक ऐसा तीर्थ है जहां खास अनुष्ठान से भटकती आत्माओं को प्रेत योगी से मुक्ति जाती है. पितृपक्ष में इस तीर्थ में खास अनुष्ठान के लिए देश भर से श्रद्धालु आते हैं और अपने परिजनों के मुक्ति के लिए श्राद्ध और तर्पण करते हैं.
वाराणसी के इस स्थान को पिशाच मोचन कुंड के नाम से जाना जाता है. इसे विमल तीर्थ भी कहते हैं. ऐसी धार्मिक मान्यता है कि इस कुंड के जल से पितरों का तर्पण और श्राद्ध से उनके मुक्ति का मार्ग प्रशस्थ होता है. कहा जाता है इस तीर्थ का जल काशी में गंगा के आगमन से पहले का है.
होता है ये खास अनुष्ठान
पिशाच मोचन तीर्थ के पुरोहित नीरज कुमार पांडेय ने Bharat.one को बताया कि जिस व्यक्ति की अकाल मृत्यु होती है उनके आत्मा की शांति के लिए इस तीर्थ पर त्रिपिंडी श्राद्ध और नारायण बलि का अनुष्ठान कराया जाता है. मान्यता है कि इस अनुष्ठान से भटकती आत्माओं को मुक्ति मिल जाती है और उनके मोक्ष का द्वार भी खुल जाता है. पूरे दुनिया में सिर्फ यही तीर्थ ऐसा है जहां भटकती आत्माओं के मुक्ति के लिए यह पूजा की जाती है.
कैसे होता है त्रिपिंडी श्राद्ध?
पुरोहित नीरज कुमार पांडेय ने बताया कि धार्मिक मान्यता के अनुसार तामसी, राजसी और सात्विक ये तीन तरह की आत्माएं होती हैं. इनके मुक्ति के लिए त्रिपिंडी श्राद्ध होता है. जिसमें तीन कलश में अलग-अलग रंगों के कपड़ो का इस्तेमाल कर ब्रह्मा, विष्णु और महेश का आह्वान कर उनकी पूजा की जाती है. उसके बाद नारायण बलि दिया जाता है. इससे भटकती आत्माओं को प्रेत योनि से मुक्ति मिल जाती है.
काशी खंड में है पिशाच मोचन तीर्थ का उल्लेख
पुरोहित नीरज कुमार पांडेय ने बताया कि धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस तीर्थ पर एक पिशाच की मुक्ति के लिए ऋषि वाल्मीकि ने खुद शिव सहस्त्रनाम का पाठ किया था. जिससे प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने उस पिशाच को प्रेत योनि से मुक्ति दिलाई थी. काशी के तीर्थ स्थलों की सबसे प्रमाणिक पुस्तक काशी खंड के 54 वें अध्याय में इस तीर्थ का उल्लेख है.
FIRST PUBLISHED : September 19, 2024, 16:49 IST
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