सरयू तट से लखनऊ-बहराइच मुख्य मार्ग को जाने वाले रास्ते पर छह दशक पूर्व काफी घना जंगल था. यहीं पर दो साधु आकर रुके थे. साधुओं ने नीम के पेड़ के तले विश्राम किया. सुबह अज्ञात जगह से पिंडी लाकर स्थापित कर दिया और पूजा-अर्चना करने लगे. इसके बाद तो यहां भक्तों का तांता लगने लगा. यहां नेपाल से भी भक्त अपनी मुरादें लेकर पहुंचते हैं.