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प्रयागराज महाकुंभ में कड़ाके की ठंड में भी नागा बाबा नंगे बदन घूम रहे हैं. इसी कड़ाके की बर्फीली ठंड में वह गंगा – यमुना के संगम में कूदकर नहाते भी हैं. आखिर क्या है इसका राज, कैसे वो इतनी ठंड में भी अपने शरीर…और पढ़ें
हाइलाइट्स
- नागा साधुओं का ठंड न लगने का रहस्य
- कठोर तपस्या, योग और ध्यान से शरीर पर नियंत्रण
- शरीर पर भस्म लगाना, जो इंसुलेटर का काम करता है
अगर आप प्रयागराज महाकुंभ की तस्वीरें देख रहे हों तो उसमें आपको बहुत सी तस्वीरें नागा साधुओं की नजर आएंगी जो कुंभ में संगम में डुबकी लगाने और शाही स्नान करने के लिए प्रयागराज पहुंच रहे हैं. इस कड़ाके की ठंड में भी ये बाबा निपट नंगे बदन हैं. उन्हें कोई ठंड नहीं लग रही. आखिर क्या है इसका राज, जिससे उन्हें ठंड नहीं लगती.
नागा साधुओं का कड़ाके की ठंड में भी नंगे रहने का रहस्य काफी रोचक और गहरा है. ये शारीरिक सहनशक्ति से कहीं ज्यादा है. क्या इसमें उस राख का रहस्य ज्यादा है, जो नागा बाबा अपने बदन पर लपेटते हैं या कोई और बात. जानते हैं उन बातों को जिनके जरिए नागा बाबा लोगों को कड़ाके की ठंड में भी ठंड नहीं लगती.
1. कठोर तपस्या और साधना:
नागा साधु लंबे समय तक कठोर तपस्या करते हैं, जिससे उनका शरीर कठोर परिस्थितियों में ढल जाता है. नियमित ध्यान और योग अभ्यास से वे अपने शरीर और मन पर नियंत्रण पा लेते हैं. इससे उन्हें गर्मी-सर्दी का अनुभव कम होता है.
प्रयागराज में अब नागा साधुओं का कारवां नजर आने लगा है.
हिमालयी योगी तो कुंडलिनी जागरण की प्रक्रिया के माध्यम से अपने शरीर में ऊर्जा को जाग्रत करते हैं. कुंडलिनी एक शक्तिशाली ऊर्जा है जो जब जाग्रत होती है तो शरीर में गर्मी पैदा करती है. जिससे ठंड में उनका बदन अच्छा खासा गर्म रहता है. वो शरीर के सूक्ष्म व्यायामों के माध्यम से रक्त संचार को बढ़ाते हैं और शरीर को गर्म रखने में मदद करते हैं.
प्राणायाम के माध्यम से योगी अपनी श्वास को नियंत्रित करते हैं. शरीर में प्राण (जीवन शक्ति) को संतुलित करते हैं. यह प्रक्रिया शरीर को गर्म रखने में मदद करती है. ध्यान के माध्यम से योगी अपनी मानसिक स्थिति को शांत करते हैं और शरीर के भीतर की गर्मी को महसूस करने में सक्षम होते हैं. हालांकि हिमालयी योगियों और कुछ नागा बाबाओं द्वारा उपयोग की जाने वाली तकनीकें बहुत ही जटिल और गहन होती हैं.
नागा साधु मुख्य रूप से शैव संप्रदाय से जुड़े होते हैं और भगवान शिव की भक्ति में रत रहते हैं. महाकुंभ में उनका पहला स्नान उनकी गहरी भक्ति और तपस्या को दर्शाता है.
2. भस्म का महत्व:
अब आइए भस्म यानि राख की बात करते हैं. क्या इसको शरीर पर मलने से वाकई ठंड नहीं लगती. बहुत नागा बाबाओं ने इंटरव्यू में कहा है कि शरीर की राख मलने के बाद वह ठंड को दूुर भगा देते हैं. शरीर पर लगाई राख एक तरह से इंसुलेटर का काम करती है. यह शरीर को गर्मी और सर्दी दोनों से बचाती है. इसका धार्मिक महत्व भी है. भस्म को पवित्र माना जाता है. ये साधुओं को नकारात्मक ऊर्जा से बचाती है.
3. खानपान और जीवनशैली:
शरीर को साधने में सात्विक आहार की भी खास भूमिका होती है. इससे उनका शरीर स्वस्थ रहता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है. नागा साधु एक सरल जीवन जीते हैं, जिससे वे मानसिक रूप से मजबूत होते हैं.
4. मानसिक दृढ़ता:
संसार की मोह-माया से दूर रहकर वे मानसिक रूप से मजबूत होते हैं. उनका लक्ष्य मोक्ष प्राप्त करना होता है, इसलिए वे शारीरिक सुख-दुख से परे रहते हैं. वो अपने शरीर में बाहरी तौर पर ना तो ठंड का अनुभव करते हैं और ना गर्मी.
नागा साधु तप और योग साधना के साथ राख के जरिए अपने शरीर को कड़ाके की बर्फीली ठंड में भी गर्म रखते हैं. उन्हें ठंड नहीं लगती.
5. शरीर की प्राकृतिक क्षमता:
माना जाता है कि मानव शरीर में असीमित क्षमता होती है. वह एक्सट्रीम परिस्थितियों में खुद को ढालने में सक्षम होता है. बशर्ते कि आप शरीर का उस तरीके से साधना और ढालना जानते हों. नागा साधुओं का शरीर भी इसी तरह ढल जाता है. नागा साधुओं का कड़ाके की ठंड में नंगे रहने का रहस्य सिर्फ शारीरिक नहीं, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक भी है. यह उनके कठोर तप, ध्यान, योग, खानपान और जीवनशैली का परिणाम है. वे हमें सिखाते हैं कि मानव शरीर और मन कितने मजबूत हो सकते हैं.
नागा साधु केवल लंगोट पहनते हैं लेकिन उसका भी त्याग कर देते हैं
नागा पंथ में शामिल होने के दौरान वो लंगोट पहनते हैं लेकिन जब कुंभ के मेले में नागा साधु का झुंड इकट्ठा होता है, तो इसके बाद वो लंगोट का भी त्याग कर देते हैं. नागा साधुओं को सबसे पहले ब्रह्मचार्य की शिक्षा दी जाती है और फिर महापुरुष की दीक्षा.
इस तकनीक से शरीर को गर्म रखते हैं नागा साधु
अग्नि साधना – कुछ योगी अग्नि साधना करते हैं, जिसमें वे अग्नि तत्व को अपने शरीर में एकत्रित करते हैं और शरीर को गर्म करते हैं.
नाड़ी शोधन –नाड़ी शोधन प्राणायम के माध्यम से शरीर में वायु को संतुलित किया जाता है, जिससे शरीर गर्म रहता है.
मंत्र जाप – कुछ मंत्रों का जाप करने से भी शरीर में गर्मी पैदा होती है.
राख में ऐसा क्या होता है कि इंसुलेटर का काम करने लगती है
जब एक जीवित शरीर को जलाया जाता है, तो अधिकांश कार्बनिक पदार्थ जलकर राख में बदल जाते हैं. राख में मुख्य रूप से खनिज लवण होते हैं जो शरीर में मौजूद थे. इनमें कैल्शियम, फॉस्फोरस, पोटैशियम आदि प्रमुख हैं. अघोरी और नागा बाबाओं के शव की चिता से निकली राख को अपने शरीर पर लपेटने के पीछे कई धार्मिक और सांस्कृतिक कारण बताए जाते हैं. ये कारण अक्सर रहस्यमयी और प्रतीकात्मक होते हैं.
कुछ मान्यताओं के अनुसार, शव की राख में कुछ ऐसे तत्व होते हैं जो रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं. कुछ का मानना है कि शव की राख शरीर के तापमान को नियंत्रित करने में मदद करती है. अघोरी बाबाओं का मानना है कि शव की राख लगाने से उन्हें गहन आध्यात्मिक अनुभव प्राप्त होता है.
मृत्यु पर विजय- अघोरी और नागा बाबा मृत्यु को जीवन का एक अभिन्न अंग मानते हैं. शव की राख को अपने शरीर पर लगाकर वे मृत्यु पर विजय प्राप्त करने का प्रतीक मानते हैं. यह उनके लिए एक तरह से मृत्यु के भय को दूर करने और जीवन के क्षणिक स्वरूप को स्वीकार करने का तरीका होता है.
शिव के प्रति समर्पण – अघोरी बाबा भगवान शिव के परम भक्त होते हैं. शिव को भस्मासुर भी कहा जाता है, अर्थात भस्म धारण करने वाला. अघोरी बाबा शिव के इस रूप का अनुकरण करते हुए शव की राख को अपने शरीर पर लगाते हैं.
तपस्या और साधना – अघोरी और नागा बाबा कठोर तपस्या और साधना करते हैं. शव की राख को लगाना उनके लिए एक तरह की तपस्या होती है. यह उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से मजबूत बनाता है.
पवित्रता और शुद्धता – अघोरी बाबाओं का मानना है कि शव की राख पवित्र होती है. यह उन्हें सभी पापों से मुक्त करती है. उन्हें आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करती है.