Difference Among Pujari, Pandit and Purohit: सनातन धर्म में आपने पंडित, पुजारी, पुरोहित, ब्राह्मण, ऋषि, मुनी जैसे कई शब्द सुने होंगे. चाहे कोई धार्मिक कथा हो या फिर कोई आध्यात्मिक प्रसंग आया हो, इन शब्दों के बारे में हम अक्सर सुनते हैं. अक्सर लोग इन शब्दों के सही अर्थ और उनका प्रयोग नहीं जानते. खासकर पंडित, ब्राह्मण और पुजारी जैसे शब्दों का प्रयोग एक ही तरह के कर लेते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये शब्द सिर्फ एक-दूसरे के पर्यावाची नहीं हैं. बल्कि सनातन धर्म में ये शब्द एक तरह की डिग्रियां थीं, जो आपकी काबीलियत के आधार पर लोगों को मिलती थी. प्रसिद्ध कथावाचक व धार्मिक गुरू पुण्डरीक गोस्वामी से जानिए आखिर क्या है इन शब्दों का सही अर्थ.
सनातन धर्म में शिक्षा का विशेष महत्व रहा है. इन शब्दों का संबंध भी व्यक्ति की शिक्षा और उसके कर्मों से है. पुण्डरीक गोस्वामी बताते हैं कि पंडित का संबंध बुद्धि से है. गीता में श्लोक है, ‘जो बीती हुई बात का शोक न करे और आने वाली चीज की चिंता न करे, उसे पंडित कहते हैं. जो ज्ञाता होता है, वह पंडित है, जो वर्तमान में रहता है वहीं पंडित है. प्रचीन भारत में वेद शास्त्रों आदि के ज्ञाता को पंडित कहा जाता था.
जो संस्कार कराए उसे पुरोहित कहते हैं.
ब्राह्मण शब्द, ब्रह्म से आया है. जो अपना पूरा जीवन ब्रह्म की प्राप्ति में लगाए, उसे पाने के मार्ग पर चले उसे ब्राह्मण कहते हैं. वेद और ब्रह्म को छोड़कर यदि कोई भी और काम करे तो वह ब्राह्मण नहीं होता.
जो संस्कार कराए उसे पुरोहित कहते हैं. हिंदू धर्म में मनुष्य के जन्म से मरण तक 16 संस्कार कराए जाते हैं. इन सभी संस्कारों को कराने का जो विधान करे, वह व्यक्ति पुरोहित कहा जाता है. पुरोहित एक उपाधि होती है. प्राचीन काल में राज परिवार भी अपने राज पुरोहित रखा करते थे.
पंडित, पुजारी, पुरोहित, ब्राह्मण, ऋषि, मुनी जैसे कई शब्दों का प्रयोग सनातन धर्म में होता है.
वहीं जब पुजारी की बात करें तो पुजारी वह है जो पूजा करे. पुजारी उन्हें कहा जाता है जो मंदिर में सेवा करते हैं. वह पूजा पद्धति का ज्ञाता होता है, इसलिए उसे पुजारी कहा जाता है. पुजारी का काम होता है मंदिर में स्थापित भगवान की पूजा-अर्चना करना, उनकी सेवा करना, उन्हें समय-समय पर भोग लगाना, उनकी आरती करना आदि यानी कि पुर्णतः भगवान के कामों के लिए समर्पित रहना.
जो किसी विषय का रहस्य जानता हो, वह ऋषि कहलाता है. ऋषि सिर्फ ज्ञाता ही नहीं होते थे, बल्कि वह वेद और शास्त्रों के रहस्य से भी परिचित होते थे. जैसे भागवद के ऋषि नारद मुनि को माना जाता है. इसीलिए जब भी कहीं भागवद कथा होती है, तो पहले नारद जी को याद किया जाता है.
FIRST PUBLISHED : August 28, 2024, 19:13 IST