अभिषेक जायसवाल/ वाराणसी: आठ वर्ष के बालकों का एक समूह जो जब मंत्रों का उच्चारण करते हैं, तो देखने लायक आभा बनती है. आम बोल चाल में इन्हें बटुक कहते हैं. बटुक एक विशेष वर्ग के बालक होते हैं, जिन्हें हिंदू धार्मिक परंपराओं में विशेष रूप से प्रशिक्षण दिया जाता है. इन्हें धार्मिक शिक्षा, संस्कार और कर्मकांडों की विधिवत जानकारी दी जाती है, ताकि वे भविष्य में धार्मिक अनुष्ठानों, पूजा-पाठ और यज्ञों में भाग ले सकें.
कौन होते हैं बटुक
बटुक सामान्यतः ब्राह्मण परिवारों के वे बालक होते हैं, जिन्हें छोटी उम्र से ही धार्मिक संस्कार और वेदों का ज्ञान प्राप्त कराने के उद्देश्य से प्रशिक्षित किया जाता है. इन्हें वेदाध्ययन, मंत्रों का उच्चारण और धार्मिक कर्मकांडों का प्रशिक्षण दिया जाता है. बटुक का चयन प्रायः उस परिवार में किया जाता है, जहां धार्मिक परंपराओं का पालन पीढ़ियों से किया जा रहा हो.
बटुकों का चयन और कर्मकांड
बटुकों का चयन उनके धार्मिक संस्कारों और परिवार की परंपराओं के आधार पर किया जाता है. आमतौर पर यह प्रक्रिया तब शुरू होती है जब बच्चा 8-12 वर्ष की आयु में होता है. चयन के बाद, बटुकों को गुरु द्वारा दीक्षा दी जाती है, जिसमें वेदों का पाठ, संस्कृत भाषा का अध्ययन और धार्मिक कर्मकांडों की शिक्षा दी जाती है.
कर्मकांडों में बटुकों की भूमिका
बटुक विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. जैसे कि यज्ञ, हवन, पूजा और पिंडदान. इन कर्मकांडों के दौरान, बटुक मंत्रों का उच्चारण करते हैं. पूजा की आवश्यक वस्त्रों को संभालते हैं और गुरु या पुरोहित की सहायता करते हैं. बटुकों की उपस्थिति और उनके द्वारा किए गए अनुष्ठान को धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से शुभ माना जाता है.
बनते है कुशल ब्राह्मण
काशी के प्रसिद्ध विद्वान और ज्योतिषाचार्य पंडित संजय उपाध्याय के अनुसार, बटुकों की शिक्षा और प्रशिक्षण का उद्देश्य न केवल धार्मिक कर्मकांडों का सही ढंग से निर्वहन करना होता है, बल्कि उन्हें धार्मिक और आध्यात्मिक जीवन के मार्ग पर अग्रसर करना भी होता है. इस प्रक्रिया से गुजरकर, बटुक एक कुशल और विद्वान ब्राह्मण बनते हैं, जो समाज में धार्मिक ज्ञान का प्रसार कर सकते हैं.
FIRST PUBLISHED : August 17, 2024, 12:55 IST
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