Friday, February 7, 2025
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कोई भी बीमारी हो… यहां सिर्फ माथा टेकने से हो जाती दूर, हिंदुओं का भी लगता है जमावड़ा


मऊ: क्या आपने सुना है किसी धार्मिक स्थल पर जाने से बीमारियां दूर होती हैं अगर नहीं तो हम आपको एक कहानी बता रहे हैं उत्तर प्रदेश के मऊ जनपद के मुख्यालय से लगभग 35 किलोमीटर दूर मधुबन के उंदरी गांव का जहां नोमान देश से आकर बसे एक मौलवी की है. जिसकी वहां समाधि बनाई गई है और उसकी समाधि पर आकर लोग माथा टेकते हैं. यहां कई प्रकार की बीमारियां दूर होती है.

लोकल-18 से बात करते हुए शाह गुलामी नूरानी बताते हैं कि यह हजरत शाह मुहम्मद मोहिद्दीन का मजार है. जिनका इंतकाल 1951 ईस्वी में हुआ था और तब से ही यहां मजार बनाया गया है. इस स्थान की मान्यता है कि यह एक खानका हैं जो अल्लाह की राह में सही रास्ता दिखाने के लिए बना हुआ है. यहां हिंदू और मुस्लिम दोनों लोग आते हैं. यहां जो भी देवी रूप के प्रकोप से दूषित होते हैं वह यहां आकर ठीक हो जाते हैं.

हर मरीज को यहां मिलता है आराम
यहां कभी-कभी ऐसा होता है कि लोग एक दिन में भी ठीक हो जाते हैं और कभी-कभी ऐसा होता है कि 30 से 40 दिन भी लगता है. लेकिन यहां जो भी कोई मरीज आया है वह ठीक होकर ही गया है. यहां लोग भारत से ही नहीं विदेशों से भी लोग आते हैं. 1780 सदस्य नोमान देश से सन 1887 में आए थे जो देश के कोउत्तर प्रदेश के मऊ जनपद के मधुबन तहसील के उंदरी गांव में स्थित हजरत शाह मुहम्मद मोहिद्दीन की मजार धार्मिक आस्था का एक प्रमुख केंद्र है. यह मजार एक खानकाह के रूप में जानी जाती है, जहां लोग धार्मिक मार्गदर्शन और शांति की तलाश में आते हैं. इस मजार की विशेष मान्यता यह है कि यहां माथा टेकने से विभिन्न प्रकार की बीमारियां दूर हो जाती हैं और लोग शारीरिक और मानसिक कष्टों से मुक्ति पाते हैं.

धार्मिक मान्यता और चमत्कारिक उपचार
लोकल18 से बातचीत के दौरान शाह गुलामी नूरानी ने बताया कि हजरत शाह मुहम्मद मोहिद्दीन का इंतकाल 1951 ईस्वी में हुआ था और तभी से उनकी समाधि यहां स्थित है. इस मजार की मान्यता यह है कि यह एक खानकाह है, जहां सही रास्ते की तलाश करने वाले लोगों को मार्गदर्शन मिलता है. यह स्थान हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों के लिए पूजनीय है, और यहां आकर जो भी व्यक्ति देवी-प्रकोप या किसी अन्य शारीरिक बीमारी से पीड़ित होता है, वह ठीक हो जाता है.

हजरत शाह मुहम्मद मोहिद्दीन का इतिहास
शाह गुलामी नूरानी बताते हैं कि हजरत शाह मुहम्मद मोहिद्दीन का संबंध नोमान देश से था और वे 1887 में भारत आए थे. उनके अनुयायी देश के विभिन्न कोनों में बसे हुए हैं. हजरत की पुण्यतिथि पर हर साल ईद के 20वें दिन उर्स का आयोजन किया जाता है. इस अवसर पर देश-विदेश से उनके अनुयायी और रहनुमा मजार पर आकर चादर चढ़ाते हैं और अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं.

मजार पर होने वाला उर्स और श्रद्धालुओं की आस्था
हर साल उर्स के दौरान हजारों की संख्या में लोग इस मजार पर आते हैं. यह उर्स हजरत शाह मुहम्मद मोहिद्दीन की पुण्यतिथि के रूप में मनाया जाता है, जहां लोग उनकी शिक्षाओं और उनके द्वारा बताए गए सही रास्ते को याद करते हैं. इस उर्स के दौरान विशेष पूजा-अर्चना और धार्मिक अनुष्ठान आयोजित किए जाते हैं, जिसमें शामिल होने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं.

Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी, राशि-धर्म और शास्त्रों के आधार पर ज्योतिषाचार्य और आचार्यों से बात करके लिखी गई है. किसी भी घटना-दुर्घटना या लाभ-हानि महज संयोग है. ज्योतिषाचार्यों की जानकारी सर्वहित में है. बताई गई किसी भी बात का Bharat.one व्यक्तिगत समर्थन नहीं करता है.

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