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लाखों श्रद्धालुओं का आस्था केंद्र है विद्यापति धाम में महाकवि की समाधि, 13 से 15 नवंबर तक होगा भव्य महोत्सव


समस्तीपुर. समस्तीपुर जिला मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर दूर स्थित विद्यापति धाम मिथिलांचल का एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है, जिसे ‘मिथिलांचल का देवघर’ भी कहा जाता है. यह स्थान महाकवि विद्यापति से जुड़ा हुआ है, और उनकी स्मृति में यहां भक्तों का जमावड़ा लगा रहता है. विशेष रूप से, विद्यापति महोत्सव के दौरान यहां लाखों लोग आते हैं. यह महोत्सव 13 से 15 नवंबर तक मनाया जाता है और इसे बिहार सरकार ने राजकीय महोत्सव का दर्जा दिया है. यह आयोजन पिछले 13 वर्षों से धूमधाम से हो रहा है.

विद्यापति धाम का इतिहास बहुत ही रोचक और धार्मिक महत्व से भरा है. मान्यता है कि महाकवि विद्यापति अपने जीवन के अंतिम समय में साधना के लिए गंगा नदी के किनारे जा रहे थे, लेकिन रास्ते में थकान के कारण बाजिदपुर में रुक गए. उन्होंने मां गंगा से दर्शन के लिए पास आने की प्रार्थना की, क्योंकि वे आगे नहीं जा सकते थे. कहते हैं, उनकी भक्ति से प्रभावित होकर मां गंगा उनके पास आईं. इसी स्थान पर विद्यापति ने अपनी अंतिम सांस ली और यह जगह ‘विद्यापति नगर’ और बाद में “विद्यापति धाम” के नाम से प्रसिद्ध हो गई. यहां कार्तिक त्रियोदशी के दिन विद्यापति जयंती धूमधाम से मनाई जाती है. 2013 में इसे बिहार सरकार द्वारा राजकीय महोत्सव का दर्जा मिलने के बाद इसकी महत्ता और बढ़ गई.

तीन दिवसीय महोत्सव का आयोजन
विद्यापति महोत्सव इस वर्ष 13 से 15 नवंबर तक विद्यापति धाम मंदिर के पास आयोजित किया जाएगा. इस दौरान भव्य धार्मिक अनुष्ठान, भजन-कीर्तन, सांस्कृतिक कार्यक्रम और विशाल मेला आयोजित किया जाता है, जिसमें हजारों भक्त और पर्यटक हिस्सा लेते हैं. स्थानीय और जिला प्रशासन इसे भव्य रूप देता है, ताकि यह महोत्सव ठीक से सम्पन्न हो सके. यह महोत्सव न केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक धरोहर को भी दर्शाता है, और श्रद्धालुओं को महाकवि विद्यापति की रचनाओं एवं उनके योगदान को श्रद्धांजलि अर्पित करने का अवसर देता है.

विद्यापति धाम की अद्भुत कथा
विद्यापति धाम के स्थानीय पंडित दीपक कुमार गिरि के अनुसार, महाकवि विद्यापति जब गंगा स्नान के लिए निकले तो उन्होंने प्रार्थना की कि मां गंगा उनके पास आएं. उनकी प्रार्थना से मां गंगा वास्तव में उनके पास आ गईं और स्नान कराने के बाद अपनी धारा वापस ले गईं. बाद में, 1850 के आसपास उसी स्थान पर दो शिवलिंग प्रकट हुए, जिनकी पूजा शुरू हुई.
एक अन्य घटना क्योटा गांव से जुड़ी है, जहां एक काली गाय प्रतिदिन शिवलिंग के पास जाकर दूध गिरा देती थी. यह देख वहां के जमींदार ने संतान प्राप्ति के लिए शिवलिंग के पास पूजा-अर्चना की, जिससे उन्हें संतान प्राप्त हुई. उन्होंने वहां मंदिर, पोखर, और कुआं बनवाया, जो आज भी श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है. यह कथा इस क्षेत्र की धार्मिक महत्ता को दर्शाती है और बताती है कि विद्यापति धाम केवल महाकवि विद्यापति का स्थान नहीं है, बल्कि अद्भुत घटनाओं और आस्था का स्थल भी है.

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