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बिहार में इस व्रत में खाई जाती है मडुवा की रोटी और मछली, जानें पूरी विधि और महत्व


पूर्णिया: जितिया व्रत, जो मुख्य रूप से बिहार और उत्तर प्रदेश की महिलाओं द्वारा मनाया जाता है, इस बार 25 सितंबर को निर्जला उपवास के साथ आयोजित होगा. इस व्रत का प्रमुख उद्देश्य माताओं द्वारा अपने पुत्रों की लंबी उम्र और स्वस्थ जीवन की कामना करना है. इसे मनाने के लिए विशेष परंपराएं हैं, जिनमें मडुवा की रोटी और मछली का सेवन शामिल है.

पंडित मनोत्पल झा के अनुसार, जितिया व्रत की शुरुआत मडुवा और मछली खाकर होती है, जो इस व्रत की अनोखी मान्यता को दर्शाता है. धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन महिलाएं जल वस्त्र पहनकर और स्नान कर इस व्रत का पालन करती हैं. इस व्रत के दौरान माताएँ चिल्हो सियार की पूजा कर अपने पुत्रों की मंगलकामना करती हैं.

जितिया व्रत की पौराणिक कथा
पंडित मनोत्पल झा बताते हैं कि हिंदू धर्म में आमतौर पर मांसाहार को वर्जित माना जाता है, लेकिन जितिया व्रत की शुरुआत मछली और मडुवा की रोटी से होती है. इसके पीछे एक पौराणिक कथा है, जिसमें सियार और चीलों का महत्व है. पहले के समय में, मडुवा की उपज व्यापक रूप से होती थी और बरसात के मौसम में मछलियाँ भी आसानी से उपलब्ध होती थीं.

व्रत की तिथियाँ
इस वर्ष, जितिया व्रत के लिए व्रति को 24 सितंबर को स्नान और भोजन करने के बाद 25 सितंबर को निर्जला उपवास रखना है. अगले दिन, यानी 26 सितंबर को सुबह 5:05 बजे के बाद पारण किया जा सकता है.

पारंपरिक व्यंजन
बिहार के मिथिलांचल में इस व्रत के दौरान मडुवा के आटे से बनी बूटी, जीवनी की सब्जी और नानी का सुहाग खाने की परंपरा प्रचलित है. महिलाएं इस व्रत में जीमूतवाहन के नाम से प्रसाद भी चढ़ाती हैं और अपने पुत्रों की लंबी उम्र की कामना करती हैं.

Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी, राशि-धर्म और शास्त्रों के आधार पर ज्योतिषाचार्य और आचार्यों से बात करके लिखी गई है. किसी भी घटना-दुर्घटना या लाभ-हानि महज संयोग है. ज्योतिषाचार्यों की जानकारी सर्वहित में है. बताई गई किसी भी बात का Bharat.one व्यक्तिगत समर्थन नहीं करता है.

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