तेलंगाना के हनमाकोंडा शहर में स्थित हजार खंभों वाला मंदिर काकतीय राजाओं की स्थापत्य कला का एक बेजोड़ उदाहरण है. इसे 11वीं शताब्दी में राजा रुद्रदेव ने बनवाया था, जिसका निर्माण लगभग 70 वर्षों तक चला. इस मंदिर को त्रिकुटालय नाम दिया गया, जहां भगवान रुद्रेश्वर, विष्णु और सूर्य की मूर्तियां स्थापित हैं. मंदिर के मुख्य पुजारी गंगू उपेंद्र शर्मा के अनुसार, काकतीय राजा इस मंदिर में नियमित रूप से पूजा-अर्चना करते थे.
कोनेरू से लाया जाता था अभिषेक जल
मंदिर के उत्तर-पूर्व में स्थित कोनेरू से जल लाकर भगवान रुद्रेश्वर का अभिषेक किया जाता था. त्रिकुटालय के अंतर्गत नाट्य नृसिंह, सूर्यावतार और नटराजस्वामी की मूर्तियां हैं. इनकी कला और शिल्प आज भी काकतीय राजाओं की परंपरा को जीवंत रखते हैं.
शिव मंदिर के सामने सूर्य की अनूठी स्थापना
मंदिर में भगवान सूर्य को शिव के सामने स्थापित किया गया है, जो भारत के अन्य शिव मंदिरों से इसे अलग बनाता है. रुद्रेश्वर के क्रोध और कृपा को झेलने की शक्ति भगवान सूर्य में बताई गई है. सुबह सूर्य की किरणें शिवलिंग पर पड़ती हैं, जो इसे अद्वितीय बनाती हैं. मंदिर के सामने बने कल्याण मंडपम में विवाह समारोह होते थे, जो इस मंदिर की सामाजिक और धार्मिक महत्ता को दर्शाता है.
शैव-वैष्णव मतभेद और मूर्तियों का विनाश
काकतीय राजाओं ने ओरुगल्लू क्षेत्र में लगभग 270 शिव मंदिरों का निर्माण कराया. हालांकि, दिल्ली के सुल्तानों ने इन मूर्तियों की सुंदरता से प्रभावित होकर इन्हें नष्ट कर दिया. आज मंदिर में स्थापित विष्णु और सूर्येश्वर की मूर्तियों की पुनर्स्थापना की आवश्यकता है, लेकिन केंद्रीय पुरातत्व विभाग ने अब तक इसकी अनुमति नहीं दी है.
हजार खंभों वाला मंदिर और सोमनाथ की कला
मंदिर के बीच नृत्य परिषद है और इसे “हजार खंभों वाला मंदिर” नाम ब्रिटिश काल में दिया गया. इस भव्य मंदिर की मूर्तियों को प्रसिद्ध मूर्तिकार सोमनाथ ने तराशा था. इतिहास में कुछ हमलावरों ने इसे क्षति पहुंचाई, लेकिन अब पुरातत्व विभाग के संरक्षण में यहां प्रगति हो रही है.
त्योहारों और अनुष्ठानों का केंद्र
यह मंदिर न केवल पर्यटकों को आकर्षित करता है बल्कि धार्मिक अनुष्ठानों और त्योहारों का प्रमुख केंद्र भी है. श्रावण मास, गणपति नवरात्रि, कार्तिक माह और महाशिवरात्रि जैसे उत्सवों में लाखों श्रद्धालु यहां जुटते हैं. प्रतिदिन सुबह सुप्रभात सेवा, अभिषेक, अर्चना और पूजा का आयोजन होता है.
FIRST PUBLISHED : November 29, 2024, 12:25 IST