कुल्लू. कुल्लू की मणिकरण घाटी में बसे मलाणा गांव की कहानी हमेशा ही बेहद खास रही है. दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र के रूप में जाने वाला मलाणा गांव का आखिर क्या है रहस्य. माना जाता है कि मलाणा गांव में लोग अपने ही कानून मानते है, और यहां अपनी इन अनोखी परंपराओं का निर्वहन आज भी किया जाता है. यहां गांव में फैसले लेने के लिए अपनी न्याय प्रणाली बनाई गई है. जिसका चुनाव भी बेहद खास तरीके से किया जाता है. इस गांव में आज भी देवता जमलू का कहा ही माना जाता है. सबसे दिलचस्प मलाणा गांव बाहर से आने वाले लोगों के लिए इस लिए भी हो जाता है. क्योंकि आज भी यहां बाहरी लोगों के द्वारा कई चीजों को छूने पर जुर्माना लग जाता है.
मलाणा में चलता है अपना कानून
मलाणा गांव में देवता जमदग्नि ऋषि, जिन्हें स्थानीय भाषा में जमलू कहा जाता है उनका की कानून माना जाता है. इतिहासकार डॉ सूरत ठाकुर बताते है कि यहां पहले बाणासुर राक्षस का राज हुआ करता था. लेकिन जब देवता जमलू लाहौल होते हुए मलाणा पहुंचे तो बाणासुर को हरा कर उन्होंने यहां पर अपना आधिपत्य स्थापित किया. तभी उस घाटी के लोग देवता जमलू की ही आज्ञा से हर काम करते है. यहां न्याय व्यवस्था को मानने के लिए इनके द्वारा ज्येष्ठांग और कनिष्ठांग की व्यवस्था की गई है. जहां चुने हुए व्यक्तियों द्वारा ही फैसला लिया जाता है. इस पूरे क्षेत्र के लोग अपनी ही व्यवस्थाओं को मानते है.
चीज़ों को छूने पर लगता है जुर्माना
मलाणा गांव में बाहरी लोगों को चीजों को छूने पर मनाही है. यहां देवता के स्थान और आसपास की कई जगहों को छूने पर बाहरी लोगों को जुर्माना भी देना पड़ता है. दरअसल यहां पर शुद्धता का विशेष ध्यान दिया जाता है. ऐसे में जमलू देवता के स्थान और आसपास की चीजों को छूने पर व्यक्ति को 5000 तक का जुर्माना लिया जाता है या पहले से समय में व्यक्ति को माफी के तौर पर जमलू देवता को बकरा भेंट करना पड़ता था. डॉ सूरत ठाकुर बताते है कि देवी देवताओं के पवित्र स्थानों को शुद्ध रखने के लिए है ऐसे नियम बनाए गए है जिन्हें आज भी लोगों के द्वारा माना जाता है. साथ ही गांव में कई जगह पर ये भी देखा गया है कि अगर आप किसी दुकान से समान ले रहे है तो दुकानदार सामान को दुकान से बाहर रख देंगे और आपको भी पैसे नीचे रखने को कहेंगे. सीधे संपर्क में आकर यहां समान भी नहीं किया जाता.
गांव में बोली जाती है अपनी राक्षसी भाषा
मलाणा के लोग अपनी ही अनोखी बोली बोलते है जिसे आम लोगों को समझना और सीखना मुश्किल माना जाता है. इस बोली को कनाक्षी बोली कहा जाता है. जिसे कई लोग राक्षसी भाषा भी कहते है. कुल्लू के बाकी इलाकों में रहने वाले लोगों को भी यह बोली समझ नहीं आती है. न ही यह लोग इस भाषा को गांव से बाहर अन्य लोगों को सीखते है. गांव के अंदर बात करने के लिए ग्रामीण इसी भाषा का इस्तेमाल करते है.
FIRST PUBLISHED : November 29, 2024, 20:20 IST