श्रीनगर गढ़वाल: उत्तराखंड की मनमोहक प्राकृतिक सुंदरता और यहां की आध्यात्मिकता हर किसी को अपनी ओर खींचती है. पौड़ी गढ़वाल, जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता के साथ-साथ धार्मिक महत्व के लिए भी जाना जाता है. इस क्षेत्र में कई धार्मिक स्थल हैं, जहां साल भर श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है. इन्हीं स्थलों में से एक है मुक्तेश्वर महादेव मंदिर, जो पौड़ी से लगभग 5 किलोमीटर दूर किनाश पर्वत पर स्थित है. घने जंगलों के बीच स्थित यह मंदिर भक्तों के लिए आशा और शांति का स्रोत है. यहां भगवान शिव की पूजा-अर्चना करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.
मुक्तेश्वर मंदिर के महंत अभय मुनि ने Bharat.one को बताया कि इस मंदिर का उल्लेख पौराणिक स्कंद पुराण में मिलता है, जो उत्तर भारत के हरिद्वार से ऊपर के क्षेत्र के मंदिरों का इतिहास बताने वाले केदारखंड का हिस्सा है. इस मंदिर का इतिहास तीन युगों में वर्णित है.
सतयुग में किनाश पर्वत की उत्पत्ति
महंत अभय मुनि ने बताया कि सतयुग में सबसे पहले किनाश पर्वत की उत्पत्ति हुई, जिस पर यह मंदिर स्थित है. कहा जाता है कि मां भगवती ने श्रीनगर में निवास करने वाले कोलासुर दैत्य का वध किया था. और उसका सिर इस पर्वत पर गिरा था, जिसे किनाश पर्वत कहा गया. आज पूरा पौड़ी शहर इसी पर्वत पर बसा हुआ है.
त्रेतायुग में यमराज की तपस्या
त्रेतायुग में एक ताड़कासुर नाम का दैत्य हुआ, जिसने भगवान ब्रह्मा से वरदान मांगा कि वह केवल भगवान शिव के पुत्र के हाथों ही मारा जाए. इसके बाद ताड़कासुर ने यमराज को युद्ध में पराजित कर दिया. इस हार के बाद यमराज ने किनाश पर्वत पर भगवान शिव की कठोर तपस्या की, जिससे उनका शरीर कंकाल के समान हो गया. तब भगवान शिव ने आदि शक्ति के साथ मिलकर उन्हें दर्शन दिए.
मुक्तेश्वर मंदिर की मान्यता और महत्व
भगवान शिव ने कहा था कि वे कलियुग के दौरान यहां गुप्त रूप से प्रकट होंगे और भक्तों को मुक्ति का मार्ग देंगे. इसीलिए इस मंदिर का नाम मुक्तेश्वर पड़ा. मंदिर का निर्माण लगभग 200 वर्ष पूर्व किया गया था. मान्यता है कि जो निःसंतान दंपति इस पर्वत की परिक्रमा करते हैं, उन्हें संतान की प्राप्ति होती है. यहां भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण होती है.
FIRST PUBLISHED : September 2, 2024, 17:23 IST
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