आयुष जैन/सीतापुर: भारत में कई सारे खास मंदिर हैं. कुछ मंदिर तो इसलिए प्रसिद्ध है कि वहां जाने के कुछ दिन बाद ही लोगों को खुशखबरी मिल जाती है. ऐसा ही एक मंदिर है सीतापुर के महमूदाबाद कस्बे में. यह मंदिर मां संकटा का है. कहां जाता है कि इस मंदिर में जो भी सच्चे दिल से मांगा जाता है, वो जरूर मिलता है. तो चलिए जानते हैं इस मंदिर के बारे में.
संकटा देवी मंदिर की कहानी
इस अनोखे मंदिर में माता संकटा देवी की मूर्ति स्थापित है. मंदिर सिर्फ सीतापुर के ही बल्कि बाराबंकी, बहराइच, लखनऊ सहित पूर्वांचल के जिलों के लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केन्द्र है. इतिहास में राजपूतों के संकट हरने के कारण इस मंदिर को संकटा देवी मंदिर के नाम से जाना जाने लगा. हालांकि अब यह मंदिर धीरे-धीरे धाम बनता जा रहा है. मंदिर में मां संकटा के अलावा करीब एक दर्जन छोटे बड़े मंदिर स्थापित है.
पाटेश्वरी देवी के अंश के रूप में है मान्यता
संकटों का नाश करने वाली मां भगवती के नाम पर बने इस मंदिर का नाम संकटा देवी कैसे पड़ा. इसको लेकर कोई खास प्रमाण नहीं है. लम्बे समय से मंदिर में सेवा दे रहे मंदिर समिति के अध्यक्ष रमेश वाजपेयी बताते हैं कि स्थानीय संकटा देवी मंदिर की स्थापना भर्र राजपूतों द्वारा करायी गयी. कहा जाता है कि भर्र राजपूतों ने अपनी कुल देवी पाटन (पाटेश्वरी) के अंश को लाकर स्थापना की थी और राजपूत किसी भी संकट के समय देवी की विधान पूर्वक पूजा-अर्चना किया करते थे. मान्यता है कि देवी मां से मांगी गयी मन्नत अवश्य पूर्ण होती है.
मुख्य द्वार पर गीता का संदेश
मुख्य मार्ग पर स्थापित होने के कारण गुजरने वाले राहगीरों को मंदिर की भव्य छटा बरबस आकर्षित करती है. मंदिर के बाहर तीन दरवाजों में से मध्य द्वार पर महाभारत के दौरान अर्जुन को गीता का संदेश देते भगवान कृष्ण की झांकी स्थापित है. इसी के साथ माता रानी के सम्मुख भगवान विष्णु मंदिर व यज्ञशाला के साथ गगनचुंबी बद्री विशाल, जगन्नाथ, अन्नपूर्णा, संतोषी माता, काली माता, भैरव नाथ, बजरंगबली, द्वारिकाधीश, नवरत्न, पीताम्बरा माई, खाटू श्याम मंदिर भी निर्मित हैं. मंदिर के गर्भगृह परिक्रमा मार्ग में भगवान राम, हनुमान, आदिदेव शंकरा राधा कृष्ण के मंदिर हैं. सरोवर में आदिदेव भगवान शंकर की आदमकद रौद्र रूपी प्रतिमा विराजमान है.
भक्तों के सहयोग मंदिर को मिला भव्य स्वरूप
अध्यक्ष रमेश वाजपेयी बताते है कि आजादी के पूर्व तक संकटा देवी मैया का दरबार एक छोटी मठिया के स्वरूप में था. आजादी के बाद भक्तों द्वारा मंदिर के विकास में निरंतर कराये जा रहे निर्माण के चलते मंदिर का स्वरूप पहले की अपेक्षा काफी भव्य हुआ है. गर्भगृह को चांदी से सुसज्जित किया जा चुका है. इसके अतिरिक्त अब मंदिर का परिसर काफी विशाल हो चुका है.
FIRST PUBLISHED : August 28, 2024, 17:04 IST
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