Pitru Paksha 2024: सनातन धर्म में पितृ पक्ष विशेष महत्व है. इसका प्रारंभ भाद्रपद पूर्णिमा और समापन आश्विन अमावस्या के दिन होता है. इस साल पितृ पक्ष 17 सितंबर दिन मंगलवार से शुरू होकर 2 अक्टूबर को समाप्त होंगे. पितृ पक्ष के 16 दिन पितरों को तृप्त करने और उनको प्रसन्न करने के लिए होते हैं. पितृ पक्ष के दौरान लोग अपने पितरों को याद कर तर्पण, पिंडदान, श्राद्ध, दान, ब्राह्मण भोज, पंचबलि आदि करते हैं. माना जाता है कि ऐसा करने से पितर खुश होते हैं और तृप्त होकर आशीर्वाद देते हैं. लेकिन, तर्पण को लेकर समाज में कुछ ऐसी भी भ्रांतियां होती हैं जिसके जाल में फंसकर लोग गलती कर बैठते हैं. ऐसी ही एक भ्रांति है कि घर में किसी की मौत हो जाए तो वह पहली श्राद्ध कब करें? इस बारे में Bharat.one को बता रहे हैं प्रताप विहार गाजियाबाद के ज्योतिर्विद और वास्तु विशेषज्ञ राकेश चतुर्वेदी-
ज्योतिषाचार्य बताते हैं कि वर्तमान में समाज के अंदर कुछ भ्रांतियां चली आ रही हैं. कई लोग स्वजन की मृत्यु के पश्चात प्रथम वर्ष में श्राद्ध कर देते हैं या कभी करते ही नहीं. कई लोग तीसरे वर्ष में श्राद्ध करते हैं. दरअसल. पारिवारिक रीति रिवाज या गलत जनकारी से वह तीसरे वर्ष में पितृ की मृत्यु तिथि को छोड़कर पूर्णिमा के दिन पितृ की आत्मा शांति के निमित्त श्राद्ध कर्म करते हैं. ज्योतिषाचार्य के अनुसार, पूर्णिमा पर नहीं, तीसरे वर्ष में मृतक की पुण्यतिथि पर श्राद्ध करना अधिक शास्त्रोक्त है.
वार्षिकीय के बाद श्राद्ध करना शुभ
पं. राकेश चतुर्वेदी बताते हैं कि, यदि किसी घर में किसी व्यक्ति की मृत्यु हो गई है तो वे वार्षिकीय यानी वरसी के बाद श्राद्ध कर सकते हैं. वार्षिकीय का मतलब है कि मृतक के लिए साल में एक बार निकाला जाने वाला भोजन. वार्षिकीय व्यक्ति की मृत्यु के सालभर के अंदर ही होती है. यदि आप चाहें तो पहली बार पड़ने वाली श्राद्ध की अमावस्या पर भी कर सकते हैं.
मृत्यु तिथि तथा पितृ पक्ष में श्राद्ध करना आवश्यक
ज्योतिषाचार्य के मुताबिक, पितृपक्ष हर साल शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि के साथ शुरू होकर कृष्ण पक्ष की अमावस्या तक चलते हैं. सनातन परंपरा में मृत्यु तिथि तथा पितृ पक्ष में श्राद्ध करना आवश्यक है.श्राद्ध से केवल अपनी तथा अपने पितरों की ही संतृप्ति नहीं होती, अपितु जो व्यक्ति इस प्रकार विधिपूर्वक अपने धन के अनुरूप श्राद्ध करता है, वह ब्रह्मा से लेकर घास तक समस्त प्राणियों को संतृप्त कर देता है. पितृ पक्ष में मृत व्यक्ति की जो तिथि आए, उस तिथि पर मुख्य रूप से पावर्ण, महालया श्राद्ध करने का विधान है. किसी का भी श्राद्ध आरंभ में पूर्णिमा तिथि से करना पूर्णतया गलत है.
FIRST PUBLISHED : September 25, 2024, 16:55 IST